नेशनल पेस्ट सर्विलांस सिस्टम (National Pest Surveillance System: NPSS) | Current Affairs | Vision IAS
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नेशनल पेस्ट सर्विलांस सिस्टम (National Pest Surveillance System: NPSS)

30 Oct 2024
1 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 'नेशनल पेस्ट सर्विलांस सिस्टम (NPSS)' का शुभारंभ किया है। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित एक प्लेटफॉर्म है। यह प्लेटफॉर्म किसानों को पेस्ट्स यानी पीड़कों को नियंत्रित करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से जुड़ने में मदद करेगा।

पेस्टिसाइड्स (Pesticides) के बारे में 

पेस्टिसाइड्स या पीड़कनाशी वे रासायनिक या जैविक पदार्थ होते हैं जिनका उपयोग कीटों, फफूंदों, खरपतवारों और अन्य हानिकारक जीवों को मारने या नियंत्रित करने या उन्हें हटाने के लिए किया जाता है। ये कृषि, बागवानी आदि क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं। इसमें आम तौर पर कीटनाशक (Insecticides), कवकनाशी (Fungicides), शाकनाशी (Herbicides) और जैव-कीटनाशक (Bio-pesticides) शामिल होते हैं। 

नेशनल पेस्ट सर्विलांस सिस्टम यानी राष्ट्रीय पेस्ट निगरानी प्रणाली (NPSS) के बारे में

  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य पेस्टिसाइड्स के रिटेल विक्रेताओं पर किसानों की निर्भरता को कम करना और पेस्ट प्रबंधन के लिए किसानों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना है। 
  • शामिल एजेंसियां: NPSS वस्तुतः पौध संरक्षण, क्वारंटाइन और भंडारण निदेशालय तथा ICAR-NCIPM के बीच सहयोग पर आधारित है। 
  • प्रमुख विशेषताएं:
    • यह प्रणाली पेस्ट प्रबंधन पर समयबद्ध और सटीक सलाह के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करती है। 
    • मोबाइल ऐप और वेब पोर्टल: इसके अंतर्गत किसान संक्रमित फसलों या कीट की फोटो लेकर उसे प्लेटफॉर्म पर अपलोड कर सकते हैं।
    • विशेषज्ञों की सलाह: वैज्ञानिक/ विशेषज्ञ किसानों को सटीक सलाह देंगे और पेस्ट के खतरे को नियंत्रित करने के लिए पीड़कनाशियों का सुझाव भी देंगे।
  • NPSS जैसी तकनीकों का इस्तेमाल पीड़कनाशियों के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करके भारत में एकीकृत पेस्ट प्रबंधन को बढ़ावा दे सकता है। 

एकीकृत पेस्ट प्रबंधन (IPM) के बारे में 

  • परिभाषा: यह पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली है। इसका उद्देश्य वैकल्पिक पेस्ट नियंत्रण विधियों और तकनीकों का उपयोग करके फसल को नुकसान पहुंचाने वाले पेस्ट की आबादी को नियंत्रित करना है। इसमें जैव-पीड़कनाशियों और वनस्पति आधारित पीड़कनाशियों के उपयोग पर जोर दिया गया है।

एकीकृत पेस्ट प्रबंधन (IPM) का महत्त्व 

  • उपज के नुकसान को रोकता है: काउंसिल ऑफ एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) के अनुसार, कीटों, फसल रोगों, नेमाटोड, खरपतवार (वीड), और कृंतकों (रोडेन्ट्स) के कारण भारत में हर साल 15 से 25 प्रतिशत फसल बर्बाद हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप प्रति वर्ष लगभग 90,000 करोड़ रुपये से 1.4 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है।  
  • आय के स्तर में वृद्धि: एकीकृत पेस्ट प्रबंधन प्रणाली पीड़कनाशियों के उपयोग को सीमित करती है और उपज में बढ़ोतरी करके उत्पादन लागत को कम करने में मदद करती है। इसके अतिरिक्त, IPM के तहत उगाई गई फसलें उच्च गुणवत्ता वाली होती हैं क्योंकि उनमें पीड़कनाशियों के अवशेष कम होते हैं। इसके चलते घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इन्हें बेहतर कीमतें मिलने की संभावना रहती है।
    • उदाहरण के लिए- एकीकृत पेस्ट प्रबंधन प्रणाली का इस्तेमाल करने से दलहन उत्पादन में 15-20% की वृद्धि हुई है। 
  • पीड़कनाशियों के अत्यधिक उपयोग पर रोक: एकीकृत पेस्ट प्रबंधन पेस्टिसाइड्स के अत्यधिक उपयोग से होने वाले कई गंभीर दुष्प्रभावों, जैसे- मानव और पशु स्वास्थ्य को खतरा, पेस्ट में पीड़कनाशियों के प्रति प्रतिरोध विकसित होने की क्षमता आदि को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।  
  • पर्यावरण से जुड़े लाभ: एकीकृत पेस्ट प्रबंधन से पर्यावरण में पीड़कनाशियों के अवशेष कम हो जाते हैं। इसके कई लाभ हैं, जैसे:
    • पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (परागण, स्वस्थ मृदा, और प्रजाति जैव विविधता) में वृद्धि होती है।
    • जैविक तरीकों के उपयोग से ऊर्जा का संरक्षण होता है और ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन भी कम होता है।
      • जैव-पीड़कनाशी जीवों, पौधों (नीम, तंबाकू), सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, नेमाटोड) आदि का उपयोग करके बनाए जाते हैं। 

चिंताएं

  • शुरुआत में उपज में गिरावट की आशंका: यह स्थिति किसानों को एकीकृत पेस्ट प्रबंधन अपनाने से हतोत्साहित कर सकती है।
  • शुरुआत में उच्च लागत: इस प्रणाली में नए उपकरण, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण में अग्रिम निवेश की आवश्यकता पड़ती है।
  • जागरूकता और शिक्षा की कमी: किसानों में एकीकृत पेस्ट प्रबंधन सिद्धांतों या इसके संभावित लाभों के बारे में जानकारी का अभाव है। इसके चलते वे नवीन बदलावों का विरोध करते हैं।
  • निगरानी और डेटा का अभाव: प्रभावी एकीकृत पेस्ट प्रबंधन के लिए पेस्ट की आबादी की निरंतर निगरानी और सटीक डेटा संग्रह की आवश्यकता होती है। इस संपूर्ण प्रक्रिया में अधिक समय लगता है और अधिक संसाधनों की जरूरत पड़ सकती है।
  • पेस्ट्स का फिर से प्रकोप बढ़ना: यह तब होता है जब एकीकृत कीट प्रबंधन तकनीकों को ठीक से लागू नहीं किया जाता या फिर कीट जैविक नियंत्रण एजेंटों के प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित कर लेते हैं।
  • मौसम और पर्यावरणीय कारक: कुछ मौसमी और पर्यावरणीय कारक (जैसे- तापमान और आर्द्रता, मौसमी बदलाव) एकीकृत पेस्ट प्रबंधन विधियों के प्रभाव को कम कर सकते हैं।  

भारत में एकीकृत पेस्ट प्रबंधन प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम

  • एकीकृत पेस्ट प्रबंधन नीति: भारत ने 1985 से समग्र फसल उत्पादन कार्यक्रम में पौध संरक्षण के प्रमुख सिद्धांत और एकीकृत पेस्ट प्रबंधन को अपनाया है। 
  • ICAR-NCIPM: इसे 1988 में एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान के रूप में स्थापित किया गया था। इसका कार्य मुख्य फसलों के लिए एकीकृत पेस्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को विकसित करना और बढ़ावा देना है।  
  • "पेस्ट प्रबंधन का सुदृढ़ीकरण और आधुनिकीकरण" योजना: इस योजना के तहत 'केंद्रीय एकीकृत पेस्ट प्रबंधन केंद्रों (CIPMCs)' के माध्यम से देशभर में एकीकृत पेस्ट प्रबंधन एप्रोच को बढ़ावा दिया जा रहा है।  
    • ये केंद्र निम्नलिखित गतिविधियों से जुड़े कार्य करते हैं: 
      • पेस्ट/ फसल रोग की निगरानी, 
      • ​​जैव-नियंत्रण एजेंटों/ जैव-पीड़कनाशियों का उत्पादन और उन्हें जारी करना, 
      • जैव-नियंत्रण एजेंटों का संरक्षण, 
      • एकीकृत पेस्ट प्रबंधन में मानव संसाधन विकास, आदि।

आगे की राह

  • किसानों के शिक्षण एवं प्रशिक्षण और उन्हें अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिए सरकार, किसान उत्पादक संगठनों और शोधकर्ताओं को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
  • विशिष्ट क्षेत्रों और फसल प्रणालियों के अनुरूप नवीन एकीकृत पेस्ट प्रबंधन रणनीतियां विकसित करने का प्रयास करना चाहिए।
  • एकीकृत पेस्ट प्रबंधन को व्यापक रूप से अपनाने के लिए तकनीकी उपाय विकसित करने में निवेश किया जाना चाहिए।

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