हाल ही में, वस्तु एवं सेवा कर (GST) में किए गए नवीनतम बदलावों के तहत GST प्रतिपूर्ति उपकर को समाप्त कर दिया गया है। इससे राज्यों की राजस्व हानि और राजकोषीय स्वायत्तता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
- GST प्रतिपूर्ति उपकर का उद्देश्य GST के लागू होने के बाद राज्यों को होने वाली राजस्व हानि के लिए मुआवजा प्रदान करना है।
राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता से संबंधित रुझान
- राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता का ह्रास: GST ने कराधान संबंधी शक्तियों को राज्यों से GST परिषद को हस्तांतरित कर दिया है। गौरतलब है क़ि GST परिषद में केंद्र का प्रभुत्व है।
- व्यय-संसाधन के मध्य असंतुलन: कानून एवं व्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे विषयों पर प्रमुख जिम्मेदारियां राज्यों की होती है। GST के लागू होने के बाद से ज्यादातर कर वसूलने की शक्ति केंद्र के पास चली गई है। ऐसे में राज्यों के पास खर्च करने की जिम्मेदारी तो बनी रही, लेकिन राजस्व जुटाने की शक्ति कम हो गई। इससे राजकोषीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।
- वित्तीय संसाधन आवंटन में घटती हिस्सेदारी: सकल कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में राज्यों को मिलने वाला हिस्सा कम हो गया है। ऐसा इस कारण, क्योंकि अब अधिक उपकर और अधिभार (surcharge) (जो राज्यों के साथ साझा नहीं किये जाते हैं) लागू हो गए हैं।।
- कर बंटवारे के मानदंडों को लेकर असंतोष: वित्त आयोग के कर बंटवारे के मानदंडों पर भी सवाल उठाए गए हैं, जो प्रायः प्रगतिशील राज्यों को नुकसान पहुंचाते हैं।
- केंद्रीय हस्तांतरण पर निर्भरता: राज्यों के राजस्व में केंद्रीय हस्तांतरण का योगदान 44% है, कुछ राज्यों में इस पर निर्भरता अधिक है (जैसे- बिहार 72%)। इससे तरलता प्रबंधन प्रभावित होता है और केंद्र में सत्तारूढ़ दल के विपक्षी राजनीतिक दल द्वारा शासित राज्यों में राजनीतिक तनाव उत्पन्न हो सकता है।
आगे की राह
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