Select Your Preferred Language

Please choose your language to continue.

प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ एवं ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द (‘SOCIALIST’, ‘SECULAR’ IN THE PREAMBLE) | Current Affairs | Vision IAS
Monthly Magazine Logo

Table of Content

प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ एवं ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द (‘SOCIALIST’, ‘SECULAR’ IN THE PREAMBLE)

Posted 26 Dec 2024

Updated 31 Dec 2024

37 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ (2024) मामले में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्दों को शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। 

अन्य संबंधित तथ्य 

  • इन शब्दों को शामिल करने के खिलाफ याचिकाएं इस आधार पर दायर की गई थी कि इन शब्दों को आपातकाल (1975-1977) के दौरान शामिल किया गया था और ये लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। 
  • याचिकाओं में यह तर्क भी दिया गया था कि संविधान सभा द्वारा प्रस्तावना अपनाने की तारीख (26 नवंबर, 1949) के समय ये शब्द मूल प्रस्तावना में शामिल नहीं थे। बाद में इसमें कोई अतिरिक्त शब्द जोड़ना संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है।

42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के बारे में

  • 42वां संविधान संशोधन अधिनियम क्या था: इसे "लघु-संविधान" के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसके तहत संविधान की प्रस्तावना, 40 अनुच्छेदों और 7वीं अनुसूची में संशोधन किया गया था। साथ ही, संविधान में 14 नए अनुच्छेद और दो नए भाग भी जोड़े गए थे।
  • किए गए प्रमुख परिवर्तन थे: 
    • प्रस्तावना: इसमें 'समाजवादी', 'पंथनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्द जोड़े गए थे।
      • 'राष्ट्र की एकता' की जगह 'राष्ट्र की एकता एवं अखंडता' शब्द का प्रयोग किया गया। 
    • 7वीं अनुसूची में परिवर्तन: निम्नलिखित श्रेणियों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया गया: 
      • शिक्षा; वन; वन्य जीव और पक्षियों का संरक्षण; भार एवं माप; न्याय का प्रशासन; सभी न्यायालयों का गठन व संगठन (सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को छोड़कर)।
    • आपातकाल: राष्ट्रपति को न केवल पूरे देश में, बल्कि देश के किसी विशेष भाग में आपातकाल घोषित करने के लिए अधिकृत करने हेतु अनुच्छेद 352 में संशोधन किया गया। 
    • नए राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) को शामिल किया गया: 
      • अनुच्छेद 39: बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए अवसर सुरक्षित करना।
      • अनुच्छेद 39A: समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता।
      • अनुच्छेद 43A: उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों/ कर्मकारों की भूमिका।
      • अनुच्छेद 48A: पर्यावरण की सुरक्षा और सुधार तथा वनों एवं वन्यजीवों का संरक्षण।
    • दो नए भाग जोड़े गए: भाग IV-A (मौलिक कर्तव्य), भाग XIV-A (प्रशासनिक अधिकरणों की स्थापना)।

 

 

सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई मुख्य टिप्पणियां 

  • पूर्वव्यापीता (Retrospectivity) को ख़ारिज किया: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान को अपनाए जाने की तारीख, संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत इसमें संशोधन करने की संसद की शक्ति को कम नहीं करती है।
    • संसद अनुच्छेद 368 के तहत अपनी संविधायी शक्ति (Constituent power) का प्रयोग करते हुए, इस अनुच्छेद में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार किसी प्रावधान को जोड़, परिवर्तन या निरस्त करके संविधान में संशोधन कर सकती है।
    • न्यायालय ने माना कि संसद की संविधान संशोधन की शक्ति का विस्तार प्रस्तावना तक भी है। हालांकि, संसद की इस शक्ति को मूल ढांचे के उल्लंघन सहित अलग-अलग आधारों पर चुनौती भी दी जा सकती है। 
  • समाजवाद और पंथनिरपेक्षता की परिभाषा: अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने दोनों शब्दों को भी परिभाषित किया: 
    • पंथनिरपेक्षता: भारत के संदर्भ में इसका अर्थ है कि राज्य न तो किसी धर्म विशेष का समर्थन करेगा और न ही अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा न ही नागरिकों द्वारा किसी धर्म विशेष को मानने, आचरण करने और प्रचार करने को दंडित करेगा। इसके अलावा, राज्य का अपना कोई राजकीय धर्म भी नहीं होगा।
      • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य और एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पंथनिरपेक्षता संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। 
    • समाजवाद: यह कल्याणकारी राज्य और अवसर की समानता सुनिश्चित करने के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। 
  • संविधान एक जीवंत दस्तावेज़ है: समय के साथ, भारत ने संविधान को एक जीवंत चरित्र प्रदान करते हुए इन शब्दों की अपनी व्याख्या विकसित की है।

पंथनिरपेक्षता और समाजवाद के बारे में 

पंथनिरपेक्षता 

  • पंथनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा के अनुसार, राज्य धर्म के प्रति तटस्थता एवं सकारात्मक भूमिका की अवधारणा का पालन करता है। 
    • इस अवधारणा में- 
      • राज्य को धार्मिक आचरण से जुड़े आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक और पंथनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है।
      • यह व्यक्तियों और अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित है।
  • पंथनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता की पश्चिमी अवधारणा से अलग है। पश्चिमी अवधारणा में धर्म के मामले में अहस्तक्षेप के सिद्धांत का पालन किया गया है। पश्चिमी देशों में राज्य और धर्म कठोर तरीके से अलग-अलग हैं तथा व्यक्तिगत अधिकार सर्वोच्च हैं।

समाजवाद

  • समाजवाद: यह उन सिद्धांतों से संबंधित है, जो एक ऐसे समाज की स्थापना की परिकल्पना करते हैं, जहां सभी व्यक्ति आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में समानता का आनंद प्राप्त करेंगे। 
    • समाजवाद का विचार काफी हद तक कार्ल मार्क्स से लोकप्रिय हुआ था। उन्होंने वैज्ञानिक समाजवाद का विचार प्रतिपादित किया था।
      • उनका मानना ​​था कि मजदूर वर्ग की हिंसक क्रांति समाज से शोषक पूंजीपति वर्ग को खत्म कर सकती है।
    • क्यूबा, चीन और उत्तर कोरिया जैसे साम्यवादी देशों में सरकार उद्योगों पर पूर्ण नियंत्रण रखती है और अर्थव्यवस्था को एक केंद्रीय योजना के अनुसार चलाती है, जो समाजवाद की एक प्रमुख विशेषता है।
    • समाजवाद के कई प्रकार हैं, जैसे- लोकतांत्रिक समाजवाद, विकासवादी समाजवाद, फैबियन समाजवाद, गिल्ड समाजवाद आदि।
  • भारत में समाजवाद का विचार: 
    • यह मिश्रित अर्थव्यवस्था मॉडल पर आधारित है। इस मॉडल के तहत राज्य जरूरतमंदों का कल्याण सुनिश्चित करता है, जबकि निजी उद्यम रोजगार बढ़ाते हैं और मजबूत आर्थिक संवृद्धि में बढ़ोतरी करते हैं। 
    • इसे काफी हद तक जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी जैसे प्रख्यात नेताओं के विचारों द्वारा आकार दिया गया था, जो लोकतांत्रिक समाजवाद के पक्षधर थे। 
    • यह निम्नलिखित तरीकों से अन्य साम्यवादी देशों में प्रचलित समाजवाद से भिन्न है-
      • यह व्यक्ति और समुदाय के बीच भारी अंतर को खारिज करता है: यह दोनों को एक साथ सुधारने पर केंद्रित है।
      • निजी संपत्ति की प्रासंगिकता: इसने निजी संपत्ति की उपस्थिति के साथ-साथ परिवर्तन लाने में राज्य की शक्तियों पर भी अधिक जोर दिया है।
        • यह पूंजीवाद के उन्मूलन में विश्वास नहीं करता बल्कि असमानता को दूर करने पर केंद्रित है।
      • अहिंसा का विचार: यह घरेलू राजनीतिक उपायों से हिंसा को खत्म करना चाहता है।
  • लोकतांत्रिक समाजवाद: 
    • यह समाजवाद के सिद्धांतों के साथ लोकतांत्रिक सिद्धांतों के सह-अस्तित्व के विचार पर आधारित है।
    • यह राज्य की अवधारणा में मार्क्सवाद से भिन्न है।
      • लोकतांत्रिक समाजवाद का मानना ​​है कि राज्य पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों के शोषण का साधन नहीं है, बल्कि राज्य सामाजिक कल्याण का एक साधन है।
      • समाज के सभी वर्ग राज्य के स्वामी हैं।
    • यह मतपेटी के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के लिए शांतिपूर्ण और विकासवादी साधनों की वकालत करता है।
    • समाजवाद के मार्क्सवादी विचार से मतभेदों के बावजूद, यह श्रमिकों के शोषण को समाप्त करने और लोगों के बीच समानता को बढ़ावा देने के साझे लक्ष्यों को साझा करता है।

 

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा निर्णय इस विचार पर जोर देता है कि संवैधानिक मूल्यों ने देश की जरूरतों के अनुरूप निरंतर विकास दर्शाया है। समाजवाद और पंथनिरपेक्षता जैसे विचार अब लोगों द्वारा अच्छी तरह से स्वीकार किए जाते हैं व समझे जाते हैं। इसलिए न्याय, स्वतंत्रता और समानता के प्रति निष्ठा, साथ ही सतर्कता, समर्पण और नई चुनौतियों का सामना करने की इच्छाशक्ति, हमें असमानता और जलवायु परिवर्तन जैसी समकालीन समस्याओं से निपटने में सक्षम बनाएगी।

  • Tags :
  • समाजवादी
  • पंथनिरपेक्ष
  • SECULAR
  • 42वें संविधान संशोधन
Download Current Article
Subscribe for Premium Features

Quick Start

Use our Quick Start guide to learn about everything this platform can do for you.
Get Started