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कार्बन ट्रेडिंग और बाजार (Carbon Trading And Market)

26 Dec 2024
46 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के अंतर्गत आने वाले कार्बन ट्रेडिंग नियमों को एक दशक की वार्ता के बाद COP-29 में अंतिम रूप दिया गया। 

पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के बारे में

  • इसमें कार्बन बाजार से संबंधित साधनों (Tools) और प्रणालियों (Mechanisms) का विवरण दिया गया है। यह देशों को अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) को हासिल करने के लिए स्वैच्छिक सहयोग करने में सक्षम बनाता है।
  • इसके तहत निम्नलिखित 3 मुख्य प्रणालियां शामिल हैं, जिनमें 2 बाजार-आधारित और 1 गैर-बाजार आधारित हैं। 

अनुच्छेद 6 के अंतर्गत प्रणालियां

                                  बाजार आधारित प्रणालियां 

गैर-बाजार आधारित प्रणाली

अनुच्छेद 6.2

अनुच्छेद 6.4

अनुच्छेद 6.8

  • यह विकेंद्रीकृत प्रणाली है। इसमें देशों को द्विपक्षीय सहयोग के जरिए आपस में कार्बन ट्रेडिंग की अनुमति दी गई है। 
  • इसमें अंतर्राष्ट्रीय हस्तांतरित शमन परिणामों (International Transferred Mitigation Outcomes: ITMOs) का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार शामिल है। ITMOs शमन संबंधी कार्यों के परिणामस्वरूप उत्सर्जन में होने वाली कमी को दर्शाने वाली यूनिट्स हैं। 
  • ITMOs के व्यापार से मिली उपलब्धियों को फिर NDC के लक्ष्यों में समायोजित (Corresponding adjustment) किया जाता है।   
  • यह UNFCCC की निगरानी में ITMOs के हस्तांतरण पर आधारित एक केंद्रीकृत प्रणाली है। इसे 'पेरिस एग्रीमेंट क्रेडिटिंग मैकेनिज्म (PACM)' नाम दिया गया है।  
  • यह प्रणाली वैश्विक कार्बन बाज़ार की स्थापना करती  है। 
  • इसमें क्योटो प्रोटोकॉल के क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (CDM) के समान बेसलाइन-एंड-क्रेडिटिंग मैकेनिज्म का उपयोग किया जाता है। क्योटो प्रोटोकॉल में  कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली का उपयोग किया जाता था। 
  • इसमें वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, क्षमता निर्माण आदि के माध्यम से शमन और अनुकूलन को बढ़ावा देने के लिए गैर-बाजार आधारित दृष्टिकोण शामिल है। 
  • इसमें उत्सर्जन में कटौती का कोई व्यापार नहीं किया जाता है।
  • इसमें एक से अधिक भागीदार पक्ष शामिल होते हैं। 

 

 

कॉरेस्पॉडिंग एडजस्टमेंट के बारे में (पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6.2)

  • इसके तहत ITMOs के हस्तांतरण (निर्यात) या अर्जन (आयात) को समायोजित करने के लिए संबंधित देश के उत्सर्जन स्तर में बदलाव किए जाते हैं। 
  • इन्हें NDCs के तहत विभिन्न प्रकार के लक्ष्यों और उपायों के आधार पर 3 अलग-अलग स्थितियों के लिए बनाया गया है: 
    • GHG मैट्रिक्स: उदाहरण के लिए- पूरी अर्थव्यवस्था का वार्षिक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन स्तर।  
    • गैर-GHG मैट्रिक्स: उदाहरण के लिए- नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता (मेगावाट में)।
    • नीतियां और उपाय: किसी देश के NDC के तहत लागू की गई नीतियां और उपाय।

कार्बन मार्केट के बारे में

  • कार्बन बाजार एक व्यापारिक प्रणाली है, जहां कंपनियां कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपने ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन की भरपाई करती हैं। ये क्रेडिट उन परियोजनाओं से प्राप्त होते हैं जो:
    • उत्सर्जन को कम करती हैं, या
    • उत्सर्जन को रोकने का काम करती हैं।
  • आमतौर पर व्यापार योग्य एक कार्बन क्रेडिट एक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड या उसके बराबर किसी अन्य ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी, प्रच्छादन (Sequestration) या रोकथाम के बराबर होता है।

क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते के तहत कार्बन ट्रेडिंग की तुलना  

पहलू

क्योटो प्रोटोकॉल

पेरिस समझौता (अनुच्छेद 6)

भागीदारी का दायरा

यह विकसित देशों (अनुलग्नक I) तक सीमित था तथा परियोजना को विकासशील देशों में लागू किया जाता था। 

इसमें सभी देशों को शामिल किया गया है।

अनुकूलन संबंधी वित्त-पोषण

CDM परियोजनाओं से प्राप्त आय का हिस्सा अनुकूलन कोष (Adaptation Fund) में जाता था।

अनुच्छेद 6.4 के तहत लेन-देन से प्राप्त आय का 5% हिस्सा वैश्विक अनुकूलन कोष (Global Adaptation Fund) में आवंटित किया जाता है।

बाजार का दायरा

यह परियोजना आधारित मैकेनिज्म पर केंद्रित था, जैसे-

  • क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (CDM): विकासशील देशों में परियोजनाएं। 
  • संयुक्त कार्यान्वयन (Joint Implementation: JI): अन्य विकसित देशों में परियोजनाएं। 

इसमें बाजार-आधारित और गैर-बाजार-आधारित दृष्टिकोणों दोनों शामिल हैं। 

लेगेसी क्रेडिट

इसमें निष्क्रिय परियोजनाओं से संबंधित पुराने कार्बन क्रेडिट्स के उपयोग की अनुमति दी गई थी, जिससे बाजार में कार्बन क्रेडिट की अत्यधिक आपूर्ति की चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हो जाती थी।

इसमें लेगेसी क्रेडिट के उपयोग की अनुमति नहीं है, केवल 2013 के बाद के कार्बन क्रेडिट ही उपयोग किए जाते हैं।

कार्बन ट्रेडिंग का महत्त्व 

  • आर्थिक दक्षता: विश्व बैंक के अनुसार, अनुच्छेद 6 के तहत कार्बन ट्रेडिंग से NDCs की लागत में 50% से अधिक की कटौती हो सकती है। इससे 2030 तक सालाना 250 बिलियन डॉलर की बचत हो सकती है।
  • विकासशील देशों को समर्थन: यह बड़े पैमाने पर वित्तीय संसाधन जुटाकर जलवायु शमन संबंधी प्रयासों में विकासशील देशों को समर्थन प्रदान करती है।
  • व्यापक प्रभाव की संभावना: अनुच्छेद 6.8 के तहत, गैर-बाजार आधारित दृष्टिकोण (जैसे- क्षमता निर्माण प्लेटफ़ॉर्म) का उपयोग संधारणीय विकास के लिए कई मार्गों को खोलता है।
  • सरकारों के लिए राजस्व: विश्व बैंक की स्टेट एंड ट्रेंड्स ऑफ कार्बन प्राइसिंग 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में कार्बन मूल्य निर्धारण राजस्व रिकॉर्ड 104 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

कार्बन बाज़ार से संबंधित मुद्दे 

  • दोहरी गणना (Double Counting): अनुच्छेद 6.2 के अंतर्गत देशों को अपने उत्सर्जन संबंधी कटौती की गणना में गड़बड़ियों को ठीक करने या गड़बड़ियों को रोकने के लिए कठोर एवं अनिवार्य प्रावधान नहीं किए गए हैं। इससे एक से अधिक देशों द्वारा एक ही उत्सर्जन कटौती की गणना करने की संभावना उत्पन्न हो जाती है। 
  • सीमित कवरेज और दायरा: विश्व बैंक के अनुसार, वैश्विक उत्सर्जन का केवल 24% ही कार्बन टैक्स और उत्सर्जन व्यापार प्रणालियों (Emission Trading Systems: ETS) के तहत कवर किया जाता है। 
  • मापन संबंधी अपर्याप्त मानक: अनुच्छेद 6 के मसौदा नियमों में देशों के लिए असफल कार्बन प्रच्छादन परियोजनाओं (Sequestration project) से CO2 के उत्सर्जन की निगरानी करना अनिवार्य नहीं किया गया है।
  • क्रियान्वयन में देरी: उदाहरण के लिए- अनुच्छेद 6.4 के 2025-2026 से पहले अमल में आने की संभावना नहीं है। 
  • कार्बन उपनिवेशवाद (Carbon Colonialism): देशज लोगों के अधिकारों और स्थानीय समुदाय पर प्रभावों को पर्याप्त महत्त्व नहीं दिया जाता है, जिससे कार्बन बाजार संबंधी परियोजनाओं के तहत शोषण को लेकर चिंताएं बढ़ जाती हैं।
  • विविध राष्ट्रीय हित: पारदर्शिता, न्यायसंगत पहुंच और कार्बन बाजार नियमों में सुगमता का स्तर जैसे प्रमुख मुद्दों पर विकसित एवं विकासशील देशों के बीच तनाव की स्थिति है। 
  • अन्य समस्याएं: 
    • गैर-बाजार आधारित उपायों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों और कार्यान्वयन फ्रेमवर्क का अभाव है। 
    • ग्रीनवाशिंग से जुड़ी चिंताएं। 
    • बाजार में कार्बन क्रेडिट की अधिकता से कार्बन क्रेडिट के मूल्य पर प्रभाव पड़ना। 

आगे की राह 

  • उत्सर्जित कार्बन कटौती की रिपोर्टिंग के लिए समान और बाध्यकारी दिशा-निर्देश लागू करना चाहिए, ताकि दोहरी गणना को रोका जा सके एवं विश्वसनीय कार्बन लेखांकन को सुनिश्चित किया जा सके।
  • कार्बन क्रेडिट की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए, यह आवश्यक है कि किसी निष्पक्ष तीसरे पक्ष द्वारा यह सत्यापित किया जाए कि ये क्रेडिट वास्तविक परियोजनाओं से प्राप्त हुए हैं और कार्बन उत्सर्जन में कमी के अनुरूप हैं।
  • वनाग्नि या भूमि-उपयोग में परिवर्तन जैसे जोखिमों से निपटने के लिए मजबूत सुरक्षा उपायों का विकास और उन्हें लागू करना चाहिए, ताकि कार्बन प्रच्छादन संबंधी प्रयासों के परिणामों को निष्प्रभावी होने से रोका जा सके।
  • देशज और स्थानीय समुदायों के हितों की सुरक्षा के लिए उपयुक्त प्रावधान सुनिश्चित किए जाने चाहिए। 
  • प्रमाणित मांग और गुणवत्ता के आधार पर कार्बन क्रेडिट जारी करने हेतु कड़े नियम लागू करके बाजार में कार्बन क्रेडिट की अधिकता को नियंत्रित करना चाहिए। 

भारत में कार्बन बाज़ार और कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली  

  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS), 2023: इसे ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था। यह दो प्रणालियों के तहत भारतीय कार्बन बाजार की स्थापना करती है: 
    • अनुपालन प्रणाली (Compliance mechanism): इसके तहत सरकार ऊर्जा-गहन उद्योगों के लिए अनिवार्य रूप से GHG उत्सर्जन तीव्रता के संबंध में लक्ष्य निर्धारित करती है।
      • शुरुआत में इसके तहत उर्वरक, लोहा एवं इस्पात, पल्प एवं कागज, पेट्रोरसायन, पेट्रोलियम रिफाइनरी जैसे 9 क्षेत्रक शामिल किए गए हैं। 
    • ऑफसेट मैकेनिज्म: यह अनुपालन प्रणाली के अंतर्गत शामिल न होने वाली इकाइयों के लिए एक स्वैच्छिक परियोजना-आधारित प्रणाली है। 
  • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम: यह पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत ग्रीन क्रेडिट के व्यापार हेतु एक बाजार-आधारित स्वैच्छिक प्रणाली है। यह विभिन्न हितधारकों द्वारा पर्यावरण के प्रति सकारात्मक कार्यों को प्रोत्साहित करता है।
    • इसके तहत पात्र गतिविधियों में वृक्षारोपण, संधारणीय कृषि पद्धतियां आदि शामिल हैं।
  • अन्य उपाय:
    • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (Perform, Achieve and Trade: PAT) योजना: यह ऊर्जा की अधिक खपत वाले बड़े उद्योगों को अपनी ऊर्जा खपत को निर्धारित स्तर तक कम करना अनिवार्य करती है। 
      • जो उद्योग अपने लक्ष्य से अधिक हासिल कर लेते हैं, उन्हें ऊर्जा बचत प्रमाण-पत्र (ESCerts) मिलता है। इन बचत प्रमाण-पत्रों का व्यापार उन उद्योगों के साथ किया जा सकता है जो अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाते हैं। 
      • इसे धीरे-धीरे CCTS के अंतर्गत अनुपालन प्रणाली के तहत लाया जाएगा। 
    • नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाण-पत्र (REC) योजना: यह नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और नवीकरणीय ऊर्जा खरीद दायित्वों (RPO) के पालन को सुगम बनाने हेतु एक बाजार आधारित साधन है। 
      • एक REC का मान 1MWh बिजली के बराबर होता है।
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