हालिया दिनों में यह सुर्ख़ियों में रहा है कि केंद्र सरकार ने जनवरी 2025 के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप अभी तक घरेलू कामगारों के अधिकारों के लिए एक व्यापक कानून
नहीं बनाया है।
अन्य मौजूदा वैधानिक फ्रेमवर्क्स

- उचित मजदूरी का अधिकार: कामगारों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के तहत कम-से-कम राज्य द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी मिलनी चाहिए।
- सुरक्षित कार्य दशाओं का अधिकार: नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, निषेध और रोकथाम) अधिनियम, 2013 (POSH अधिनियम, 2013) के तहत दुर्व्यवहार-मुक्त परिवेश उपलब्ध कराना होता है।
- दुर्व्यवहार/ शोषण से सुरक्षा: भारतीय नागरिक सुरक्षा (BNS) संहिता, 2023 सभी प्रकार के दुर्व्यवहार के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है। साथ ही, कानूनी राहत और शिकायत तंत्र को सक्षम बनाती है।
- राज्य स्तरीय पहलें: तमिलनाडु मैनुअल वर्कर अधिनियम, 1982 के तहत कल्याणकारी लाभ और न्यूनतम मजदूरी प्रदान करता है। कर्नाटक का 2025 विधेयक कल्याण कोष में कामगार पंजीकरण, अनुबंध, न्यूनतम मजदूरी आदि को अनिवार्य करता है।
कानूनी संरक्षण को लागू करने में समस्याएं
- राज्यों में अनियमित विनियमन: न्यूनतम मजदूरी और श्रम सुरक्षा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हैं। इसके अलावा, इनका प्रवर्तन भी कमजोर है।
- श्रम संहिता के अंतर्गत बहिष्करण: प्रतिष्ठानों या उद्योगों के संबंध में "श्रमिक" को परिभाषित किया गया है। घरों में कार्यरत श्रमिकों, जैसे- घरेलू कामगारों को शामिल नहीं किया गया है।
- सीमित संगठन: असंगठित कार्यस्थल, प्रवासी स्थिति, खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति, आदि के कारण यूनियन बनाना कठिन हो जाता है।
- डेटा और परिभाषा संबंधी मुद्दे: विश्वसनीय डेटा का अभाव और घरेलू कार्य की विवादित परिभाषाएं नीति-निर्माण को जटिल बनाती हैं।
आगे की राह
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