हाल ही में, RBI के बुलेटिन में उल्लेख किया गया है कि बागवानी जैसी उच्च मूल्य वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देने के माध्यम से कृषि क्षेत्रक का विविधीकरण ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त कर सकता।
बागवानी या हॉर्टिकल्चर क्षेत्रक के बारे में
- यह एक व्यापक और विविध कृषि क्षेत्रक है। इसमें फलों, सब्जियों, फूलों और सजावटी पौधों की खेती, उत्पादन, प्रसंस्करण एवं विपणन शामिल है।
- भारत विश्व में फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। प्रथम स्थान पर चीन है।
बागवानी कृषि विविधीकरण के प्रमुख रुझान
- कृषि क्षेत्रक में संवृद्धि का मुख्य चालक: बागवानी क्षेत्रक का कृषि सकल मूल्य-वर्धन (GVA) में 33% का योगदान है।
- बदलती आहार प्राथमिकताएं: ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में खाद्य व्यय में फलों का हिस्सा बढ़ रहा है।
- लघु और सीमांत किसानों की भागीदारी: वे अपनी भूमि के बड़े हिस्सों पर बागवानी फसलों की खेती करते हैं।
मुख्य चिंताएं या चुनौतियां
- उपज में उतार-चढ़ाव: उदाहरण के लिए- 1992-93 से 2021-22 के बीच अंगूर और चीकू की पैदावार में गिरावट दर्ज की गई है।
- उपज के भंडारण की कम क्षमता: इस वजह से भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.5 ट्रिलियन रुपये का नुकसान होता है।
- मूल्य में उतार-चढ़ाव: उदाहरण के लिए- मौसम की परिस्थितियों के कारण टमाटर, प्याज़ और आलू (TOP) की कीमतों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
भविष्य के लिए नीतिगत सिफारिशें
- बाजार से बेहतर तरीके से जोड़ना: किसानों को निर्यात बाजारों व शहरी उपभोक्ताओं के बीच मजबूती से जोड़ना चाहिए।
- मिश्रित फसल (इंटरक्रॉपिंग) को बढ़ावा: बागवानी और गैर-बागवानी फसलों की मिश्रित खेती को बढ़ावा देना चाहिए। इससे उपज में सुधार होगा, मृदा की उर्वरता बनी रहेगी और किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी।
- कृषि अनुसंधान को बढ़ावा: जलवायु परिवर्तन और कीट प्रबंधन जैसी नई चुनौतियों से निपटने के लिए तकनीकों का विकास करना चाहिए तथा उत्पादकता में सुधार करना चाहिए।
- कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों का विकास: यह निर्यात में उच्च वृद्धि, फसल-कटाई पश्चात हानियों में कमी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने में मदद करेगा।
