यह समर्थन शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी विभाग से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 370वीं रिपोर्ट में प्रकट किया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों (HEIs) में आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था पर जोर दिया गया है।
इस संबंध में निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों की वर्तमान स्थिति
- हाशिए पर मौजूद समुदायों का अत्यंत कम प्रतिनिधित्व: उदाहरण के लिए- 2024-25 में बिट्स पिलानी में 5,137 छात्रों में से केवल 10% OBCs, 0.5% SCs और 0.8% STs छात्र थे।
- एक बाधा के रूप में अधिक फीस: निजी विश्वविद्यालयों की फीस बहुत अधिक होती है, जो समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के छात्रों के लिए वहन करना मुश्किल हो जाता है।
निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की आवश्यकता क्यों है?
- निजी क्षेत्रक का प्रभुत्व: AISHE 2021-22 के अनुसार, भारत के 65.3% कॉलेज निजी गैर-सहायता प्राप्त हैं और 517 निजी विश्वविद्यालय मौजूद हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्रक की अक्षमता: बढ़ती जनसंख्या और उच्चतर शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के 50% सकल नामांकन अनुपात लक्ष्य को देखते हुए अकेला सार्वजनिक क्षेत्रक सभी छात्रों को उच्चतर शिक्षा उपलब्ध नहीं करा सकता है।
निजी उच्चतर शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के लिए संवैधानिक प्रावधान
- अनुच्छेद 15(5): यह राज्य को निजी के साथ-साथ अन्य शैक्षणिक संस्थानों (अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छोड़कर) में SCs, STs, और सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBCs) के प्रवेश के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
- कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले: प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 15(5) की संवैधानिक वैधता को स्पष्ट रूप से बरकरार रखा।
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