भारत में संपत्ति का अधिकार (Property Rights in India) | Current Affairs | Vision IAS
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भारत में संपत्ति का अधिकार (Property Rights in India)

Posted 26 Dec 2024

Updated 31 Dec 2024

45 min read

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इसमें निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने की राज्य की शक्तियों को सीमित किया गया है।

अन्य संबंधित तथ्य 

  • इस निर्णय ने कर्नाटक राज्य बनाम रंगनाथ रेड्डी (1978) और संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड और अन्य वाद (1983) में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया। 
    • इन दोनों मामलों में यह निर्णय दिया गया था कि निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन (Community resources) माना जा सकता है।
  • यह बदलाव भारत में संपत्ति के अधिकारों की कानूनी समझ में एक महत्वपूर्ण विकास को दर्शाता है।

संपत्ति के अधिकार का विकास

  • मूल स्थिति: प्रारंभ में, संपत्ति के अधिकार और अधिग्रहण की स्थिति में मुआवजे को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) और 31 के तहत मूल अधिकारों के रूप में संरक्षित किया गया था।
  • 25वां संविधान संशोधन अधिनियम (1971): इसके द्वारा संविधान में अनुच्छेद 31C को शामिल किया गया था। अनुच्छेद 31C ने उन कानूनों को संरक्षण प्रदान किया, जो राज्य की नीति के निदेशक तत्वों {विशेष रूप से अनुच्छेद 39(b) और 39(c)} को अमल में लाने के लिए बनाए गए हैं। इन कानूनों को मूल अधिकारों का उल्लंघन करने के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है, जिनमें अनुच्छेद 14 और 19 के तहत प्रदत्त अधिकार भी शामिल हैं। 
  • संपत्ति के अधिकार की वर्तमान स्थिति: 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया गया, तथा इसे अनुच्छेद 300A के अंतर्गत एक संवैधानिक अधिकार बना दिया गया। साधारण भाषा में, अब संपत्ति का अधिकार मूल अधिकार नहीं है, अपितु एक संवैधानिक अधिकार है।  

 

हालिया निर्णय (प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन बनाम महाराष्ट्र राज्य) के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र 

  • अनुच्छेद 39(b) का दायरा: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि निजी संपत्ति को अनुच्छेद 39(b) के तहत स्वतः "समुदाय के भौतिक संसाधन" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधन को समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता है।
    • अनुच्छेद 39(b) राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (भाग IV) का हिस्सा है। इसके अनुसार, राज्य को यह प्रयास करना चाहिए कि "समुदाय के भौतिक संसाधनों (Material resource of the community)" का स्वामित्व व नियंत्रण इस प्रकार बंटा हो, जिससे सामूहिक हित की सर्वोत्तम रूप से पूर्ति हो। साधारण भाषा में, अनुच्छेद 39(b) राज्य को निर्देश देता है कि वह समुदाय के सभी संसाधनों, जैसे कि जमीन, खदानें, वन, पानी आदि, का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरह से करे कि सभी लोगों का भला हो।
  • संपत्ति अधिग्रहण का अधिकार: अनुच्छेद 39(b) राज्य को निजी संपत्ति के अधिग्रहण की विधायी शक्ति प्रदान नहीं करता है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार भूमि अधिग्रहण करने की संप्रभु शक्ति (Eminent domain), और सातवीं अनुसूची में सूची III की प्रविष्टि 42 से प्राप्त होता है।
  • वर्गीकरण के लिए मानदंड: किसी निजी संपत्ति को "समुदाय के भौतिक संसाधन" के रूप में शामिल करने का निर्णय उसकी प्रकृति, उपलब्धता या कमी, सामुदायिक कल्याण पर प्रभाव, और निजी हाथों में संकेंद्रण पर निर्भर करता है।
  • आर्थिक नीतियों में लचीलापन: कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान निर्माताओं का इरादा आर्थिक नीतियों को लचीला बनाना था, ताकि सरकारें समय के साथ बदलते हालात के हिसाब से आर्थिक नियमों में बदलाव कर सकें, न कि वे एक स्थायी आर्थिक सिद्धांत से बंधी रहें।
  • अनुच्छेद 31C की वैधता: कोर्ट ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि केशवानंद भारती मामले में बरकरार रखा गया अनुच्छेद 31C अभी भी वैध है।
  • सार्वजनिक कल्याण और निजी संपत्ति के अधिकारों के बीच संतुलन: सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक कल्याण और निजी संपत्ति के अधिकार के बीच एक संतुलन स्थापित किया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि सरकार के सभी कार्य संविधान के मूलभूत सिद्धांतों, जैसे कि समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) और संपत्ति के अधिकार (अनुच्छेद 300A) के अनुरूप होने चाहिए।
    • कोर्ट ने कहा कि यहां सार्वजनिक न्यास सिद्धांत (Public Trust Doctrine) को भी लागू किया जा सकता है। यह सिद्धांत यह सुनिश्चित करता है कि प्राकृतिक संसाधनों तक सभी की समान पहुंच हो और इनका उपयोग लोक हित में किया जाए।
  • इमिनेंट डोमेन की सीमाएं: सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण में इमिनेंट डोमेन के सिद्धांत के व्यापक उपयोग पर सवाल उठाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधन समुदाय के भौतिक संसाधन नहीं माने जा सकते, जिन्हें लोक कल्याण के लिए जब्त/ अधिग्रहित किया जा सके।

इमिनेंट डोमेन (Eminent domain) का सिद्धांत

यह एक कानूनी सिद्धांत है, जो सरकारों को निजी संपत्ति को सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहित करने की अनुमति देता है। यह सिद्धांत समाज कल्याण और संपत्ति के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है। सभी स्तरों की सरकारें इस शक्ति का प्रयोग कर सकती हैं, लेकिन संपत्ति के स्वामी को उचित मुआवजा प्रदान करना अनिवार्य है।

  • इमिनेंट डोमेन सिद्धांत के तत्व:
    • सार्वजनिक उपयोग: सरकार सार्वजनिक उद्देश्य (जैसे कि अवसंरचना निर्माण) के लिए निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है, लेकिन यह तभी किया जा सकता है जब कोई वैध आवश्यकता हो और कोई वैकल्पिक उपाय न हो।
    • उचित मुआवजा: जब संपत्ति का अधिग्रहण किया जाता है, तो सरकार को संपत्ति के स्वामी को उचित मुआवजा प्रदान करना होगा। यह मुआवजा अधिग्रहण के समय बाजार मूल्य पर आधारित होगा।
    • उचित प्रक्रिया: इसके लिए उचित प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, अर्थात् संपत्ति के स्वामी को पहले सूचित किया जाना चाहिए और अधिग्रहण को चुनौती देने या मुआवजे पर वार्ता करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
    • सरकारी प्राधिकरण: इस शक्ति का प्रयोग केवल सरकार या उन अधिकृत सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा किया जा सकता है, जिनके पास सार्वजनिक उपयोग के लिए संपत्ति अधिग्रहण करने का कानूनी अधिकार है। इसे आमतौर पर विश्व भर के अधिकांश देशों में कानून द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • महत्वपूर्ण कानूनी मामले: सुदर्शन चैरिटेबल ट्रस्ट बनाम तमिलनाडु सरकार (2018) वाद में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इमिनेंट डोमेन राज्य की संप्रभुता से जुड़ा हुआ है। राज्य लोक हित के लिए निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है, बशर्ते उचित मुआवजा दिया जाए। यह शक्ति किसी व्यक्ति के आजीविका या सम्मान के अधिकार का उल्लंघन नहीं करती है।

"सार्वजनिक न्यास सिद्धांत (Public Trust Doctrine)" के बारे में

यह सिद्धांत प्राकृतिक संसाधनों के जिम्मेदारीपूर्ण प्रबंधन के माध्यम से पर्यावरण की रक्षा करने में मदद करता है। इसके माध्यम से हम प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा कर सकते हैं और पृथ्वी के संरक्षण को बढ़ावा दे सकते हैं। इसे थ. माजरा सिंह बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और एम.आई. बिल्डर्स बनाम रैडली श्याम साहू जैसे महत्वपूर्ण मामलों में अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता प्राप्त हुई थी।

  • ट्रस्टी (न्यासी) के रूप में राज्य: सार्वजनिक न्यास सिद्धांत के तहत, राज्य एक ट्रस्टी के रूप में कार्य करता है, जो जनता के लाभ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करता है। साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग किया जाए और वे समाप्त या क्षतिग्रस्त न हों।
    • टी.एन. गोदावर्मन बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य को एक ट्रस्टी के रूप में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों का लोक हित के लिए संधारणीय रूप से उपयोग किया जाए।
  • लाभार्थी के रूप में नागरिक: नागरिक इस न्यास के लाभार्थी हैं, जो अपने लाभ के लिए तथा भावी पीढ़ियों हेतु संसाधनों का संधारणीय रूप से उपयोग करते हैं।

 

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रभाव

●    विधायी और नीतिगत प्रभाव: यह निर्णय भविष्य के संपत्ति अधिग्रहण कानूनों, भूमि सुधारों और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों को प्रभावित कर सकता है, तथा निष्पक्षता व पारदर्शिता को बढ़ावा दे सकता है।

●    आर्थिक सुधार: यह निर्णय राज्य की संपत्ति अधिग्रहण की शक्ति को सीमित करके, निजी निवेश को समर्थन प्रदान करता है और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करता है। साथ ही, यह एक अधिक बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव का संकेत भी देता है।

●    राजनीतिक बहस: राजनीतिक दल भूमि सुधार और संपत्ति के अधिकारों पर अपने रुख को समायोजित कर सकते हैं, जबकि यह फैसला सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों, विशेष रूप से वंचितों के लिए भूमि पुनर्वितरण को आकार दे सकता है।

●    संवैधानिक जांच: यह निर्णय निजी संपत्ति पर सरकारी कार्रवाई की जांच करने में न्यायपालिका की भूमिका को मजबूत करता है। साथ ही, यह भी सुनिश्चित करता है कि कानून समानता और संपत्ति सहित संवैधानिक अधिकारों के अनुरूप हों।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने अनुच्छेद 39(b) पर स्पष्टता प्रदान की है। कोर्ट ने कहा है कि निजी संपत्ति को सार्वजनिक हित में इस्तेमाल करने के लिए "समुदाय के भौतिक संसाधन" के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करते समय हर मामले में अलग-अलग परिस्थितियों को ध्यान में रखना होगा। इस निर्णय में समानता और संपत्ति के अधिकारों सहित संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए सरकारी कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया गया है, जबकि सार्वजनिक न्यास सिद्धांत के माध्यम से जिम्मेदारीपूर्ण संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा दिया गया है।

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