
वर्तमान विनियमों के अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) किसी भारतीय कंपनी में उसकी कुल पेड-अप इक्विटी पूंजी का अधिकतम 10% तक ही पोर्टफोलियो निवेश के रूप में निवेश कर सकते हैं। गौरतलब है कि वह राशि जो कंपनी को शेयरधारकों से शेयरों के बदले में प्राप्त होती है उसे पेड-अप इक्विटी पूंजी कहते हैं।
- इससे पहले FPIs के लिए निर्धारित इस 10% की सीमा को पार करने पर FPIs के पास दो विकल्प होते थे- अधिशेष शेयरों को बेचना या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के रूप में रीक्लासिफ़ाइ हो जाना।
- यदि कोई FPI अपने संस्थागत विदेशी निवेश को FDI में रीक्लासिफ़ाइ करने का इरादा रखता है, तो उस FPI को नीचे दिए गए ऑपरेशनल फ्रेमवर्क का पालन करना होगा:
FPI को FDI के रूप में रीक्लासिफ़ाइ करने के संबंध में RBI का नया ऑपरेशनल फ्रेमवर्क
- FDI के लिए प्रतिबंधित क्षेत्रकों में इस रीक्लासिफिकेशन की सुविधा की अनुमति नहीं दी जाएगी। जैसे, चिट फंड, गैंबलिंग आदि।
- विशेष रूप से सीमावर्ती देशों से FPI निवेश के लिए सरकारी अनुमोदन अनिवार्य है, तथा संबंधित भारतीय कंपनी की सहमति भी आवश्यक है।
- साथ ही, निवेश को FDI के नियमों के तहत प्रवेश मार्ग, सेक्टोरल कैप्स, निवेश सीमा, मूल्य निर्धारण दिशा-निर्देश और अन्य संबंधित शर्तों का पालन करना चाहिए।
- FPI का रीक्लासिफिकेशन “विदेशी मुद्रा प्रबंधन (भुगतान की विधि और गैर-ऋण लिखतों की रिपोर्टिंग) विनियमन, 2019” द्वारा निर्देशित होगा।
इसका कदम का महत्त्व:
- इससे अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने में मदद मिलेगी;
- FPI को अधिक रणनीतिक निवेश में तब्दील करने में सुगमता प्रदान की जा सकेगी;
- भारतीय बाजार में विदेशी निवेशकों के लिए स्पष्टता और पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा आदि।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने “घरेलू प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण बैंकों (D-SIBs)” की 2024 की सूची जारी की
- भारतीय स्टेट बैंक (SBI), HDFC बैंक और ICICI बैंक को RBI की 2024 की D-SIBs की सूची में बरकरार रखा गया है।
D-SIBs के बारे में
- D-SIBs का दर्जा अग्रलिखित आधारों पर दिया जाता है- उनका आकार, उनकी अंतर्संबंधता, उनका विकल्प या वित्तीय संस्थान अवसंरचना आसानी से उपलब्ध न होना और जटिलता।
- D-SIBs परस्पर संबद्ध संस्थाएं होती हैं। इनकी विफलता पूरी वित्तीय प्रणाली को प्रभावित कर सकती है और अस्थिरता पैदा कर सकती है। इस कारण इन्हें असफल नहीं होने दिया जा सकता।
- यदि D-SIBs सूची का कोई बैंक विफल होता है तो बैंकिंग प्रणाली और समग्र अर्थव्यवस्था की आवश्यक सेवाओं में बड़ा व्यवधान पैदा हो सकता है।

D-SIBs सूची की घोषणा के प्रावधान
- यह सूची RBI द्वारा 2014 में जारी D-SIB फ्रेमवर्क पर आधारित है।
- यह फ्रेमवर्क बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (BCBS) के फ्रेमवर्क पर आधारित है।
- D-SIBs के रूप में सूचीबद्ध होने के लिए, किसी बैंक के पास राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद के 2 प्रतिशत से अधिक की परिसंपत्ति होनी चाहिए।
- बैंकों को उनकी D-SIB की श्रेणी के आधार पर उनकी जोखिम भारित परिसंपत्तियों (RWAs) का कुछ हिस्सा अतिरिक्त कॉमन इक्विटी टियर-1 (CET-1) के रूप में रखना होता है। इस आधार पर उन्हें 5 बकेट्स में वर्गीकृत किया जाता है।
- बकेट 1 श्रेणी के बैंकों को सबसे कम CET-1 और बकेट 5 श्रेणी के बैंकों को सबसे अधिक CET-1 बनाए रखना होता है।
- इसी प्रकार, यदि किसी विदेशी बैंक की भारत में शाखा है और यदि वह प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण वैश्विक बैंक (G-SIB) है, तो उसे G-SIB से संबंधित नियमों के अनुरूप भारत में अतिरिक्त CET-1 पूंजी अधिभार को बनाए रखना होगा।
- G-SIBs की सूची फाइनेंसियल स्टेबिलिटी बोर्ड (FSB) जारी करता है।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इन-स्पेस (IN-SPACe) के तहत अंतरिक्ष क्षेत्रक के लिए 1,000 करोड़ रुपये के वेंचर कैपिटल फंड की स्थापना को मंजूरी दी
- वेंचर कैपिटल फंड निजी इक्विटी वित्त-पोषण का एक विशेष रूप है। इसके जरिए बेहतर विकास क्षमता वाले शुरुआती चरण के स्टार्ट-अप्स में निवेश किया जाता है।
- IN-SPACe एक सिंगल विंडो वाला एवं स्वतंत्र नोडल एजेंसी है जो अंतरिक्ष विभाग (DOS) में एक स्वायत्त एजेंसी के रूप में कार्य करती है।
- यह निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए ISRO और गैर-सरकारी संस्थाओं के बीच एक इंटरफेस के रूप में कार्य करती है।
- यह प्रक्षेपण वाहनों और उपग्रहों के निर्माण, स्पेस इन्फ्रास्ट्रक्चर को साझा करने जैसी अंतरिक्ष आधारित विभिन्न गतिविधियों को अधिकृत और पर्यवेक्षण करती है।
अंतरिक्ष क्षेत्रक के लिए वेंचर कैपिटल फंड के बारे में:
- प्रस्तावित फंड संपूर्ण अंतरिक्ष आपूर्ति श्रृंखला (यानी अपस्ट्रीम, मिडस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम) में स्टार्ट-अप्स का वित्त-पोषण करेगा।
- वित्तीय संरचना: इसे 5 वर्षों के लिए संचालित किया जाएगा। निवेश के अवसरों और फंड की आवश्यकताओं के आधार पर, उपयोग की औसत राशि प्रति वर्ष 150-250 करोड़ रुपये हो सकती है।
- प्रति स्टार्ट-अप निवेश की सांकेतिक सीमा 10-60 करोड़ रुपये प्रस्तावित है।
- निवेश की उपर्युक्त सीमा के आधार पर, इस फंड से लगभग 40 स्टार्ट-अप्स को सहायता मिलने की उम्मीद है।
- इस फंड का लक्ष्य भारत को रणनीतिक रूप से अग्रणी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में स्थापित करना है। इस फंड के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- पूंजी निवेश: स्टार्ट-अप के बाद के चरण के विकास के लिए अतिरिक्त धन आकर्षित करके गुणक प्रभाव पैदा करना
- निजी क्षेत्रक पर आधारित अंतरिक्ष उद्योग के विकास में तेजी लाना: अगले 10 वर्षों में भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के पांच गुना विस्तार के लक्ष्य को पूरा करना।
- प्रगति को बढ़ावा देना: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्रक में प्रगति को बढ़ावा देना और निजी क्षेत्रक की भागीदारी के माध्यम से भारत के नेतृत्व को मजबूत करना।
- फंड से प्राप्त होने वाले लाभ:
- यह भारत में स्थित अंतरिक्ष क्षेत्रक संबंधी कंपनियों की सक्रियता को बनाए रखेगा।
- इंजीनियरिंग, सॉफ्टवेयर विकास, डेटा विश्लेषण, विनिर्माण आदि में रोजगार पैदा होगा।
- नवाचार का एक जीवंत इकोसिस्टम तैयार होगा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत का अंतरिक्ष क्षेत्रक: वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की 2-3% हिस्सेदारी है। इस मामले में यह विश्व में 5वें स्थान पर है। भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का वर्तमान मूल्य 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंका गया है। इसे 2033 तक 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
Article Sources
1 sourceकेंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने “चिकित्सा उपकरण उद्योग को मजबूत करने की योजना” शुरू की
- यह चिकित्सा उपकरण (मेडिकल डिवाइस) उद्योग के महत्वपूर्ण क्षेत्रकों के लिए एक व्यापक योजना है। इससे भारत को चिकित्सा उपकरण क्षेत्रक में आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी।
- गौरतलब है कि भारत का चिकित्सा उपकरण बाजार लगभग 14 बिलियन डॉलर का है। 2030 तक इसके बढ़कर 30 बिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान है।

योजना के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- कुल आवंटन: 500 करोड़ रुपये।
- योजना के घटक: इसमें निम्नलिखित पांच उप-योजनाएं शामिल हैं:
- चिकित्सा उपकरण क्लस्टर के लिए कॉमन सुविधाएं: इसके तहत अवसंरचनाओं के विस्तार की योजना बनाई गई है। जैसे कि अनुसंधान व विकास प्रयोगशाला, डिज़ाइन एवं परीक्षण केंद्र, पशु प्रयोगशाला जैसी कॉमन सुविधाओं का निर्माण।
- आयात निर्भरता को कम करने के लिए मार्जिनल निवेश योजना: इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरण के प्रमुख घटकों, कच्चे माल आदि का स्थानीय स्तर पर उत्पादन करना है।
- चिकित्सा उपकरणों के लिए क्षमता निर्माण और कौशल विकास: कुशल तकनीकी कार्यबल तैयार करने के लिए अलग-अलग कोर्स शुरू करने पर वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- चिकित्सा उपकरण क्लीनिकल स्टडीज सहायता योजना: इसके तहत पशुओं पर अध्ययन करने, मानव पर परीक्षण करने और क्लीनिकल प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- चिकित्सा उपकरण संवर्धन योजना: उद्योग संघों और निर्यात परिषदों को सम्मेलनों के आयोजन तथा अध्ययन और सर्वेक्षण आयोजित करने के लिए सहायता प्रदान की जाएगी।
- चिकित्सा उपकरण उद्योग के समक्ष मुख्य चुनौतियां:
- अनुसंधान और विकास प्रयोगशालाओं तथा डिजाइन व परीक्षण केंद्र जैसी अवसंरचनाओं की कमी है।
- भारत अत्याधुनिक और बड़े चिकित्सा उपकरणों के लिए आयात पर अधिक निर्भर है।
- चिकित्सा उपकरण क्षेत्रक में पूंजी निवेश कम है।
- चिकित्सा उपकरण क्षेत्रक को इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर का सामना करना पड़ता है।
- इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर (IDS) वह स्थिति है, जब किसी तैयार उत्पाद (फिनिश्ड गुड्स) की तुलना में उस उत्पाद के कच्चे माल (इनपुट्स) के आयात पर अधिक प्रशुल्क का भुगतान करना पड़ता है।
Article Sources
1 sourceयह रिपोर्ट कृषि-खाद्य प्रणालियों के मूल्य-संचालित रूपांतरण पर जोर देती है। साथ ही, यह कृषि-खाद्य प्रणालियों (खेत से खाने की मेज तक) की वैश्विक छिपी लागतों (Hidden costs) पर पिछले संस्करण के अनुमानों पर आधारित है।
- छिपी हुई लागत बाहरी लागतों (यानी नकारात्मक बाहरी प्रभाव) या अन्य बाजार या नीतिगत विफलताओं से होने वाले आर्थिक नुकसान को व्यक्त करती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र
- छिपी हुई लागत: औद्योगिक और विविधीकरण वाली कृषि-खाद्य प्रणालियां वैश्विक मात्राबद्ध छिपी लागतों (लगभग 5.9 ट्रिलियन 2020 PPP डॉलर) में अधिकतम योगदान देती हैं। इन लागतों में गैर-संचारी रोगों से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी छिपी लागतों की अधिकता होती है।
- अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न (जैसे- साबुत अनाज का कम सेवन, सोडियम का अधिक सेवन, आदि) सभी मात्राबद्ध छिपी लागतों का 70% हिस्सा हैं।
- योगदान देने वाले अन्य कारकों में शामिल हैं: सामाजिक लागत (अल्पपोषण और गरीबी के कारण) तथा पर्यावरणीय लागत (ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन, आदि)।
- भारत से संबंधित निष्कर्ष: भारत के संबंध में कुल छिपी हुई लागत सालाना लगभग 1.3 ट्रिलियन डॉलर है। इस मामले में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद भारत तीसरे स्थान पर है। भारत में छिपी हुई लागत मुख्य रूप से अस्वास्थ्यकर आहार पैटर्न से प्रेरित है।
कृषि-खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं को बदलने पर मुख्य सिफारिशें
- औद्योगिक कृषि-खाद्य प्रणालियों में (उच्च शहरीकरण के साथ लंबी मूल्य-श्रृंखलाएं): खाद्य आधारित आहार विषयक दिशा-निर्देशों को कृषि-खाद्य प्रणाली एप्रोच में अपग्रेड किया जाना चाहिए। साथ ही, पोषक तत्व संबंधी लेबल एवं प्रमाणन को अनिवार्य किया जाना चाहिए और सूचना अभियान संचालित करने चाहिए।
- पारंपरिक कृषि खाद्य प्रणालियों में (कम शहरीकरण के साथ छोटी मूल्य-श्रृंखलाएं): पर्यावरणीय फुटप्रिंट में वृद्धि से बचने के लिए पारंपरिक उत्पादकता बढ़ाने वाले हस्तक्षेपों को पर्यावरणीय उपायों और आहार संबंधी संपूरकों के साथ पूरक बनाना चाहिए।
- पर्यावरणीय फुटप्रिंट का अर्थ है कि किसी व्यक्ति, कंपनी, या गतिविधि का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है
केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री ने पशुधन की संख्या पर अपडेटेड डेटा प्राप्त करने के लिए 21वीं पशुधन गणना की शुरुआत की।
- इस गणना से सरकार को पशु रोग नियंत्रण, नस्ल सुधार और ग्रामीण आजीविका जैसे प्रमुख मुद्दों पर ध्यान देने में मदद मिलेगी।
21वीं पशुधन गणना के बारे में
- कार्यक्रम: अक्टूबर 2024- फरवरी 2025 के बीच आयोजित की जाएगी।
- मुख्य विशेषताएं:
- 20वीं पशुगणना के समान पूरी तरह से डिजिटल रूप में होगी;
- पशुधन की 16 प्रजातियों और उनकी 219 देशी नस्लों के डेटा प्राप्त किए जाएंगे।
- पहली बार पशुपालकों के डेटा भी प्राप्त किए जाएंगे।
- पशुपालन में महिलाओं की भूमिकाओं से संबंधित डेटा भी एकत्र किए जाएंगे।
- पशुधन गणना 1919 से हर पांच साल में आयोजित की जाती है (आखिरी बार 2019 में)।
हरियाणा स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRC इक्वाइन) को WOAH संदर्भ प्रयोगशाला (Reference Laboratory) का दर्जा प्रदान किया गया है।
- यह मान्यता विशेष रूप से इक्वाइन पिरोप्लाज़मोसिस रोग में इसकी विशेषज्ञता के लिए प्रदान किया गया है।
- इक्वाइन पिरोप्लाज्मोसिस, टिक-जनित प्रोटोजोआ परजीवियों के कारण होता है। यह बीमारी मुख्यतः घोड़ों, गधों, खच्चरों और जेब्रा को प्रभावित करती है।
WOAH के बारे में
- यह 1924 में स्थापित यह एक अंतर-सरकारी संगठन है।
- उद्देश्य: पशु रोगों के बारे में जानकारी का प्रसार करना और वैश्विक स्तर पर पशु स्वास्थ्य में सुधार करना।
- सदस्य: भारत सहित 183 देश।
- मुख्यालय: पेरिस (फ्रांस)।
Article Sources
1 sourceविश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक, 2024 रिपोर्ट जारी की गई
- इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2018 एवं 2023 के बीच पेटेंट फाइलिंग की संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है। इसी के साथ बौद्धिक संपदा की फाइलिंग में काफी बढ़ोतरी हुई है।

इस रिपोर्ट में भारत से संबंधित अन्य मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र:
- पेटेंट: 64,500 पेटेंट फाइलिंग के साथ भारत विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है। साथ ही, भारत का पेटेंट-GDP अनुपात 144 से बढ़कर 381 हो गया है।
- ट्रेडमार्क: भारत का बौद्धिक संपदा (IP) कार्यालय ट्रेडमार्क के मामले में वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा कार्यालय है और अब ट्रेडमार्क फाइल करने के मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है।
- औद्योगिक डिजाइन फाइलिंग: इस संबंध में 2023 में 36% की वृद्धि के साथ विश्व स्तर पर भारत 10वें स्थान पर है, जो रचनात्मक डिजाइन में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
पेटेंट दाखिल करने या फाइलिंग में वृद्धि के प्रेरक कारक:
- सरकारी पहलें और नीतिगत समर्थन: उदाहरण के लिए पेटेंट (संशोधन) नियम, 2024 के जरिए नवीनीकरण शुल्क और पेटेंट के कामकाज का विवरण दाखिल करने की आवृत्ति को कम किया गया है। साथ ही, पेटेंट प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। इसके अलावा, राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति, 2016 भी जारी की गई है।
- आवेदनों का समय पर निपटान: भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में 1.03 लाख पेटेंट स्वीकृत किए थे।
- मजबूत बौद्धिक सम्पदा व्यवस्था: इसमें पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना, IPR सुविधा केंद्रों की स्थापना आदि शामिल हैं।
भारत में पेटेंट से संबंधित चुनौतियां/ मुद्दे:
- बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड को समाप्त करना: इससे बौद्धिक संपदा से जुड़े केसों में अपीलों का निवारण करने में बाधा उत्पन्न हो रही है।
- एवरग्रीनिंग ऑफ पेटेंट: इसमें पेटेंट अवधि को बढ़ाना, दवाओं पर एकाधिकार की गारंटी मिलना आदि शामिल हैं।
- अन्य मुद्दे: इसमें अनिवार्य लाइसेंसिंग, प्रक्रिया में प्रत्येक चरण के लिए एक निश्चित समय-सीमा का अभाव आदि शामिल हैं।
Article Sources
1 sourceबिहटा, बिहार का पहला शुष्क पत्तन या ड्राई पोर्ट है। इसे अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICD) के नाम से भी जाना जाता है। यह पटना के निकट स्थित है।
- शुष्क पत्तन: यह कार्गों की हैंडलिंग, भंडारण और परिवहन के लिए समुद्री पत्तन या हवाई अड्डे से दूर लोजिस्टिक्स सुविधा प्रदान करता है।
बिहटा शुष्क पत्तन का महत्त्व
- निर्यात: इससे बिहार से मुख्य रूप से कृषि आधारित उत्पाद, वस्त्र और चमड़ा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- बेहतर लॉजिस्टिक्स: इससे कार्गो हैंडलिंग और परिवहन सुव्यवस्थित होंगे; परिवहन लागत कम होगी; तथा भंडारण और हैंडलिंग सुरक्षित होगी।
- पड़ोसी राज्यों को लाभ: इसे सम्पूर्ण पूर्वी भारत को लाभ होगा।
- यह कोलकाता, हल्दिया, विशाखापत्तनम, न्हावा शेवा जैसे प्रमुख पत्तनों और प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों से लेकर रेल द्वारा भी जुड़ा हुआ है।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने आयकर (IT) विभाग की पैन 2.0 (PAN 2.0) परियोजना को मंजूरी दी।
पैन 2.0 परियोजना के बारे में
- यह ई-गवर्नेंस पहल है। इसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी आधारित बदलाव के माध्यम से करदाता पंजीकरण सेवाओं की व्यावसायिक प्रक्रियाओं को फिर से तैयार करना है।
- यह वर्तमान पैन/ टैन 1.0 प्रणालियों का अपग्रेड है।
- PAN दस अंकों का विशिष्ट अल्फ़ान्यूमेरिक नंबर है। इसे आयकर विभाग जारी करता है। इसे धारक के लेन-देन (कर भुगतान, आदि) को आयकर विभाग के साथ लिंक करने के लिए जारी किया जाता है।
- जारीकर्ता एजेंसियां: प्रोटीन/ Protean (पूर्ववर्ती नाम NSDL ई-गवर्नेंस) और UTI इन्फ्रास्ट्रक्चर टेक्नोलॉजी एंड सर्विसेज लिमिटेड (UTIITSL)।
- मुख्य लाभ: यह सभी निर्धारित सरकारी एजेंसियों की सभी डिजिटल प्रणालियों के लिए कॉमन पहचान, डेटा स्थिरता, सचाई जानने का एकल स्रोत, आदि के रूप में कार्य करेगा।
Article Sources
1 sourceकेंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भारतीय ग्रिड के यूजर्स के लिए समान सुरक्षा प्रोटोकॉल को मंजूरी दी। इसे अखिल भारतीय स्तर पर लागू किया जाएगा।
समान सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में
- उद्देश्य:
- ग्रिड से निरंतर और बिना बाधा के विद्युत आपूर्ति एवं ग्रिड की सुरक्षा सुनिश्चित करना,
- 2030 तक राष्ट्रीय ग्रिड में 450 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के समेकन के भारत के लक्ष्य की प्राप्ति का समर्थन करना।
- यह प्रोटोकॉल तापीय और जलविद्युत उत्पादन केंद्रों की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करेगा।
- विद्युत आपूर्ति में असामान्य स्थिति उत्पन्न होने पर उपकरण/ प्रणाली को बचाने के लिए सुरक्षा प्रणालियों में उचित समन्वय सुनिश्चित करेगा।
- यह दोषपूर्ण उपकरणों को अलग करने में मदद करेगा और सुरक्षा प्रणाली के दोषपूर्ण संचालन से बचाएगा।
Article Sources
1 sourceबिहटा, बिहार का पहला शुष्क पत्तन या ड्राई पोर्ट है। इसे अंतर्देशीय कंटेनर डिपो (ICD) के नाम से भी जाना जाता है। यह पटना के निकट स्थित है।
- शुष्क पत्तन: यह कार्गों की हैंडलिंग, भंडारण और परिवहन के लिए समुद्री पत्तन या हवाई अड्डे से दूर लोजिस्टिक्स सुविधा प्रदान करता है।
बिहटा शुष्क पत्तन का महत्त्व
- निर्यात: इससे बिहार से मुख्य रूप से कृषि आधारित उत्पाद, वस्त्र और चमड़ा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- बेहतर लॉजिस्टिक्स: इससे कार्गो हैंडलिंग और परिवहन सुव्यवस्थित होंगे; परिवहन लागत कम होगी; तथा भंडारण और हैंडलिंग सुरक्षित होगी।
- पड़ोसी राज्यों को लाभ: इसे सम्पूर्ण पूर्वी भारत को लाभ होगा।
- यह कोलकाता, हल्दिया, विशाखापत्तनम, न्हावा शेवा जैसे प्रमुख पत्तनों और प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों से लेकर रेल द्वारा भी जुड़ा हुआ है।