राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र (Internal Democracy in Political Parties) | Current Affairs | Vision IAS
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राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र (Internal Democracy in Political Parties)

Posted 26 Dec 2024

Updated 31 Dec 2024

20 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

भारत में राजनीतिक दलों के भीतर लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को लागू करने में भारतीय चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका पर चर्चा चल रही है।

दलों में आंतरिक लोकतंत्र क्या अर्थ है?

राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अर्थ है- पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन किया जाना। ऐसी में स्थिति में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन कर और पार्टी के सभी सदस्यों को समान रूप से भाग लेने का अवसर प्रदान कर राजनीतिक दल की आंतरिक व्यवस्था, संरचना और समन्वय को प्रबंधित किया जाता है। इसका सीधा संबंध इस व्यवस्था से है कि उस पार्टी में उम्मीदवारों का चयन कैसे किया जाता है, नेता कैसे उभरते हैं, नीतियां कैसे बनाई जाती हैं और फंडिंग कैसे प्राप्त की जाती है।

राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की आवश्यकता क्यों है?

  • विकेंद्रीकरण: यह राजनीतिक दल के शीर्ष-स्तरीय नेताओं द्वारा प्रयोग किए जाने वाले केंद्रीकृत विवेकाधीन नियंत्रण को सीमित करता है। साथ ही, यह अलग-अलग स्तरों पर दलों के अधिक से अधिक हितधारकों को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है।
  • अपराधीकरण को रोकना: यह धन और बाहुबल से प्रेरित "चुनाव जीतने की क्षमता" के आधार पर उम्मीदवार के चयन की प्रणालीगत समस्या का समाधान करता है।
    • एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के विश्लेषण के अनुसार, 543 नवनिर्वाचित लोकसभा सदस्यों में से 251 (46%) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
  • प्रतिनिधित्व: यह नागरिकों को राजनीति में भाग लेने और चुनाव लड़ने का समान राजनीतिक अवसर प्रदान करता है।
  • युवाओं की भागीदारी: इससे नई प्रतिभाओं को अवसर मिलता है और शीर्ष नेताओं के प्रभाव में कमी आती है।
  • भ्रष्टाचार में कमी: प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 2008 की 'नैतिकता और अभिशासन' रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक केंद्रीकरण के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • पारदर्शिता और सूचना का मुक्त प्रवाह: जॉन स्टुअर्ट मिल द्वारा लिखी गई पुस्तक "ऑन लिबर्टी" (1859) में "विचार और चर्चा की स्वतंत्रता" के "पूर्ण" संरक्षण पर तर्क प्रस्तुत किया गया है।

राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी के लिए उत्तरदायी कारण

  • कानूनी समर्थन का अभाव: राजनीतिक दलों के पंजीकरण का एकमात्र प्रावधान लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951 की धारा 29A के तहत किया गया है। यह भारतीय चुनाव आयोग (ECI) में राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्रावधान करता है।
    • इसके अलावा, धारा 29A के तहत राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए ECI के दिशा-निर्देश और आवेदन प्रारूप में केवल आंतरिक जवाबदेही के लिए प्रावधान निर्धारित किए गए हैं। इसमें उम्मीदवार के चयन के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
  • दंडात्मक प्रावधानों का अभाव: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (I) बनाम इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल वेलफेयर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, वर्तमान में ECI को किसी भी दल का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार नहीं है।
  • संरचनात्मक चुनौतियां: वंशवादी राजनीति का प्रचलन; केंद्रीकृत सत्तावादी संरचनाएं; 1985 का दलबदल-रोधी कानून (संविधान का 52वां संशोधन) जिसमें पार्टी लाइन (दल की विचारधारा व नीतियों) का सख्ती से पालन करने की अनिवार्यता है; आदि।
  • अन्य मुद्दे: राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव, कमजोर संगठनात्मक ढांचा, आदि।

 आगे की राह 

  • पारदर्शिता: चुनाव सुधारों से संबंधित सरकार द्वारा गठित कई समितियों जैसे तारकुंडे समिति (1975), दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) ने देश में राजनीतिक दलों के कार्यों में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर दिया है।
  • "चुनाव सुधार" पर विधि आयोग की सिफारिशें (255वीं रिपोर्ट) को अपनाना:
    • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में नया अध्याय IVC: इसमें आंतरिक लोकतंत्र, दलीय संविधान, दलीय संगठन, आंतरिक चुनाव, उम्मीदवार के चयन, मतदान प्रक्रिया और गैर-अनुपालन के कुछ मामलों सहित किसी दल का पंजीकरण रद्द करने की चुनाव आयोग की शक्ति से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग (NCRWC):
    • भारत में राजनीतिक दलों या दलों के गठबंधनों के पंजीकरण और कार्यप्रणाली को विनियमित करने के लिए राजनीतिक दल (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम जैसा व्यापक कानून बनाने की सिफारिश की गई है।
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  • राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र
  • भारतीय चुनाव आयोग
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