यह ड्राफ्ट पॉलिसी पेपर खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के परामर्श से मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने तैयार किया है।
ड्राफ्ट पॉलिसी पेपर के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- 1970 के दशक से अब तक भारत में ऊँटों की संख्या में 75% से अधिक की गिरावट आई है।
- ऊंटों की संख्या में गिरावट के कारण: इनमें-
- पारंपरिक रूप से चली आ रही उनकी आर्थिक उपयोगिता में कमी;
- चरागाह भूमि की हानि;
- पर्यावरणीय दबाव (मरुस्थलीकरण, आक्रामक प्रजातियां, लंबे समय तक सूखा पड़ना आदि);
- प्रतिबंधात्मक कानूनी फ्रेमवर्क;
- ऊंट आधारित उत्पादों के लिए अविकसित बाजार आदि शामिल हैं।
- रणनीतिक सिफारिशें: इनमें-
- राष्ट्रीय ऊँट संधारणीयता पहल (NCSI) शुरू करना;
- चराई के लिए चरागाह भूमि को सुरक्षित करना;
- ऊँट आधारित डेयरी संबंधी मूल्य श्रृंखलाओं को मजबूत करना;
- ऊँट आधारित पर्यटन को पुनर्जीवित करना;
- पशु चिकित्सा और आनुवंशिक संरक्षण कार्यक्रम शुरू करना आदि शामिल हैं।
ऊँट के बारे में
- इसे "रेगिस्तान का जहाज" भी कहा जाता है। ऊंट शुष्क भूमि संबंधी पारिस्थितिकी-तंत्र के लिए असाधारण रूप से अनुकूल होते हैं। ऊँट पालन मुख्य रूप से (90%) राजस्थान और गुजरात में किया जाता है।
- ऊँट पालन से जुड़े पशुपालक समुदायों में रायका, रबारी, फकीरानी जाट और मांगणियार समुदाय शामिल हैं।
- इनकी विशेषताएं: ये बिना पानी पिए कई दिन तक जीवित रह सकते हैं; ये लम्बी दूरी तक जा सकते हैं; ये कांटेदार रेगिस्तानी पौधों को खा सकते हैं आदि।
- ऊंटों के कूबड़ में वसा का भंडार होता है, जो उन्हें भोजन की कमी होने पर ऊर्जा प्रदान करती है। साथ ही, ऊंट अपने कूबड़ में नहीं बल्कि रक्त कोशिकाओं में पानी जमा करते हैं।
- ऊँटों की भूमिका:
- पारिस्थितिक भूमिका: इनके द्वारा पानी की कम खपत; चरने संबंधी चयनात्मक व्यवहार; और मुलायम पैर वनस्पति विविधता को बनाए रखने तथा मरुस्थलीकरण को रोकने में मदद करते हैं।
- ऊँट का गोबर शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी को समृद्ध बनाता है।
- पारिस्थितिक भूमिका: इनके द्वारा पानी की कम खपत; चरने संबंधी चयनात्मक व्यवहार; और मुलायम पैर वनस्पति विविधता को बनाए रखने तथा मरुस्थलीकरण को रोकने में मदद करते हैं।
भारत में ऊंटों की प्रमुख नस्लें
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