सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, व्यय संबंधी सुधारों के भाग के रूप में नीति आयोग ने केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) में सुधार की प्रक्रिया शुरू की है।
अन्य संबंधित तथ्य

- नीति आयोग के विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (DMEO) ने भारत सरकार की सभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSSs) के मूल्यांकन की प्रक्रिया आरंभ की है। DMEO ने 9 प्रमुख क्षेत्रकों में CSS के मूल्यांकन में सहायता हेतु परामर्शदाता फर्मों को शामिल करने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं।
- ये 9 क्षेत्रक हैं: कृषि और संबद्ध क्षेत्रक; महिला एवं बाल विकास क्षेत्रक; शिक्षा क्षेत्रक; शहरी कायाकल्प व कौशल विकास क्षेत्रक; ग्रामीण विकास क्षेत्रक; पेयजल और स्वच्छता क्षेत्रक; स्वास्थ्य क्षेत्रक; जल संसाधन, पर्यावरण और वन क्षेत्रक; तथा सामाजिक समावेशन, कानून एवं व्यवस्था और न्याय प्रदायगी क्षेत्र।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSSs) के बारे में
- परिभाषा: CSSs ऐसी योजनाएं हैं, जिन्हें केंद्र और राज्य द्वारा 'संयुक्त रूप से वित्त-पोषित' किया जाता है। इन्हें संविधान की राज्य सूची व समवर्ती सूची में आने वाले क्षेत्रकों में राज्यों की सहायता से कार्यान्वित किया जाता है।
- विशेषताएं: CSSs का वर्तमान ढांचा CSS के युक्तिकरण पर मुख्यमंत्रियों के उप-समूह की रिपोर्ट (2015) पर आधारित है।
- फोकस: CSS का फोकस उन योजनाओं पर रहता है, जिन्हें विज़न 2022 को साकार करने के लिए राष्ट्रीय विकास एजेंडा में शामिल किया गया है। इसके तहत केंद्र और राज्यों को एक साथ मिलकर कार्य करने की आवश्यकता होती है।
- वर्तमान स्थिति: वर्तमान में 75 केंद्र प्रायोजित योजनाएं (CSSs) चल रही हैं, जिन्हें 3 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। केंद्रीय बजट 2024-25 के अनुसार, मौजूदा समय में केंद्र सरकार अपने कुल बजटीय व्यय का लगभग 10.4% वर्तमान में चल रही 75 CSSs पर खर्च करती है।

- वित्त-पोषण: राज्यों को CSSs के लिए सभी हस्तांतरण राज्य की संचित निधि के माध्यम से किए जाते हैं। इसका अर्थ है यह कि धनराशि सीधे राज्य के प्राथमिक सरकारी खाते में जमा की जाती है।
- 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों और 2017 से योजना व गैर-योजना भेद को समाप्त करने के बाद, CSSs तथा केंद्रीय क्षेत्रक की योजनाएं (CSs) संघ द्वारा राज्यों को विशेष उद्देश्य हेतु फंड ट्रांसफर का प्राथमिक साधन बन गई हैं।
- 'कोर' योजनाओं के लिए वित्त-पोषण का ढांचा:
- 8 पूर्वोत्तर राज्य और 3 हिमालयी राज्य: योजना के वित्त-पोषण में केंद्र व राज्यों की हिस्सेदारी 90:10 के अनुपात में तय की गई है ।
- अन्य राज्य: योजना के वित्त-पोषण में केंद्र व राज्यों की हिस्सेदारी 60:40 के अनुपात में तय की गई है।
- केंद्र शासित प्रदेश: जिन केंद्र शासित प्रदेशों में विधान सभा नहीं है, वहां 100% वित्त-पोषण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
- निगरानी: संघ एवं राज्यों के साथ-साथ नीति आयोग को भी CSSs की निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है और वह थर्ड पार्टी मूल्यांकन की देखरेख भी करता है।
CSS का औचित्य
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CSS के मौजूदा ढांचे से संबंधित समस्याएं/ मुद्दे
- संसाधन वितरण संबंधी मुद्दे: वित्त वर्ष 2021-22 के बजट अनुमान से पता चलता है कि कुल वित्त-पोषण का 91.14% भाग 15 योजनाओं को प्राप्त हुआ। यहां तक कि 'अम्ब्रेला' योजनाओं के तहत आने वाली कई उप-योजनाओं को बहुत कम वित्त-पोषण प्राप्त हुआ है।
- ग्रीन रिवोल्यूशन CSS के तहत 18 अलग-अलग उप-योजनाएं शामिल हैं। इनमें वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास एवं जलवायु परिवर्तन उप-योजना के लिए 180 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जबकि राष्ट्रीय कृषि वानिकी परियोजना के लिए 34 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
- योजनाओं की अधिक संख्या: किसी योजना के अनेक लघु उप-घटक होने या अधिक संख्या में लघु योजनाओं के कारण प्रयासों में दोहराव होता है। इसके चलते संसाधनों का आवंटन भी कम होता है।
- संघ सूची में सूचीबद्ध मदों के लिए कम राजकोषीय आवंटन: राज्य सूची में सूचीबद्ध मदों पर संघ का व्यय काफी बढ़ गया है, इसलिए संघ सूची में शामिल मदों के लिए राजकोषीय आवंटन में कमी हो गई है।
- उदाहरण के लिए- राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान के अनुसार, रक्षा व्यय 2011-12 के सकल घरेलू उत्पाद के 2% से घटकर 2019-20 में 1.5% हो गया था।
- 'वन साइज फिट्स ऑल' का दृष्टिकोण: CSS की रूपरेखा केंद्रीय मंत्रालय द्वारा परिभाषित की जाती है। इस वजह से राज्यों के भीतर और राज्यों के बीच मतभेदों का समाधान करना मुश्किल हो जाता है।
- कुछ राज्यों में योजना संबंधी कम निवेश होना: केंद्र प्रायोजित योजनाओं में राज्यों को उसके निर्धारित अनुपात में योगदान करने की आवश्यकता होती है। इसके कारण उन राज्यों में निवेश कम हो जाता है, जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
- इसके अलावा, कम GSDP वाले राज्य श्रम बल, कौशल, तकनीकी विशेषज्ञता में अपर्याप्त क्षमता तथा कमजोर गवर्नेंस के कारण केंद्र की ओर से जारी फंड्स का निश्चित समय में उपयोग करने में असमर्थ होते हैं।
- बेहतर निगरानी का अभाव: वर्तमान में, CSSs परिणामों यानी आउटकम्स की बजाय प्रक्रियाओं (क्या और कैसे करना है) पर अधिक ध्यान केंद्रित करती हैं। यह निगरानी वास्तविक आउटकम्स पर आधारित होने की बजाय इनपुट पर आधारित होती है।
आगे की राह
- वित्त-पोषण को प्राथमिकता देना: 15वें वित्त आयोग के अनुसार, उन CSSs और उनके उप-घटकों के लिए धीरे-धीरे वित्त-पोषण बंद करना चाहिए, जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है या जिनका बजटीय व्यय बहुत कम है या जो राष्ट्रीय कार्यक्रम के अनुरूप नहीं है।
- वित्त-पोषण की आरंभिक सीमा: अरविंद वर्मा समिति ने 2005 में कहा था कि किसी नई CSS को तभी शुरू किया जाना चाहिए, जब वार्षिक व्यय 300 करोड़ रुपये से अधिक हो।
- मौजूदा लघु योजनाओं के लिए, वित्त-पोषण को सामान्य केंद्रीय सहायता के रूप में राज्यों को हस्तांतरित किया जाना चाहिए।
- मुद्रास्फीति सूचकांक आधारित वित्त-पोषण: योजनाओं के कुछ घटकों के वित्तीय मानदंडों जैसे मिड डे मील या पी.एम.-पोषण जैसी योजनाओं में खाना पकाने की लागत को थोक मूल्य सूचकांक से जोड़ा जाना चाहिए और उसे प्रत्येक 2 साल में संशोधित किया जाना चाहिए।
- बेहतर गवर्नेंस: 15वें वित्त आयोग के अनुसार:
- CSSs के वित्त-पोषण के पैटर्न को पारदर्शी तरीके से पहले से तय किया जाना चाहिए और उसे स्थिर रखा जाना चाहिए।
- वित्तपोषण उन द्विपक्षीय रूप से सहमति प्राप्त 'समझौतों' के आधार पर प्रदान किया जा सकता है जो विशिष्ट उद्देश्यों (उदाहरण के लिए, सेवा वितरण परिणामों या विशेष परिणामों) से संबंधित हों, न कि विस्तृत कार्यान्वयन योजनाओं पर आधारित हों।
- इस दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिए, केंद्र सरकार डेटा सिस्टम, निगरानी और मूल्यांकन तथा पारदर्शिता को बढ़ाने वाली पहलों में सहयोग कर सकती है।
- निगरानी संबंधी सूचना का प्रवाह नियमित होना चाहिए। साथ ही, इसमें वित्तीय एवं भौतिक प्रगति के नियमित विवरणों के अलावा, आउटपुट व आउटकम संकेतकों पर विश्वसनीय जानकारी भी शामिल होनी चाहिए।