सुर्ख़ियों में क्यों?
पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के अंतर्गत आने वाले कार्बन ट्रेडिंग नियमों को एक दशक की वार्ता के बाद COP-29 में अंतिम रूप दिया गया।
पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के बारे में
- इसमें कार्बन बाजार से संबंधित साधनों (Tools) और प्रणालियों (Mechanisms) का विवरण दिया गया है। यह देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को हासिल करने के लिए स्वैच्छिक सहयोग करने में सक्षम बनाता है।
- इसके तहत निम्नलिखित 3 मुख्य प्रणालियां शामिल हैं, जिनमें 2 बाजार-आधारित और 1 गैर-बाजार आधारित हैं।
अनुच्छेद 6 के अंतर्गत प्रणालियां | ||
बाजार आधारित प्रणालियां | गैर-बाजार आधारित प्रणाली | |
अनुच्छेद 6.2 | अनुच्छेद 6.4 | अनुच्छेद 6.8 |
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![]() कॉरेस्पॉडिंग एडजस्टमेंट के बारे में (पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6.2)
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कार्बन मार्केट के बारे में
- कार्बन बाजार एक व्यापारिक प्रणाली है, जहां कंपनियां कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपने ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की भरपाई करती हैं। ये क्रेडिट उन परियोजनाओं से प्राप्त होते हैं जो:
- उत्सर्जन को कम करती हैं, या
- उत्सर्जन को रोकने का काम करती हैं।
- आमतौर पर व्यापार योग्य एक कार्बन क्रेडिट एक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड या उसके बराबर किसी अन्य ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी, प्रच्छादन (Sequestration) या रोकथाम के बराबर होता है।
क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के तहत कार्बन ट्रेडिंग की तुलना | ||
पहलू | क्योटो प्रोटोकॉल | पेरिस समझौता (अनुच्छेद 6) |
भागीदारी का दायरा | यह विकसित देशों (अनुलग्नक I) तक सीमित था तथा परियोजना को विकासशील देशों में लागू किया जाता था। | इसमें सभी देशों को शामिल किया गया है। |
अनुकूलन संबंधी वित्त-पोषण | CDM परियोजनाओं से प्राप्त आय का हिस्सा अनुकूलन कोष (Adaptation Fund) में जाता था। | अनुच्छेद 6.4 के तहत लेन-देन से प्राप्त आय का 5% हिस्सा वैश्विक अनुकूलन कोष (Global Adaptation Fund) में आवंटित किया जाता है। |
बाजार का दायरा | यह परियोजना आधारित मैकेनिज्म पर केंद्रित था, जैसे-
| इसमें बाजार-आधारित और गैर-बाजार-आधारित दृष्टिकोणों दोनों शामिल हैं। |
लेगेसी क्रेडिट | इसमें निष्क्रिय परियोजनाओं से संबंधित पुराने कार्बन क्रेडिट्स के उपयोग की अनुमति दी गई थी, जिससे बाजार में कार्बन क्रेडिट की अत्यधिक आपूर्ति की चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। | इसमें लेगेसी क्रेडिट के उपयोग की अनुमति नहीं है, केवल 2013 के बाद के कार्बन क्रेडिट ही उपयोग किए जाते हैं। |
कार्बन ट्रेडिंग का महत्त्व
- आर्थिक दक्षता: विश्व बैंक के अनुसार, अनुच्छेद 6 के तहत कार्बन ट्रेडिंग से NDCs की लागत में 50% से अधिक की कटौती हो सकती है। इससे 2030 तक सालाना 250 बिलियन डॉलर की बचत हो सकती है।
- विकासशील देशों को समर्थन: यह बड़े पैमाने पर वित्तीय संसाधन जुटाकर जलवायु शमन संबंधी प्रयासों में विकासशील देशों को समर्थन प्रदान करती है।
- व्यापक प्रभाव की संभावना: अनुच्छेद 6.8 के तहत, गैर-बाजार आधारित दृष्टिकोण (जैसे- क्षमता निर्माण प्लेटफ़ॉर्म) का उपयोग संधारणीय विकास के लिए कई मार्गों को खोलता है।
- सरकारों के लिए राजस्व: विश्व बैंक की स्टेट एंड ट्रेंड्स ऑफ कार्बन प्राइसिंग 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में कार्बन मूल्य निर्धारण राजस्व रिकॉर्ड 104 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।
कार्बन बाज़ार से संबंधित मुद्दे
- दोहरी गणना (Double Counting): अनुच्छेद 6.2 के अंतर्गत देशों को अपने उत्सर्जन संबंधी कटौती की गणना में गड़बड़ियों को ठीक करने या गड़बड़ियों को रोकने के लिए कठोर एवं अनिवार्य प्रावधान नहीं किए गए हैं। इससे एक से अधिक देशों द्वारा एक ही उत्सर्जन कटौती की गणना करने की संभावना उत्पन्न हो जाती है।
- सीमित कवरेज और दायरा: विश्व बैंक के अनुसार, वैश्विक उत्सर्जन का केवल 24% ही कार्बन टैक्स और उत्सर्जन व्यापार प्रणालियों (Emission Trading Systems: ETS) के तहत कवर किया जाता है।
- मापन संबंधी अपर्याप्त मानक: अनुच्छेद 6 के मसौदा नियमों में देशों के लिए असफल कार्बन प्रच्छादन परियोजनाओं (Sequestration project) से CO2 के उत्सर्जन की निगरानी करना अनिवार्य नहीं किया गया है।
- क्रियान्वयन में देरी: उदाहरण के लिए- अनुच्छेद 6.4 के 2025-2026 से पहले अमल में आने की संभावना नहीं है।
- कार्बन उपनिवेशवाद (Carbon Colonialism): देशज लोगों के अधिकारों और स्थानीय समुदाय पर प्रभावों को पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया जाता है, जिससे कार्बन बाजार संबंधी परियोजनाओं के तहत शोषण को लेकर चिंताएं बढ़ जाती हैं।
- विविध राष्ट्रीय हित: पारदर्शिता, न्यायसंगत पहुंच और कार्बन बाजार नियमों में सुगमता का स्तर जैसे प्रमुख मुद्दों पर विकसित एवं विकासशील देशों के बीच तनाव की स्थिति है।
- अन्य समस्याएं:
- गैर-बाजार आधारित उपायों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों और कार्यान्वयन फ्रेमवर्क का अभाव है।
- ग्रीनवाशिंग से जुड़ी चिंताएं।
- बाजार में कार्बन क्रेडिट की अधिकता से कार्बन क्रेडिट के मूल्य पर प्रभाव पड़ना।
आगे की राह
- उत्सर्जित कार्बन कटौती की रिपोर्टिंग के लिए समान और बाध्यकारी दिशा-निर्देश लागू करना चाहिए, ताकि दोहरी गणना को रोका जा सके एवं विश्वसनीय कार्बन लेखांकन को सुनिश्चित किया जा सके।
- कार्बन क्रेडिट की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए, यह आवश्यक है कि किसी निष्पक्ष तीसरे पक्ष द्वारा यह सत्यापित किया जाए कि ये क्रेडिट वास्तविक परियोजनाओं से प्राप्त हुए हैं और कार्बन उत्सर्जन में कमी के अनुरूप हैं।
- वनाग्नि या भूमि-उपयोग में परिवर्तन जैसे जोखिमों से निपटने के लिए मजबूत सुरक्षा उपायों का विकास और उन्हें लागू करना चाहिए, ताकि कार्बन प्रच्छादन संबंधी प्रयासों के परिणामों को निष्प्रभावी होने से रोका जा सके।
- देशज और स्थानीय समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए उपयुक्त प्रावधान सुनिश्चित किए जाने चाहिए।
- प्रमाणित मांग और गुणवत्ता के आधार पर कार्बन क्रेडिट जारी करने हेतु कड़े नियम लागू करके बाजार में कार्बन क्रेडिट की अधिकता को नियंत्रित करना चाहिए।
भारत में कार्बन बाज़ार और कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली
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