सुप्रीम कोर्ट ने गायत्री बालाराम बनाम आईएसजी नोवासॉफ्ट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड मामले में उपर्युक्त निर्णय सुनाया।
- शीर्ष न्यायालय के अनुसार माध्यस्थम् द्वारा दिए गए निर्णयों को माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) की धारा 34 या 37 के तहत संशोधित किया जा सकता है। हालांकि, ये संशोधन निम्नलिखित परिस्थितियों में ही किए जा सकते हैं:
- जब निर्णयों के वैध हिस्सों में से अवैध हिस्सों को हटा करके लागू किया जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में ओम्ने माजूस कॉन्टिनेत इन से माइनस’ सिद्धांत का उल्लेख किया। इसका अर्थ है ‘बड़ी शक्ति में कम शक्ति निहित होती है’। न्यायिक शब्दावली में इसका आशय है कि किसी माध्यस्थम् के निर्णय को रद्द करने की शक्ति में आंशिक रूप से रद्द करने की शक्ति भी निहित है।
- कोई लिपिकीय, गणना संबंधी या टंकण संबंधी त्रुटि को सही करने के लिए।
- कुछ मामलों में निर्णय के पश्चात देय ब्याज में संशोधन करने के लिए।
- सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके भी निर्णयों को संशोधित कर सकता है। हालांकि, ये संशोधन माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 के मूल सिद्धांतों के अनुरूप होने चाहिए।
- संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय करने के लिए कोई भी आदेश पारित करने की शक्ति दी गई है।
- जब निर्णयों के वैध हिस्सों में से अवैध हिस्सों को हटा करके लागू किया जाता है।
भारत में माध्यस्थम् व्यवस्था (Arbitration in India):
- आशय: यह विवादों के समाधान का एक वैकल्पिक उपाय है। इसमें शामिल अन्य दो उपाय सुलह (Conciliation) और मध्यस्थता (Mediation) हैं।
- इस व्यवस्था में अदालतों के बाहर विवाद के पक्षकार सहमति के आधार पर विवाद सुलझाने की निजी प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं।
- महत्त्व:
- इसमें निर्णय कम प्रतिकूल होते हैं,
- यह विवाद समाधान की लचीली और त्वरित प्रक्रिया है।
- कानूनी फ्रेमवर्क: भारत में माध्यस्थम और सुलह अधिनियम, 1996 के तहत इस तरह से विवाद सुलझाए जाते हैं। इस अधिनियम को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून आयोग (UNCITRAL) के मॉडल लॉ ऑन इंटरनेशनल कमर्शियल आर्बिट्रेशन, 1985 के अनुसार बनाया गया है।
- अधिनियम की धारा 34(1) के अनुसार, माध्यस्थम् के निर्णय को रद्द करने के लिए केवल अदालत का ही सहारा लिया जा सकता है।
- अधिनियम की धारा 37 में यह कहा गया है कि किन आदेशों के खिलाफ अदालत में अपील की जा सकती है।
