यह सुझाव हाल ही में कुछ वैश्विक घटनाओं के संदर्भ में आया है, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा गाइडिंग एंड इस्टेबलिशिंग नेशनल इनोवेशन फॉर यूएस स्टेबलकॉइनस एक्ट (GENIUS एक्ट) और दक्षिण कोरिया द्वारा डिजिटल एसेट बेसिक एक्ट बिल पारित किया जाना।
सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) और स्टेबलकॉइन के बारे में:
- CBDC एक नई प्रकार की मुद्रा है, जो केवल डिजिटल रूप में होती है।
- इसके लिए केंद्रीय बैंक करेंसी को प्रिंट करने की बजाय एक ऐसी डिजिटल मुद्रा (डिजिटल सिक्के) जारी करता है जो सभी के लिए आसानी से उपलब्ध होती है। इससे डिजिटल लेन-देन और पैसे भेजना सरल एवं तेज हो जाता है।
- स्टेबलकॉइन एक प्रकार की प्रोग्रामेबल क्रिप्टोकरेंसी है, जिसका मूल्य किसी अन्य परिसंपत्ति प्रायः अमेरिकी डॉलर या अन्य मुद्रा से जुड़ा होता है।
स्टेबलकॉइन की तुलना में CBDC को प्राथमिकता देने की आवश्यकता क्यों है?
- संप्रभु समर्थन: CBDC को कानूनी मुद्रा माना जाता है। इसका अर्थ है कि सरकार इसे हर तरह के लेन-देन में स्वीकार और मान्यता देती है।
- CBDC एक विनियामक फ्रेमवर्क के तहत संचालित होती है, जिससे उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। हालांकि, बहुत से स्टेबलकॉइन्स के लिए विनियामक फ्रेमवर्क एवं निरीक्षण का अभाव है।
- सीमा-पार भुगतान में दक्षता: CBDC अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधी भुगतान को सरल और तेज कर सकती है। इससे स्विफ्ट (SWIFT) जैसे मध्यवर्तियों पर निर्भरता कम हो सकती है।
- अन्य: यह मौद्रिक नीति के साथ बेहतर तरीके से एकीकृत होती है। यह समावेशी और कम लागत वाली सार्वजनिक भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देती है।
भारत में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) के बारे में
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