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वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन योजना (One Nation One Subscription Scheme)

26 Dec 2024
37 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन (ONOS)' योजना को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य सभी सार्वजनिक संस्थानों की वैज्ञानिक पत्रिकाओं/ जर्नल्स तक समान पहुंच प्रदान करना है।

वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन' (ONOS) योजना के बारे में 

  • उद्देश्य: विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics: STEM) तथा सामाजिक विज्ञान के क्षेत्रकों में प्रकाशित ई-जर्नल्स एवं डेटाबेस सब्स्क्रिप्शन्स के लिए राष्ट्रीय लाइसेंस प्राप्त करना। 
  • मुख्य विशेषताएं
    • डिजिटल पहुंच: ONOS को एक्सेस करने का प्रबंधन इन्फॉर्मेशन एंड लाइब्रेरी नेटवर्क (INFLIBNET) द्वारा किया जाएगा। यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) का एक स्वायत्त अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र है। यह सभी संस्थानों के लिए पूर्ण डिजिटल प्रक्रिया प्रदान करता है।
    • निगरानी: अनुसंधान नेशनल अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF) समय-समय पर ONOS के उपयोग और भारतीय लेखकों द्वारा प्रकाशित आलेखों की समीक्षा करेगा।
    • अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स: यह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, लैंसेट सहित एल्सेवियर साइंस डायरेक्ट आदि 30 प्रमुख प्रकाशकों के 13,000 जर्नल्स को शामिल करेगा।  
    • वित्तीय आवंटन: सरकार ने केंद्रीय क्षेत्रक की एक नई योजना के तहत 2025-2027 तक ONOS के लिए 6,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
    • कार्यान्वयन रणनीति: उच्चतर शिक्षा विभाग एक एकीकृत पोर्टल प्रदान करेगा तथा सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) अभियान के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने का कार्य करेगा।

वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन योजना की आवश्यकता क्यों है?

  • सार्वजनिक निधियों से लाभ: अकादमिक प्रकाशन एक अत्यधिक लाभदायक उद्योग है, जो 19 बिलियन अमरीकी डॉलर का राजस्व उत्पन्न करता है। इसमें मुनाफे का मार्जिन 40% तक है। 
    • हालांकि, यह लाभ मुख्यतः सार्वजनिक निधियों से प्राप्त होता है, लेकिन कुछ निजी कंपनियों तक ही सीमित रहता है। 
  • शोषणकारी प्रकाशन का सामना करना: कई निम्न-गुणवत्ता वाले जर्नल्स भारतीय शोधकर्ताओं से प्रकाशन शुल्क लेकर बिना उचित समीक्षा के उनके शोध को प्रकाशित करते हैं, जिससे शोध की गुणवत्ता प्रभावित होती है। 
  • पहुंच संबंधी बाधाओं को दूर करना: महंगे सब्सक्रिप्शन मॉडल के कारण लघु संस्थाओं के शोधकर्ता वैश्विक सहयोग हासिल करने में पीछे रह जाते हैं। इससे लघु संस्थाओं के शोधकर्ताओं की वैश्विक स्तर पर सहयोग करने की क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए- नेचर कम्युनिकेशंस प्रति शोध-पत्र 6,790 डॉलर का शुल्क लेता है।
  • प्रकाशकों के पक्ष में समझौता: भारतीय संस्थान ऐसे अनुबंध करते हैं, जो प्रकाशकों के पक्ष में होते हैं, जैसे- प्रतिबंधात्मक कॉपीराइट हस्तांतरण। यह भारतीय शोधकर्ताओं के अपने कार्य पर नियंत्रण को सीमित करता है।
  • वित्तीय बोझ को कम करना: 2021 में, भारतीय लेखकों ने गोल्ड ओपन एक्सेस जर्नल्स के लिए आर्टिकल प्रोसेसिंग चार्ज (APCs) के रूप में 380 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। यह शोधकर्ताओं पर वित्तीय दबाव को दर्शाता है। 

वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन से जुड़ी समस्याएं 

  • ओपन एक्सेस (OA) की ओर रुझान: 50% से अधिक शोध सामग्री अब नि:शुल्क उपलब्ध है, जिसके कारण ONOS अप्रासंगिक हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिए- अमेरिका को 2026 तक सभी सार्वजनिक रूप से वित्त-पोषित शोधों को निःशुल्क उपलब्ध कराने की आवश्यकता होगी। इसके कारण 2025 के बाद ONOS के भविष्य को लेकर संदेह पैदा हो सकता है। 
  • राष्ट्रव्यापी सब्सक्रिप्शन की सीमाएं: ONOS केवल लोकप्रिय जर्नल्स को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे लघु प्रकाशनों की उपेक्षा होने की आशंका है। इससे छोटे समुदायों के लिए पहुंच सीमित हो सकती है और शोध विविधता में कमी आ सकती है। 
  • वाणिज्यिक प्रकाशकों का प्रभुत्व: ONOS पश्चिमी प्रकाशकों को लाभ पहुंचा सकता है, जिनके लाभ मार्जिन 40% तक होते हैं। यह सार्वजनिक रूप से वित्त-पोषित शोध के मूल उद्देश्य को कमजोर कर सकता है।
  • कॉपीराइट संबंधी मुद्दे: शोधकर्ता अक्सर प्रकाशन के दौरान कॉपीराइट का दावा छोड़ देते हैं। इससे प्रकाशक बिना अनुमति के शोधकर्ताओं की मेहनत का उपयोग कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए- टेलर एंड फ्रांसिस ने माइक्रोसॉफ्ट को अपने जर्नल्स का AI प्रशिक्षण के लिए उपयोग करने की अनुमति दी थी। इससे लेखक अपने कॉपीराइट से वंचित हो गए थे। इसलिए माइक्रोसॉफ्ट को उनकी अनुमति की आवश्यकता नहीं थी।
  • डिजिटल कंटेंट संरक्षण: कंटेंट के संरक्षण के लिए प्रकाशकों पर निर्भर रहना जोखिम भरा होता है। 2023 में जापान इंस्टीट्यूट ऑफ हेटेरोसाइक्लिक केमेस्ट्री द्वारा प्रकाशित जर्नल "हेटेरोसाइकिल्स" बंद हो गया था। इसके कारण 17,000 लेख अनुपलब्ध हो गए थे।
  • अन्य समस्याएं: भारतीय जर्नल्स के लिए समर्थन की कमी; ONOS के तहत चयन, निगरानी आदि की प्रक्रिया में पारदर्शिता की समस्या; टियर-2 और टियर-3 शहरों में हाई स्पीड इंटरनेट की कम उपलब्धता आदि।

आगे की राह 

  • राष्ट्रीय लाइसेंस पर वार्ता: सब्सक्रिप्शन की लागत में 90-95% की कमी के लिए वार्ता करनी चाहिए। साथ ही, भारतीय शोधकर्ताओं के लिए आर्टिकल प्रोसेसिंग चार्ज (APC) पर छूट सहित अनुकूल शर्तें सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • समझौता संबंधी शर्तें: संस्थाओं के हितों की रक्षा और बौद्धिक संपदा (IP), मूल्य निर्धारण एवं नवीकरण पर उचित शर्तें सुनिश्चित करने के लिए एक सामान्य मॉडल लाइसेंस समझौता तैयार करना चाहिए। 
  • नवोन्मेषी सेवाएं: संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा देने, पहुंच सुनिश्चित करने, प्रवृत्तियों की निगरानी करने और स्थिरता के लिए प्रशिक्षण एवं सहायता प्रदान करने हेतु अवसंरचना का निर्माण करना चाहिए। 
  • ओपन एक्सेस को बढ़ावा देना: ओपन एक्सेस और कॉपीराइट सामग्री के उचित उपयोग को प्रोत्साहित करना, ओपन एक्सेस जर्नल्स का समर्थन करना तथा युवा शोधकर्ताओं के लिए आर्टिकल प्रोसेसिंग चार्ज (APC) हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना। 

अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF)

  • उत्पत्ति: इसे ANRF अधिनियम, 2023 के तहत स्थापित किया गया है। यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत संचालित होता है। इसकी स्थापना के साथ ही विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड का ANRF में विलय कर दिया गया है। 
  • मंत्रालय: विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय। 
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, शोध संस्थानों और शोध एवं विकास (R&D) प्रयोगशालाओं में अनुसंधान व नवाचार की संस्कृति की शुरुआत करना तथा उसे विकसित करना और बढ़ावा देना है। 

कार्य:

  • शीर्ष निकाय के रूप में कार्य: ANRF राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की सिफारिशों के अनुरूप भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा। 
  • यह फाउंडेशन उद्योगों, शिक्षाविदों, सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देगा। इससे उद्योग और राज्य सरकारों के वैज्ञानिक मंत्रालयों के साथ काम करने के लिए एक मंच तैयार होगा।

प्रमुख पहल: PAIR कार्यक्रम

'त्वरित नवाचार और अनुसंधान के लिए साझेदारी' (Partnerships For Accelerated Innovation And Research: PAIR) पहल की शुरुआत राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप की गई है। इसे हब और स्पोक मॉडल के जरिए भारतीय विश्वविद्यालयों में अनुसंधान एवं नवाचार की प्रकृति में बदलाव लाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। 

  • हब: पहले चरण के लिए हब संस्थानों में उच्च NIRF रैंकिंग वाले संस्थान शामिल किए जाएंगे। ये हब संस्थान अनुसंधान गतिविधियों में उभरते संस्थानों (स्पोक्स) का मार्गदर्शन करेंगे तथा उनके संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए पहुंच प्रदान करेंगे। 
  • स्पोक: स्पोक संस्थानों में केंद्रीय और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय तथा चुनिंदा NITs व IIITs शामिल होंगे। बाद के चरणों में अन्य विश्वविद्यालयों और संस्थानों को शामिल करने के लिए पात्रता शर्तों का विस्तार किया जाएगा। 

संगठनात्मक संरचना: 

  • गवर्निंग बोर्ड: प्रधान मंत्री इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगे।
  • बोर्ड का अध्यक्ष एक कार्यकारी परिषद का गठन करेगा, जिसका नेतृत्व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार करेगा। साथ ही, यह फाउंडेशन के लक्ष्यों को लागू करने का कार्य करेगा। 

 

 

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