सुर्ख़ियों में क्यों?
गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत पंजीकृत सभी गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को अपने प्रमुख पदाधिकारियों और सदस्यों में किसी भी बदलाव की सूचना देने का निर्देश दिया है।
अन्य संबंधित तथ्य
- गृह मंत्रालय का यह आदेश उन NGOs भी पर भी लागू होगा, जिनका पिछला FCRA लाइसेंस का आवेदन अभी भी लंबित प्रक्रिया में है।
- इस स्थिति में NGOs एक नया आवेदन कर सकते हैं, जो स्वचालित रूप से पिछले FCRA लाइसेंस आवेदन का स्थान ले लेगा।
- उल्लेखनीय है कि FCRA के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर, सरकार ने पिछले वर्षों में कई NGOs के पंजीकरण रद्द किए हैं। इससे NGOs की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाये जाने लगे हैं।
NGOs क्या हैं और भारत में इन्हें किस प्रकार विनियमित किया जाता है?
- NGOs एक प्रकार के गैर-लाभकारी संगठन, समूह या संस्था होते हैं। ये सरकार से अलग स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं। इनके उद्देश्य मानवीय या विकासात्मक होते हैं।
- भारत में NGOs का गठन निम्नलिखित अधिनियमों के तहत किया जाता है:
- सोसाइटी: ये सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत होते हैं।
- ट्रस्ट:
- निजी ट्रस्ट केंद्र सरकार के भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के तहत पंजीकृत होते हैं।
- सार्वजनिक ट्रस्ट संबंधित राज्य के न्यास अधिनियम के तहत पंजीकृत होते हैं।
- चैरिटेबल कंपनियां: ये कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के तहत गैर-लाभकारी कंपनियों के रूप में पंजीकृत होती हैं।
- विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले सभी गैर-सरकारी संगठनों को FCRA, 2010 के तहत गृह मंत्रालय से FCRA पंजीकरण लाइसेंस लेना अनिवार्य है।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (FCRA) के तहत गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का विनियमन
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गैर-सरकारी संगठनों की भूमिकाएं और जिम्मेदारियां
- गवर्नेंस:
- लोकतंत्र और गवर्नेंस को मजबूत करना: उदाहरण के लिए- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनावी और राजनीतिक सुधारों के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किया है।
- ADR की जनहित याचिका (PIL) के परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान अपने आपराधिक रिकार्ड, शैक्षिक योग्यता और वित्तीय संपत्ति का खुलासा करने का निर्देश दिया था।
- सरकारी प्रयासों का पूरक: उदाहरण के लिए- अक्षय पात्र फाउंडेशन भारत में कुपोषण की समस्या के समाधान के लिए संचालित पी.एम. पोषण पहल का कार्यान्वयन कर रहा है।
- लोकतंत्र और गवर्नेंस को मजबूत करना: उदाहरण के लिए- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने चुनावी और राजनीतिक सुधारों के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य किया है।
- सामाजिक उत्थान एवं सुधार:
- मानवाधिकारों की रक्षा: उदाहरण के लिए- नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित 'बचपन बचाओ आंदोलन' बच्चों को शोषण से बचाने की दिशा में कार्य कर रहा है।
- महिला सशक्तीकरण: उदाहरण के लिए- सेल्फ एम्प्लाइड वुमन एसोसिएशन (SEWA/ सेवा) अनौपचारिक क्षेत्रक में कार्यरत महिलाओं को प्रशिक्षण, वित्तीय सेवाएं और कानूनी सहायता प्रदान करता है।
- हाशिये पर मौजूद वर्गों का प्रतिनिधित्व: उदाहरण के लिए- नाज़ फाउंडेशन HIV/ AIDS से पीड़ित व्यक्तियों और LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के लिए काम करता है।
- ज्ञातव्य है कि नाज़ फाउंडेशन बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार वाद के निर्णय में ही शीर्ष न्यायालय ने भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था।
- गरीबी उन्मूलन: उदाहरण के लिए- NGO-गूंज।
- मानव संसाधन विकास:
- शिक्षा और क्षमता निर्माण: उदाहरण के लिए- NGO प्रथम भारत में वंचित बच्चों हेतु गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए काम करता है।
- स्वास्थ्य में सुधार: उदाहरण के लिए- मेडेसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (MSF) भारत में तपेदिक (TB), HIV और अन्य संक्रामक रोगों आदि के लिए कार्यक्रम चलाता है।
- अन्य:
- अनुसंधान एवं विकास: उदाहरण के लिए- ऑक्सफैम।
- विरासत का संरक्षण: उदाहरण के लिए- इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH)।
- पर्यावरण का समर्थन: उदाहरण के लिए- वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI)।
NGOs को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
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NGOs से संबंधित चुनौतियां/ मुद्दे
- कार्यात्मक चुनौतियां:
- संभावित दाता-संचालित एजेंडा स्थानीय संदर्भों के अनुरूप नहीं है:
- उदाहरण के लिए- भारत में लिंग निर्धारण तकनीकों को पेश करने में कुछ NGOs की कथित भूमिका सामने आई है।
- आर्थिक और सामरिक पहलों में संभावित हस्तक्षेप: उदाहरण के लिए- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को कुछ अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों के कारण गंभीर विरोध का सामना करना पड़ा है।
- आतंकवाद, कट्टरपंथ आदि के संदर्भ में विदेशी अंशदान के दुरुपयोग के कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएं उत्पन्न हुई हैं।
- संभावित दाता-संचालित एजेंडा स्थानीय संदर्भों के अनुरूप नहीं है:
- विनियामक और कानूनी चुनौतियां:
- विदेशों से धन प्राप्त करने के लिए FCRA के सख्त प्रावधान, खासकर छोटे NGOs की संचालन क्षमता को बाधित करते हैं।
- संभावित वित्तीय कुप्रबंधन: कई NGOs वित्तीय धोखाधड़ी, धन के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं।
- परिचालन संबंधी मुद्दे: दानदाताओं पर अत्यधिक निर्भरता; ख़राब स्वयंसेवी सहभागिता; NGO आदि की तकनीकी सीमाएं इत्यादि।
सुधार के लिए सिफारिशें
- विजय कुमार समिति (2017) की सिफारिशें:
- विनियमन के संदर्भ में लचीला दृष्टिकोण: इस समिति ने सिफारिश की है कि ऐसा फ्रेमवर्क विकसित किया जाना चाहिए, जो NGOs की परिचालन संबंधी स्वतंत्रता और उनकी निगरानी के बीच संतुलित स्थापित करने का प्रयास करे। इसे नौकरशाही को बाधाओं को कम करने वाला और सरकार के साथ सहयोगात्मक संबंध को बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।
- आधुनिक पंजीकरण प्रक्रियाएं: NGOs को आयकर अधिनियम और FCRA के तहत नियमों के पालन के लिए सरल एवं आधुनिक पंजीकरण प्रक्रियाओं की सुविधा दी जानी चाहिए।
- एक नोडल निकाय की स्थापना: NGOs और सरकारी संस्थाओं के बीच संचार एवं निगरानी के लिए एक केंद्रीय निकाय गठित करने की आवश्यकता है।
- NGOs के लिए एक व्यापक मान्यता और लेखापरीक्षा ढांचा विकसित किया जाना चाहिए।
- खोजने योग्य डेटाबेस: सभी NGOs का एक खोजने योग्य डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए, जिससे पारदर्शिता में बढ़ोतरी होगी।
- स्वयंसेवा की संस्कृति को बढ़ावा देना: यह कार्य शैक्षणिक संस्थानों के साथ भागीदारी के माध्यम से किया जाना चाहिए।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशें:
- FCRA के कार्यान्वयन का विकेंद्रीकरण किया जाना चाहिए।
- स्वैच्छिक क्षेत्रक के संचालन की सुरक्षा के लिए विधायी नियमों का संतुलित और स्पष्ट ढंग से क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।