इस वर्किंग पेपर में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि भारत में स्थायी प्रतिष्ठान नियमों से जुड़ी जटिलताएं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) के आगमन या अन्तर्वाह को प्रभावित करती हैं।
स्थायी प्रतिष्ठान के बारे में
- स्थायी प्रतिष्ठान व्यवसाय का एक निश्चित स्थान होता है, जहां उद्यम अपनी गतिविधियां पूर्णतः या आंशिक रूप से संचालित करता है।
- स्थायी प्रतिष्ठान से यह तय होता है कि किसी देश को विदेशी (ग़ैर-निवासी) कंपनियों के कारोबार से होने वाली आय पर कर लगाने का अधिकार है। इससे निवेश के माहौल और पूंजी के प्रवाह पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- स्रोत देश (जहां स्थायी प्रतिष्ठान स्थापित है) को अपनी सीमाओं के भीतर स्थायी प्रतिष्ठान के लाभ पर कर लगाने का अधिकार है।
- भारत में आयकर अधिनियम, 1961 में स्थायी प्रतिष्ठान के निर्धारण के लिए "कारोबारी संबंध” (Business Connection) पद का प्रयोग किया गया है और स्थायी प्रतिष्ठान की विशिष्ट परिभाषाएं मुख्य रूप से दोहरे कराधान से बचाव समझौतों (DTAAs) में मौजूद हैं।
- भारत ने महत्वपूर्ण आर्थिक उपस्थिति (SEP) मानदंड लागू करके स्थायी प्रतिष्ठान की परिभाषा का विस्तार किया है, ताकि उन डिजिटल कारोबार पर कर लगाया जा सके जिनकी भारत में भौतिक उपस्थिति नहीं है।
- स्थायी प्रतिष्ठान नियमों से संबंधित मुद्दे: परिभाषा के मामले में अस्पष्टता के कारण निम्नलिखित समस्याएं देखी जाती हैं-
- कर संबंधी जोखिम,
- अनुपालन संबंधी बोझ,
- कर प्राधिकारियों और कंपनियों के बीच लाभ निर्धारण को लेकर अलग-अलग नजरिया,
- आर्म्स लेंथ सिद्धांत का मिश्रित उपयोग आदि।
वर्किंग पेपर में की गई की प्रमुख सिफारिशें
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