ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था (Rural Non-Farm Economy: RNFE) | Current Affairs | Vision IAS
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ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था (Rural Non-Farm Economy: RNFE)

26 Dec 2024
31 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में जारी "ग्रामीण युवा रोजगार की स्थिति (State of Rural Youth Employment) 2024" रिपोर्ट से पता चलता है कि अधिकतर ग्रामीण युवा कृषि को अरुचिकर या कम आकर्षक पेशा मानते हैं। वे लघु व्यवसायों सहित गैर-कृषि क्षेत्रकों की नौकरियों को प्राथमिकता देते हैं।

अन्य संबंधित तथ्य

  • यह रिपोर्ट डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (DUI) ने तैयार की है। यह संस्था ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (TRI), संबोधि रिसर्च तथा ग्लोबल डेवलपमेंट इनक्यूबेटर (GDI) की एक संयुक्त पहल है।
  • रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, 70% ग्रामीण युवाओं ने कृषि को कम उत्पादकता और कम लाभप्रदता के कारण प्राथमिकता नहीं दी।

ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था (RNFE) के बारे में

  • ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था को स्थानिक (Spatially) और कार्यात्मक (Functionally) रूप से परिभाषित किया जाता है। इस संदर्भ में, स्थानिक आयाम ग्रामीण क्षेत्रों को और कार्यात्मक आयाम गैर-कृषि गतिविधियों को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, RNFE भौगोलिक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित होती है और यह कृषि उत्पादन से संबंधित नहीं होती है। इस प्रकार, RNFE में निम्नलिखित गतिविधियां शामिल हैं:
  • मूल्य श्रृंखला: कृषि प्रसंस्करण, परिवहन, वितरण, विपणन;
  • रिटेल या खुदरा गतिविधि: पर्यटन, विनिर्माण, निर्माण और खनन;
  • स्वरोजगार: हस्तशिल्प, बेकरी, मैकेनिक्स, कियोस्क, इत्यादि।
  • हालांकि, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में परंपरागत रूप से कृषि प्राथमिक गतिविधि रही है, लेकिन ग्रामीण आय का दो-तिहाई हिस्सा अब गैर-कृषि गतिविधियों यानी RNFE से आता है।
    • भारत में विनिर्माण क्षेत्रक में जोड़े गए मूल्य में आधे से अधिक का योगदान ग्रामीण क्षेत्रों से आता है।

भारत में RNFE के प्रमुख निर्धारक

  • सरकारी नीतियां: डॉ. अशोक दलवई समिति ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि क्षेत्रक के अधिशेष श्रमिकों को गैर-कृषि रोजगारों में स्थानांतरित करने की सिफारिश की थी। इसके लिए सरकार कृषि और संबद्ध क्षेत्रकों में स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा दे रही है तथा नमो ड्रोन दीदी जैसी योजनाएं शुरू की हैं। 
  • शिक्षा और कौशल: ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा में वृद्धि से गैर-कृषि आय में भी वृद्धि होती है।
  • परिवार का आकार: बड़े परिवार कृषि गतिविधियों से कम आय अर्जित करते हैं, लेकिन गैर-कृषि आय से अधिक लाभ कमाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के खतरे की वजह से कृषि से जुड़े रोजगार पर संकट मंडरा रहा है। अतः जलवायु परिवर्तन का खतरा RNFE क्षेत्रक को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर देता है।
  • सार्वजनिक व्यय और विविधीकरण: अवसंरचना में निवेश, कारखानों की संख्या में वृद्धि और विनिर्माण कार्यों के विस्तार से RNFE को बढ़ावा मिलता है।
  • अवसंरचना का विकास: विकास संबंधी व्यय, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे पर, विनिर्माण से जुड़े हुए रोजगार को बढ़ावा देता है। इससे पुरुषों और महिलाओं, दोनों को लाभ होता है।

भारत में ग्रामीण गैर-कृषि अर्थव्यवस्था (RNFE) के समक्ष मौजूद चुनौतियां

  • ऋण प्राप्ति में कठिनाई: RNFE से जुड़े अधिकतर उद्यम, फंड के लिए व्यक्तिगत बचत या साहूकारों पर निर्भर हैं, वहीं कृषि क्षेत्रक को बैंकों से आसानी से ऋण मिल जाता है।
  • श्रमिकों की कम उत्पादकता: RNFE में कार्यरत श्रमिकों की उत्पादकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में काफी कम है। केवल 13% RNFE उद्यम ही आधुनिक पद्धतियों पर आधारित हैं। इनमें अधिकतर परंपरागत उद्यम हैं और इनमें वैल्यू एडिशन का स्तर भी कम है।
  • अनौपचारिक और अस्थिर प्रकृति के रोजगार: RNFE में उच्च गुणवत्ता के रोजगार उत्पन्न नहीं होते हैं। इनसे कम आय प्राप्त होती है और वह भी नियमित रूप से प्राप्त नहीं होती। ख़राब कार्य-दशाएं, सामाजिक सुरक्षा का अभाव जैसे कारक भी श्रमिकों के शोषण को बढ़ावा देते हैं। 
    • उदाहरण के लिए- RNFE क्षेत्रक में निर्माण कार्य (Construction) में सबसे अधिक लोगों को रोजगार मिला हुआ है। लेकिन निर्माण क्षेत्रक आर्थिक चक्रों पर अत्यधिक निर्भर है यानी हर मौसम में निर्माण कार्य नहीं होते हैं। इससे श्रमिकों को नियमित आय नहीं मिल पाती है।
  • आय का घटता स्तर: ग्रामीण गैर-कृषि परिवारों की औसत आय (11,438 रुपये प्रति माह), कृषि पर निर्भर परिवारों की औसत आय (13,661 रुपये प्रति माह) की तुलना में कम है।

RNFE क्षेत्रक को बढ़ावा देने हेतु मुख्य पहलें

  • संस्थाओं की स्थापना: RNFE क्षेत्रक के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC), राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (National Small Industries Corporation: NSIC) लिमिटेड जैसी संस्थाओं की स्थापना की गई है।
  • पारंपरिक उद्योगों को बढ़ावा देना: इसके लिए 'स्कीम ऑफ फंड फॉर रिजनरेशन ऑफ ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज (SFURTI)', 'विकास के लिए पारंपरिक कला/ शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण का उन्नयन (Upgrading the Skills and Training in Traditional Arts/Crafts for Development: USTAD)' जैसी योजनाएं शुरू की गई हैं।
  • लघु उद्यमों की ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति: नाबार्ड के अंतर्गत सेल्फ हेल्फ ग्रुप (SHG)-बैंक लिंकेज प्रोग्राम शुरू किया गया है, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI) की स्थापना की गई है, आदि।
  • कौशल विकास: इसके लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY), दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY - NRLM), आदि शुरू किए गए हैं।
  • अवसंरचना विकास: इसके लिए प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान, भारतनेट, प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना जैसी पहलें शुरू की गई हैं।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा): यह कार्य की मांग पर आधारित मजदूरी भुगतान वाली रोजगार योजना है।

 

संधारणीय तरीके से RNFE को बढ़ावा देने के लिए आगे की राह

  • ऋण देना आसान बनाना: सरकारी योजनाओं और वित्तीय समावेशन पहलों के माध्यम से  RNFE उद्यमों को बैंकों, माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं और सहकारी बैंकों से ऋण दिलाने में मदद करनी चाहिए।
  • रोजगार के अवसरों में विविधता लाना: ग्रामीण क्षेत्रों में निर्माण क्षेत्रक के अलावा नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यटन और डिजिटल सेवाओं को भी बढ़ावा देना चाहिए। इससे लोगों को नियमित रोजगार और आय प्राप्त हो सकेगी।
  • मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करना: RNFE क्षेत्रक से आय को बढ़ावा देने के लिए कृषि-प्रसंस्करण, हस्तशिल्प और निर्यात वाली वस्तुओं के उत्पादन जैसी उच्च मूल्य वाली गतिविधियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्रक के रोजगार में भी नियमों को लागू करना: RNFE क्षेत्रक में कार्यरत लोगों की कार्य-दशाओं में सुधार करने, उचित पारिश्रमिक दिलाने और सामाजिक सुरक्षा कवरेज प्रदान करने के लिए फ्रेमवर्क या कानून बनाने की आवश्यकता है।
  • क्लस्टर-आधारित विकास को बढ़ावा देना: गैर-कृषि उद्यमों के लिए ग्रामीण औद्योगिक क्लस्टरों को बढ़ावा देना चाहिए। इससे सहयोग, नवाचार और उत्पादन विस्तार और दक्षता को प्रोत्साहन मिलेगा। 

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