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हिमनदीय झील के टूटने से उत्पन्न बाढ़ (Glacial Lake Outburst Floods: GLOFs)

26 Dec 2024
36 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission: CWC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र की हिमनदीय झीलों एवं अन्य जल निकायों के आकार या सतही क्षेत्रफल में विस्तार हुआ है। 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र 

  • भारत की हिमनदीय झीलों के क्षेत्रफल में वृद्धि:  2011 से 2024 के बीच 33.7% की बढ़ोतरी हुई है।
  • सीमा-पार जोखिम: जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ोसी देशों, जैसे- भूटान, नेपाल और चीन सहित हिमालयी क्षेत्र में मौजूद हिमनदीय झीलों एवं अन्य जल निकायों के क्षेत्रफल में 2011 से 2024 तक 10.81% की वृद्धि हुई है।
  • GLOFs के लिए उच्च जोखिम की श्रेणी वाली झीलें: भारत में 67 हिमनदीय झीलों के सतही क्षेत्रफल में 40% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।
    • सर्वाधिक विस्तार वाले क्षेत्रों में लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं।

हिमनदीय झीलों एवं GLOFs के बारे में 

  • हिमनदीय झील: ये ग्लेशियरों के पिघलने से निर्मित होने वाले जल निकाय हैं। ग्लेशियर के आगे बढ़ने से संबंधित गतिविधियों के चलते उसके नीचे की भूमि का अपरदन हो जाता है एवं वहां पर गड्ढों या घाटियों का निर्माण होता जाता है, जिसमें बाद में जल का जमाव हो जाता है।
    • हिमनदीय झीलों की निर्माण प्रक्रिया के आधार पर उनकी 4 श्रेणियां हैं:
      • हिमोढ़ निर्मित बांध वाली हिमनदीय झील, 
      • हिम निर्मित बांध हिमनदीय झील, 
      • अपरदन से निर्मित हिमनदीय झील, और 
      • अन्य हिमनदीय झील।
  • GLOFs: प्राकृतिक तटबंध के टूटने से हिमनदीय झील का पानी अचानक तेजी से ढ़लान की ओऱ बहने लगता है, जिससे निचले इलाकों में प्रचंड बाढ़ आ जाती है। इसे ही GLOF कहा जाता है। 
  • GLOF की तीन मुख्य विशेषताएं हैं:
    • इसमें झील से जल का अचानक (और कभी-कभी चक्रीय रूप में) बड़ी मात्रा में बहाव शामिल होता है।
    • यह तीव्र गति से होने वाली घटना है, जो कई घंटों से लेकर कई दिनों तक चलती है।
    • इसके परिणामस्वरूप नदी के निचले हिस्से में जल की व्यापक मात्रा पहुंच जाती है।
  • GLOF के उदाहरण:
    • 2023: सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील में GLOF की घटना के कारण तीस्ता नदी का जल स्तर अचानक बढ़ गया, जिससे क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई।
    • 2013: उत्तराखंड में चोराबाड़ी हिमनदीय झील में GLOF की घटना के कारण मंदाकिनी नदी में बाढ़ आ गई थी।

GLOFs के मुख्य कारण

  • ग्लेशियल सर्जिंग: अपेक्षाकृत कम समय में बर्फ का अचानक खिसकना, जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर तेजी से आगे बढ़ता है। उदाहरण के लिए- गिलकी ग्लेशियर, अलास्का।
  • हिमोढ़ बांध में अस्थिरता: ढीली, असंगठित चट्टानों और मलबों से निर्मित हिमोढ़ बांध, स्वाभाविक रूप से अस्थिर प्रकृति के होते हैं। ये अपनी संरचनात्मक कमजोरी के कारण आसानी से ढह जाते हैं। उदाहरण के लिए- सिक्किम के दक्षिण ल्होनक झील में GLOF की घटना।  
  • हिम निर्मित बांध का टूटना: इनकी संरचना तापमान में वृद्धि, पानी के अधिक दबाव एवं आंतरिक रूप से पिघलने के कारण कमजोर हो जाती है।
  • भूकंपीय गतिविधि: पहाड़ी क्षेत्रों में विवर्तनिकी गतिविधियों के चलते हिमनदीय झीलों के तटबंध  टूट सकते हैं।
  • मानवीय गतिविधियां: अनियमित शहरीकरण, अवैज्ञानिक तरीके से किए जाने वाले उत्खनन, वनों की कटाई, जलविद्युत परियोजनाएं, GHG का उत्सर्जन जैसी विभिन्न गतिविधियां जल निकासी पैटर्न और पहाड़ों की ढलान स्थिरता को परिवर्तित करती हैं। 

GLOFs संबंधी प्रबंधन के लिए भारत में शुरू की गई विभिन्न पहलें 

  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने हिमनदीय झील के टूटने से उत्पन्न बाढ़ (GLOFs) के प्रबंधन हेतु दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
  • NDMA ने 6 हिमालयी क्षेत्रों में उच्च जोखिम वाली हिमनदीय झीलों की पहचान की है। साथ ही, NDMA ने जोखिमों का आकलन करने और व्यापक शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिए लक्षित अभियान चलाने की योजना भी बनाई है।
  • CWC ने GLOFs के प्रति संवेदनशील सभी मौजूदा और निर्माणाधीन बांधों की बाढ़ संबंधी डिजाइन की समीक्षा की है। 
    • हिमनदीय झीलों वाले जलग्रहण क्षेत्र में बनाए गए सभी बांधों के लिए GLOFs संबंधी अध्ययन को अनिवार्य बना दिया गया है।
  • केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति द्वारा हिमालयी राज्यों में GLOF जोखिम न्यूनीकरण परियोजना को मंजूरी दी गई। ये राज्य हैं- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश।
  • राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की ने नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज (NMHS) के तहत सिक्किम हिमालय में हिमनदीय झीलों की स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की है।

GLOFs प्रबंधन के लिए वैश्विक पहलें

  • हिमनदीय झीलों की निगरानी के लिए इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) ने हिन्दू कुश हिमालय क्रायोस्फीयर पहल शुरू की है।
  • वैश्विक जलवायु अवलोकन प्रणाली (Global Climate Observing System): यह सरकारों को हिमनदीय झीलों के आकार में वृद्धि वृद्धि एवं उनकी स्थिरता पर नज़र रखने के लिए अग्रिम चेतावनी प्रणालियों और सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • यूनेस्को जलवायु परिवर्तन और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र कार्यक्रम (UNESCO Climate Change and Mountain Ecosystem Programme): यह हिमनदीय झीलों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिए संधारणीय पर्यटन और संरक्षण को बढ़ावा देता है।
  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (Sendai Framework for Disaster risk reduction): यह सीमा पार GLOF संबंधी जोखिमों के प्रबंधन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।

 

 

GLOFs के प्रबंधन में मौजूद चुनौतियां

  • कठिन और अत्यधिक दुर्गम हिमालयी भू-भाग में नियमित रूप से सर्वेक्षण करना बहुत मुश्किल कार्य है।
  • अग्रिम चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems) का अभाव है, जिसके लिए बेहतर योजना और मजबूत बुनियादी ढांचे की आवश्यकता होती है।
  • हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता: हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय जोन IV और V में आता है, जिसके कारण यह भूकंप और भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है।
  • जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। 
    • इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के अनुसार, 2100 तक उच्च उत्सर्जन के कारण हिंदू कुश हिमालय (HKH) में मौजूद वर्तमान ग्लेशियर के कुल वॉल्यूम का 70-80% तक समाप्त हो जाएगा।

आगे की राह: NDMA द्वारा जारी दिशा-निर्देश

  • GLOFs की गतिशीलता की व्यापक समझ बनाना: GLOFs के कारणों और प्रक्रियाओं को समझने के लिए गहन अध्ययन करना चाहिए। इसके तहत हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों जैसे आल्प्स, तियान शान रेंज और एंडीज सम्बन्धी नवीनतम वैज्ञानिक अनुसंधान एवं घटनाओं का विश्लेषण किया जाना चाहिए। 
  • तकनीकी विशेषज्ञता को बढ़ाना और क्षमता का निर्माण करना: GLOFs के संदर्भ में और अधिक समझ विकसित करने हेतु राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर तकनीकी विशेषज्ञता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • सहयोग और रणनीतिक विकास को बढ़ावा देना: विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और हितधारकों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाना चाहिए, ताकि GLOFs संबंधी जोखिमों की निगरानी और उन्हें कम करने हेतु व्यापक रणनीतियों को विकसित कर उन्हें लागू किया जा सके। 
  • शमन रणनीतियों का उपयोग करना: इसके तहत संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक शमन उपायों का परीक्षण करना चाहिए, जिसमें कंट्रोल्ड ब्रिचिंग, साइफनिंग, आउटलेट कंट्रोल संरचनाओं का निर्माण और सामुदायिक-आधारित दृष्टिकोण शामिल हैं। 
  • निगरानी और अग्रिम चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाना: GLOFs का पूर्वानुमान करने हेतु उपग्रह-आधारित निगरानी, ​​भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) और रिमोट सेंसिंग प्रौद्योगिकियों के एकीकरण पर कार्य किया जाना चाहिए।
    • हिमालयी क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप अग्रिम चेतावनी प्रणालियों के विकास और कार्यान्वयन की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए।  
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