भारत का विदेशी ऋण (INDIA’S EXTERNAL DEBT)
वित्त मंत्रालय की तिमाही विदेशी ऋण रिपोर्ट (दिसंबर 2024) के अनुसार, दिसंबर 2023 की तुलना में विदेशी ऋण में 10.7% की वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के लिए मुख्य रूप से मूल्यांकन प्रभाव जिम्मेदार है।
- मूल्यांकन प्रभाव तब होता है, जब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की कीमत घटती है।
इस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- सकल घरेलू उत्पाद और विदेशी ऋण का अनुपात: यह सितंबर, 2024 के 19.0% से बढ़कर दिसंबर, 2024 में 19.1% हो गया है।
- संरचना: इसमें सर्वाधिक हिस्सेदारी अमेरिकी डॉलर के रूप में मूल्य-वर्गित (Denominated) ऋण की है।
- डेब्ट सर्विस (मूलधन तथा ब्याज का भुगतान): इसमें 0.1% की गिरावट (सितंबर-दिसंबर, 2024) आई है।
- दीर्घकालीन बनाम अल्पकालीन ऋण: दीर्घकालीन ऋण में मामूली वृद्धि और अल्पकालीन ऋण में मामूली गिरावट देखी गई है।
विदेशी ऋण के बारे में

- अर्थ: यह वह धन है, जो भारत सरकार और कंपनियों द्वारा देश से बाहर के स्रोतों से उधार लिया जाता है (जैसे बाह्य वाणिज्यिक उधारी)।
- यह आमतौर पर अमेरिकी डॉलर, विशिष्ट आहरण अधिकार (SDR) आदि के रूप में लिया जाता है।
- स्रोत: इसमें विदेशी वाणिज्यिक बैंक, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (जैसे IMF, विश्व बैंक आदि) या कोई अन्य देश हो सकते हैं।
बढ़ते विदेशी ऋण से जुड़ी चुनौतियां
- ऋण चुकाने का बोझ: यह आमतौर पर अन्य मुद्राओं में लिया जाता है। इसलिए, विनिमय दर में बदलाव से ऋण के बोझ में भी वृद्धि हो सकती है।
- बढ़ती मुद्रास्फीति: दीर्घकालिक मुद्रास्फीति के चलते ब्याज दरें भी बढ़ सकती हैं। इससे आर्थिक संवृद्धि धीमी हो सकती है और GDP के अनुपात में विदेशी ऋण भी बढ़ सकता है।
- वैश्विक परिदृश्य: वैश्विक स्तर पर स्टैगफ्लेशन का खतरा भारत से निर्यात की मांग को घटा सकता है, जो डेब्ट सर्विस अनुपात को प्रभावित कर सकता है।
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लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LIQUIDITY COVERAGE RATIO: LCR)
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने लिक्विडिटी कवरेज रेशियो को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- RBI ने यह भी कहा कि बैंकों को खुदरा ग्राहकों की जमाओं (retail deposits) पर कम रन-ऑफ फैक्टर निर्धारित करना होगा।
- रन-ऑफ फैक्टर वास्तव में किसी संकट की स्थिति में जमाकर्ताओं द्वारा बैंकों में जमा धनराशि में से निकाली जा सकने वाली प्रतिशत राशि है।
लिक्विडिटी कवरेज रेशियो (LCR) के बारे में
- यह उच्च गुणवत्ता वाली लिक्विड एसेट (High-Quality Liquid Assets) की मात्रा है। इन्हें वित्तीय संस्थानों को अपने पास सुरक्षित रखना अनिवार्य होता है, ताकि वे बाजार में उथल-पुथल या संकट की स्थिति में अपनी अल्पकालिक देनदारियों को पूरा कर सकें।
- LCR को बेसल समझौते (Basel Accords) में नए संशोधन द्वारा जोड़ा गया है।
- बेसल समझौते ‘बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति’ द्वारा तैयार किए गए नियम या मानक हैं।
- उच्च LCR बैंकों को अधिक तरल परिसंपत्तियां रखने के लिए बाध्य करता है। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति में कमी आती है।
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IMF की वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (IMF’S GLOBAL FINANCIAL STABILITY REPORT)
IMF की ‘वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट’ में भू-राजनीतिक जोखिमों का वैश्विक वित्तीय स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया गया।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक भू-राजनीतिक जोखिमों का उच्च स्तर बना हुआ है। इन जोखिमों के व्यापक वित्तीय स्थिरता पर बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंताएं भी बढ़ रही हैं।
मुख्य भू-राजनीतिक जोखिम
- आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करने वाले विविध जोखिम: देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और संघर्ष, संसाधन प्राप्त करने की होड़, साइबर अटैक जैसी चुनौतियों के कारण वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हो सकती हैं।
- वैश्विक शक्ति संतुलन, आर्थिक केंद्रों तथा व्यापार में व्यापक बदलाव: नए व्यापारिक समूह बन रहे हैं और निवेश के नए केंद्र उभरकर सामने आ रहे हैं। इससे पारंपरिक वैश्विक शक्ति संतुलन में भी बदलाव देखे जा रहे हैं।
- कर व्यवस्था में एकरूपता का अभाव: उदाहरण के लिए, जहां एक ओर कई देश मिनिमम ग्लोबल टैक्स को अपना रहे हैं, तो दूसरी ओर कुछ देश बहुपक्षीय टैक्स समझौतों से बाहर निकल रहे हैं।
- कार्यबल पर जनसांख्यिकीय, तकनीकी और सांस्कृतिक दबाव: विकसित देशों की आबादी में जहां एक ओर वृद्ध लोगों का अनुपात और सेवानिवृत्त होने वाले लोगों की जनसंख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर इन देशों में जन्म दर कम हो रही है।
- देशों और समुदायों के बीच सांस्कृतिक संघर्ष में वृद्धि हुई है। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते उपयोग से भी जोखिम में वृद्धि हुई है।
भू-राजनीतिक जोखिमों के प्रभाव
- सॉवरेन जोखिम: सैन्य खर्च में बढ़ोतरी और आर्थिक मंदी के चलते कई देशों का सरकारी ऋण, उनके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। इससे उनकी वित्तीय स्थिरता पर संकट गहराता जा रहा है और बढ़ते कर्ज भार के कारण डिफॉल्ट (ऋण न चुकाने) होने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।
- वित्तीय खतरों की चपेट में अन्य देशों का आना: भू-राजनीतिक जोखिम व्यापार और वित्तीय संबंधों के माध्यम से अन्य देशों में फैल सकते हैं। इससे विश्व के कई देश आर्थिक संकट की चपेट में आ सकते हैं।
- मैक्रोइकॉनॉमिक प्रभाव: जोखिमों के बढ़ने से आर्थिक व्यवधान उत्पन्न हो सकते हैं। इनमें आपूर्ति श्रृंखला का बाधित होना और पूंजी का देश से बाहर निकलना जैसे आर्थिक व्यवधान शामिल हैं।
- निवेशकों का विश्वास कम होना: आमतौर पर भू-राजनीतिक जोखिम निवेशकों के विश्वास को कम करते हैं। इससे बाजार में अनिश्चितता और अस्थिरता बढ़ती है।
- उदाहरण के लिए, अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध की वजह से हाल में दोनों देशों के शेयर बाजारों में भारी गिरावट दर्ज की गई।

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वैश्विक व्यापार परिदृश्य और सांख्यिकी-2025 रिपोर्ट (GLOBAL TRADE OUTLOOK AND STATISTICS 2025)
यह रिपोर्ट विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने जारी की है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- वर्तमान परिस्थितियों में, वर्ष 2025 में विश्व पण्य व्यापार (Merchandise Trade) की मात्रा में 0.2% की गिरावट दर्ज होने का अनुमान है।
- यह गिरावट विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका में अधिक दर्ज की जाएगी। इस क्षेत्र से निर्यात में 12.6% की गिरावट होने का अनुमान है।
- रिपोर्ट में विश्व व्यापार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले कई गंभीर खतरों का उल्लेख किया गया है। इनमें रेसिप्रोकल टैरिफ का प्रयोग और नीतिगत अनिश्चितता के प्रभाव शामिल हैं।
- इस रिपोर्ट में पहली बार पण्य (वस्तु) व्यापार अनुमान के साथ-साथ सेवाओं के व्यापार के लिए भी पूर्वानुमान शामिल किया गया है।
- सेवाओं के व्यापार की मात्रा में 2025 में 4.0% की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
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- विश्व व्यापार संगठन (WTO)
Articles Sources
अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन और रिपोर्टिंग मानक (INTERNATIONAL STANDARDS OF ACCOUNTING AND REPORTING: ISAR)
भारत को 2025–2027 के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र-अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन और रिपोर्टिंग मानकों पर विशेषज्ञों के अंतर-सरकारी कार्यदल (ISAR) में निर्विरोध चुना गया।
ISAR के बारे में
- ISAR एक स्थायी अंतर-सरकारी कार्यदल है। इसका उद्देश्य सदस्य देशों को वित्तीय रिपोर्टिंग और गैर-वित्तीय डिस्क्लोजर की गुणवत्ता में सुधार करने तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने में सहायता करना है।
- इनमें पर्यावरणीय मुद्दे, कॉर्पोरेट गवर्नेंस और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) जैसे पहलू शामिल होते हैं।
- ISAR का प्रत्येक वर्ष जिनेवा में सत्र आयोजित होता है। इसमें कंपनियों के लेखांकन और रिपोर्टिंग से जुड़े नए मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
- सदस्य: ISAR में 34 औपचारिक सदस्य होते हैं। ये तीन वर्षों के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।
- इन सदस्यों में शामिल हैं: 9 अफ्रीकी देश, 7 एशियाई देश, 6 लैटिन अमेरिकी देश, 3 पूर्वी यूरोपीय देश तथा 9 पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देश।
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- अंतर्राष्ट्रीय लेखांकन और रिपोर्टिंग
- वित्तीय रिपोर्टिंग
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BOMBAY STOCK EXCHANGE: BSE)
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) साल 2025 में अपनी स्थापना की 150वीं वर्षगांठ मना रहा है।
BSE के बारे में
- इसकी स्थापना वर्ष 1875 में 'द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन' के रूप में हुई थी।
- BSE एशिया का पहला स्टॉक एक्सचेंज है।
- साथ ही, खरीद-बिक्री में लगने वाले समय के मामले में यह दुनिया का सबसे तेज स्टॉक एक्सचेंज भी है।
- वर्ष 2017 में BSE, शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने वाला (लिस्टेड) भारत का पहला स्टॉक एक्सचेंज बना था।
- कार्य: BSE इक्विटी, करेंसी, डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स, डेरिवेटिव्स और म्यूचुअल फंड्स में कारोबार के लिए प्रभावी एवं पारदर्शी बाजार प्रदान करता है।
- विनियामक संस्था: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI/सेबी)।
- सेबी एक वैधानिक संस्था। इसे सेबी अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित किया गया है।
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- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड
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नैनो-सल्फर (NANO SULPHUR)
ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी/ TERI) के वैज्ञानिकों का दावा है कि इसका नैनो सल्फर पारंपरिक सरसों की किस्मों का उपयोग करके DMH-11 के समान उपज वृद्धि देता है।
- DMH-11 आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों की एक किस्म है।
TERI के नैनो-सल्फर के बारे में
- यह एक पूरी तरह से हरित (ग्रीन) उत्पाद है। इसमें पादप संवर्धन करने वाले जीवाणु का उपयोग किया जाता है, जो एंजाइम्स और मेटाबोलाइट्स स्रावित करते हैं।
- यही गुण इसे नैनो यूरिया और नैनो डाई-अमोनियम फॉस्फेट जैसे अन्य नैनो-उर्वरकों से अलग बनाता है।
- नैनो-सल्फर में जीवाणुरोधी और कीटनाशक गुण होते हैं।
- लाभ:
- यह पादप वृद्धि को बढ़ावा देता है।
- यह पादपों को तनाव (जैसे सूखा, गर्मी आदि) सहन करने में सक्षम बनाता है।
- यह पादप पोषण की गुणवत्ता में सुधार करता है।
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लवणीय जलीय कृषि केंद्र (SALINE AQUACULTURE HUBS)
सरकार हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लवणीय जलीय कृषि केंद्रों की स्थापना पर जोर दे रही है।
लवणीय जलीय कृषि के बारे में

- अर्थ: इसके तहत अंतर्देशीय लवणीय जलीय कृषि के लिए लवणता प्रभावित भूमि (जो प्रायः पारंपरिक कृषि के लिए अनुपयुक्त होती है) का उपयोग किया जाता है।
- जलीय कृषि: इसमें जलीय सजीवों जैसे मछली, घोंघे, क्रस्टेशियंस आदि का पालन किया जाता है और जलीय पादपों की खेती की जाती है, ताकि उनका उत्पादन बढ़ाया जा सके।
- महत्त्व: जलीय कृषि के लिए लवणीय भूमि संसाधनों की क्षमता का उपयोग करके रोजगार और आजीविका के अवसर उत्पन्न होगें; जलीय कृषि संबंधी उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा आदि।
- भारत में संभावनाएं:
- उपर्युक्त 4 राज्यों के 58,000 हेक्टेयर चिन्हित लवणीय क्षेत्रों में से केवल 2,608 हेक्टेयर का ही वर्तमान में उपयोग किया जा रहा है।
- भारत विश्व स्तर पर संवर्धित झींगों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। साथ ही, समुद्री खाद्य निर्यात मूल्य में 65% हिस्सेदारी अकेले झींगों की है, जिसे लवणीय जल-कृषि के माध्यम से और बढ़ाया जा सकता है।
लवणीय जलीय कृषि की क्षमता का उपयोग करने हेतु किए जाने वाले उपाय
- नीतिगत सुधार: क्षेत्र संबंधी सीमा को 2 हेक्टेयर से बढ़ाकर 5 हेक्टेयर किया जाना चाहिए। साथ ही, उत्तर भारतीय राज्यों में लवणीय जलीय कृषि के संधारणीय विकास के लिए रोडमैप तैयार करने हेतु एक राष्ट्रीय स्तर की समिति का भी गठन किया जाना चाहिए।
- बेहतर विपणन माध्यम: सिरसा में एक इंटीग्रेटेड एक्वा पार्क स्थापित करने की सिफारिश की गई है, ताकि विपणन माध्यमों को बेहतर किए जा सके।
- तकनीकी ज्ञान का प्रसार: राज्यों द्वारा लवणीय जलीय कृषि के लिए नए क्षेत्रों की पहचान करने तथा आउटरीच आधारित अनुसंधान करने हेतु कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) का उपयोग किया जाना चाहिए।
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