
आदि शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य की चार पंचधातु (पंचलोह) की प्रतिमाएं उत्तराखंड के केदारनाथ, बद्रीनाथ, उत्तरमान्य (ज्योतिर्मठ) में स्थापित की जाएंगी।
आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी ई.) के बारे में
- जन्म: कलाडी, केरल में हुआ था।
- उन्होंने अद्वैतवाद (गैर-द्वैतवाद) दर्शन का प्रतिपादन किया था।
- यह दर्शन ब्रह्म की अद्वैत प्रकृति पर जोर देता है। ब्रह्म परम, निराकार वास्तविकता है। इसके अनुसार आत्मा (आत्मन) ब्रह्म से अलग नहीं है।
- शंकराचार्य के अनुसार, दुनिया में जो भिन्नता (द्वैत) दिखाई देती है, वह माया (भ्रम) है तथा मोक्ष (मुक्ति) तब मिलता है, जब व्यक्ति आत्मा और ब्रह्म की एकता को पहचान लेता है।
- उन्होंने आध्यात्मिक साधना में भक्ति को भी महत्व दिया।
- उन्होंने देश की चार दिशाओं में चार मठ- श्रृंगेरी (दक्षिण), द्वारका (पश्चिम), पुरी (पूर्व) और बद्रीनाथ (उत्तर) स्थापित किए थे।
- साहित्यिक कृतियां: भज गोविंदम, आत्म शतकम्, सौंदर्य लहरी, ब्रह्म सूत्र भाष्य, आदि।