CACP ने अपनी हालिया रिपोर्ट ‘रबी फसलों के लिए मूल्य नीति, विपणन सत्र 2024-25’ में उर्वरकों से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
इस रिपोर्ट में प्रकट किए गए प्रमुख मुद्दे
- उर्वरकों से मिलने वाले लाभ में कमी: NPK (नाइट्रोजन, फास्फोरस, और पोटेशियम) का प्रति किलोग्राम खाद्यान्न उत्पादन 12 किलोग्राम (1960-69) से घटकर 2020 में 3 किलोग्राम हो गया है।
- सब्सिडी संरचना का प्रभाव: उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी के कारण यूरिया का अत्यधिक उपयोग हो रहा है। इससे पोषक तत्वों और साथ ही मिट्टी की उर्वरता में भी असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।
- उर्वरक का असमान उपयोग: कुछ राज्यों और जिलों में उर्वरक का प्रति हेक्टेयर उपयोग आवश्यकता से अधिक है, जबकि अन्य में बहुत कम है।
- उदाहरण के लिए- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ जिलों में प्रति हेक्टेयर 500 किलोग्राम से अधिक उर्वरक का उपयोग किया गया है, जो निर्धारित स्तर से कहीं अधिक है।
- आयात पर निर्भरता: देश की 30% उर्वरक मांग आयात से पूरी होती है, जिसमें कच्चा माल और तैयार उर्वरक दोनों शामिल हैं।
CACP द्वारा की गई सिफारिशें
- यूरिया की कीमतों में चरणबद्ध वृद्धि करना: यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी का उपयोग P और K उर्वरकों (फास्फोरस एवं पोटेशियम) को समर्थन देने के लिए किया जाना चाहिए।
- एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन (INM) को बढ़ावा देना: इसके तहत रासायनिक उर्वरकों, जैविक खाद और जैव-उर्वरकों को एकीकृत किया जाना चाहिए।
- मृदा परीक्षण को बेहतर करना: इसके तहत प्रयोगशालाओं को उन्नत करना, आधुनिक उपकरण स्थापित करना, तथा रियल टाइम में मृदा विश्लेषण और परामर्श सेवाओं के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना आदि शामिल किया जाना चाहिए।
उर्वरक संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए उपाय
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