सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 'बोस-आइंस्टीन (B-E)' सांख्यिकी के शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया।
अन्य संबंधित तथ्य
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत कार्यरत एस.एन. बोस राष्ट्रीय मूलभूत विज्ञान केंद्र सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में सत्येंद्र नाथ बोस के अविस्मरणीय योगदान को याद करते हुए उनकी शताब्दी वर्ष मना रहा है।
- गौरतलब है कि 1924 में सत्येंद्र नाथ बोस ने क्वांटम सिद्धांत के आधार पर कणों या फोटॉन्स के व्यवहार को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तावित किया था।
- अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनके सहयोग से अंततः B-E सांख्यिकी परिकल्पना का प्रतिपादन हुआ था।
सत्येंद्र नाथ बोस (1894-1974) के बारे में
- सत्येंद्र नाथ बोस एक भारतीय भौतिक विज्ञानी थे, जिन्होंने बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट की अवधारणा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
- वे पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के रहने वाले थे।
- बोस ने अपनी शिक्षा कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्राप्त की, जहां उन्हें प्रफुल्ल चंद्र रे और जगदीश चंद्र बोस जैसे चर्चित शिक्षकों के मार्गदर्शन में पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ।
- उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय और ढाका विश्वविद्यालय दोनों के भौतिकी विभाग में काम भी किया।
एस.एन. बोस के वैज्ञानिक योगदान

- बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी: यह वर्णन करती है कि गैर-परस्पर क्रियाशील और अविभाज्य कणों का संग्रह थर्मोडायनेमिक संतुलन में उपलब्ध विविध पृथक ऊर्जा अवस्थाओं (discrete energy states) को किस प्रकार ग्रहण करती है।
- सरल शब्दों में कहें तो यह इस बात को समझने के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करती है कि ये कण विभिन्न ऊर्जा स्तरों पर विशेष रूप से कम तापमान पर उपलब्ध क्वांटम अवस्थाओं के बीच खुद को कैसे वितरित करते हैं।
- इस सांख्यिकी को आइंस्टीन द्वारा गैस अणुओं तक बढ़ाया गया था। कण जो B-E सांख्यिकी सिद्धांत का पालन करते हैं उन्हें "बोसॉन" कहा जाता है, जिसका नाम एस.एन. बोस के नाम पर रखा गया है।
- बोसॉन मूलभूत कण हैं जिनके स्पिन का मान पूर्णांक (0, 1, 2, आदि) संख्या होती है। फोटॉन, ग्लूऑन, आदि बोसॉन कण के कुछ उदाहरण हैं।

- बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी निम्नलिखित परिघटनाओं की भविष्यवाणी करती है:
- बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट्स (BEC): अत्यंत निम्न तापमान पर, बोसॉन का एक बड़ा हिस्सा सबसे कम ऊर्जा वाली एक ही क्वांटम अवस्था ग्रहण कर सकता है। इससे पदार्थ की एक अनूठी अवस्था बनती है (उदाहरण के लिए- सुपरफ्लुइड हीलियम या अल्ट्राकोल्ड परमाणु गैसें)।
- इसने 20वीं सदी में पहली क्वांटम क्रांति को संभव बनाया। इसके चलते लेजर, ट्रांजिस्टर, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग और अर्धचालक जैसी तकनीकों के विकास में मदद मिली।
- दूसरी क्वांटम क्रांति को क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम सेंसिंग जैसी प्रौद्योगिकियों के विकास द्वारा परिभाषित किया जाता है।
- फोटॉन व्यवहार: इस सांख्यिकी के नियम ब्लैकबॉडी रेडिएशन और प्लैंक ऊर्जा के वितरण की व्याख्या करते हैं, जिससे क्वांटम यांत्रिकी के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट्स (BEC): यह एक क्वांटम परिघटना है, जिसकी भविष्यवाणी सत्येन्द्रनाथ बोस और अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1925 में की थी।
- यह पदार्थ की वह अवस्था है जो तब बनती है जब कणों को परम शून्य तापमान (-273.15 डिग्री सेल्सियस/0 केल्विन) के करीब ठंडा किया जाता है।
- इस बिंदु पर सभी परमाणु एक ही सामूहिक इकाई बन जाते हैं और वे क्वांटम गुण हासिल कर लेते हैं। अब प्रत्येक कण एक साथ पदार्थ की एक तरंग के रूप में कार्य करता है।
- इसे 'पदार्थ की पाँचवीं अवस्था' कहा जाता है।
- BEC के गुणों में शामिल हैं:
- सुपर फ्लुइडिटी (अति तरलता): BEC में शून्य श्यानता (Viscosity) होती है और यह बिना किसी प्रतिरोध के प्रवाहित हो सकता है।
- सुपर कंडक्टिविटी: इसमें शून्य प्रतिरोध के कारण इष्टतम चालकता संभव होती है।
- कोहेरेंस (Coherence): BEC में सभी कण एक ही क्वांटम अवस्था में होते हैं और एकल इकाई के रूप में व्यवहार करते हैं।
- मैक्रोस्कोपिक ऑक्यूपेशन: BEC में कई कण एक ही क्वांटम अवस्था में होते हैं, जिससे वे मैक्रोस्कोपिक स्तर पर एक तरंग के रूप में कार्य करने लगते है।
- सुपर सॉलिड: वैज्ञानिकों ने पाया है कि BEC उच्च घनत्व वाले 'ड्रॉपलेट्स' का निर्माण करता है, जो एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं। जब इन्हें कुछ विशेष नियंत्रित परिस्थितियों (जैसे- मैग्नेटिक ट्रैप आदि) में रखा जाता है, तो ये ड्रॉपलेट्स व्यवस्थित संरचना बन जाते हैं।
- बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट (BEC) उच्च तापमान पर भी उन पदार्थों में पाया जा सकता है जिनमें बोसोनिक क्वासीपार्टिकल्स (जैसे- मैग्नॉन्स, एक्साइटॉन्स, और पॉलरिटॉन्स) मौजूद होते हैं।
- ऑर्गेनिक केमिस्ट्री: सामान्य मिट्टी के खनिजों की परमाणु संरचना को समझने के लिए एक्स-रे विवर्तन (X-ray diffraction) और डिफरेंशियल थर्मल एनालिसिस का उपयोग किया गया।
- थर्मोल्यूमिनेसेंस: उन्होंने एक तेज़ स्कैनिंग स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (जो प्रकाश को मापने का यंत्र होता है) डिज़ाइन किया, जिसकी संवेदनशीलता (ensitivity) बहुत अधिक थी। इसका मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र में प्रयोग करने वाले वैज्ञानिकों की आवश्यकताओं को पूरा करना था।
- गॉड पार्टिकल की खोज: हिग्स बोसॉन (जिसे गॉड पार्टिकल के रूप में भी जाना जाता है) की खोज बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी और BEC की अवधारणा में निहित वैज्ञानिक सिद्धांतों का उपयोग करके की गई थी।
- गॉड पार्टिकल एक अदृश्य क्षेत्र (हिग्स फील्ड) से उत्पन्न होता है जो संपूर्ण अंतरिक्ष में फैला होता है और कणों को द्रव्यमान प्रदान करता है। भले ही ब्रह्मांड खाली दिखाई दे लेकिन या यह क्षेत्र हमेशा मौजूद रहता है।