सुर्ख़ियों में क्यों?
प्रधान मंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में समान नागरिक संहिता के पक्ष में समर्थन व्यक्त किया और वर्तमान धार्मिक (साम्प्रदायिक) नागरिक संहिता के स्थान पर एक धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की आवश्यकता पर बल दिया।
समान नागरिक संहिता (UCC) के बारे में
- परिभाषा: UCC पूरे देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून लागू करने का प्रावधान करती है।
- यह समान कानून सभी धार्मिक समुदायों के विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने, उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों में एक समान रूप से लागू होगा।
- वर्तमान स्थिति:
- वर्तमान में, अलग-अलग धर्मों के भारतीय नागरिक उपर्युक्त मामलों में अपने धर्म के संबंधित व्यक्तिगत कानूनों (Personal laws) से शासित होते हैं। भारत में प्रत्येक धर्म अपने विशेष कानूनों का पालन करता है।
- वर्तमान में, गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां एक प्रकार का UCC पहले से ही लागू है। वहां पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 लागू है। ज्ञातव्य है कि उत्तराखंड ने इसी वर्ष (2024) UCC को अपनाया है।
- भारत के 21वें विधि आयोग (2018) ने कहा था कि इस समय UCC का निर्माण आवश्यक या वांछनीय नहीं है। हालांकि, प्रत्येक धर्म के पारिवारिक कानूनों में सुधार किए जाने चाहिए, ताकि उन्हें लैंगिक रूप से न्यायसंगत बनाया जा सके।
भारत में समान नागरिक संहिता (UCC) की आवश्यकता क्यों है?
- संवैधानिक कर्तव्य को पूरा करना: संविधान के भाग IV के तहत अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगा।
- इससे लैंगिक न्याय, राष्ट्रीय एकता और संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित कानून के समक्ष समानता को भी बढ़ावा मिलेगा।
- UCC के लागू होने से पंथनिरपेक्ष राष्ट्र के सिद्धांतों को बनाए रखा जा सकेगा। यहां पंथनिरपेक्ष राष्ट्र से तात्पर्य एक ऐसे राष्ट्र से है, जहां धार्मिक मान्यताएं नागरिक मामलों पर लागू नहीं होती हैं।
- आधुनिक समाज की आवश्यकताओं को पूरा करना: ऐसे कानून व प्रथाएं जो धर्म के आधार पर देश को विभाजित करते हैं या समाज की प्रगति में बाधक बनते हैं, उन्हें समाप्त करना आवश्यक है।
- उदाहरण के लिए- मुस्लिम पर्सनल लॉ {मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम}, 1937 के तहत बहुविवाह वैध है, लेकिन यह महिलाओं के खिलाफ है और इसलिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करना: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार अभिसमय सहित कई मानवाधिकार सम्मेलनों और प्रोटोकॉल्स में भारत की सदस्यता को उचित ठहराने के लिए UCC जरूरी है।
- कानूनों का सरलीकरण: धार्मिक पृष्ठभूमि पर ध्यान दिए बिना व्यक्तिगत मामलों में एक मानक प्रक्रिया विवादों के त्वरित और अधिक कुशल समाधान को सुनिश्चित करेगी।
- आधुनिक समय के अनुकूल होना: UCC को लागू करने से आधुनिक सिद्धांतों को अपनाया जा सकेगा। साथ ही, यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि मौजूदा कानून नई सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप हों। इससे समावेशिता एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलेगा।
समान नागरिक संहिता (UCC) पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
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UCC को लागू करने से जुड़े मुद्दे
- विविधता के खिलाफ: व्यक्तिगत कानून जीवन के तरीके के रूप में गहराई से जुड़े हुए हैं और UCC को लागू करने से देश के विविध समुदायों की सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान कमजोर हो सकती है। इससे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है। ध्यातव्य है कि धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 25 में उल्लिखित हैं।
- आम सहमति का अभाव: यदि सभी समुदायों की सहमति और समझौते के बिना UCC को लागू किया जाता है, तो इससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।
- सहकारी संघवाद के खिलाफ: कई विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि UCC राज्यों की विधायी क्षमता में हस्तक्षेप कर सकती है। इससे सहकारी संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है।
भारत में UCC को लागू करने की दिशा में आगे की राह
- आम सहमति बनाना: UCC के संदर्भ में सरकार को धार्मिक नेताओं एवं सामुदायिक प्रतिनिधियों सहित सभी हितधारकों के साथ तर्कपूर्ण वार्ता करनी चाहिए।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव विश्लेषण: संभावित प्रभाव को ध्यान में रखते हुए और विशेषकर हाशिए पर रहने वाले व कमजोर समुदायों के लिए प्रावधान करने चाहिए।
- शिक्षा और जागरूकता: लोगों में प्रगतिशील और व्यापक दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए, ताकि वे UCC की भावना को समझ सकें।
- सभी व्यक्तिगत कानूनों का संहिताकरण: कानूनों को संहिताबद्ध करके सार्वभौमिक सिद्धांत स्थापित करना चाहिए, जो निष्पक्षता को बढ़ावा दे सके।