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भारत में नगर निगम (Municipal Corporations In India)

26 Dec 2024
34 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने "नगर निगमों में राजस्व सृजन के अपने स्रोत: अवसर और चुनौतियां (Own Sources of Revenue Generation in Municipal Corporations: Opportunities and Challenges)" रिपोर्ट जारी की।

भारत में नगरपालिका संस्थाएं

भारत के शहरों में 40 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं और यह संख्या 2050 तक 80 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है। हालांकि, शहर देश के केवल 3% भू-क्षेत्र को कवर करते हैं, फिर भी वे देश के सकल घरेलू उत्पाद में 60% से अधिक का योगदान करते हैं।

  • 74वें संविधान संशोधन ने भारत में स्थानीय शासन को औपचारिक रूप दिया है तथा स्थानीय सरकारों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया है।
  • स्थानीय सरकारों के कार्य: 74वें संशोधन के जरिए संविधान की 12वीं अनुसूची में उन 18 विषयों को शामिल किया गया है, जिन्हें राज्य सरकारें नगरपालिकाओं को सौंप सकती हैं। इनमें शहरी योजना निर्माणभूमि उपयोग विनियमन, निर्माण आदि विषय शामिल हैं।
  • राजस्व एवं राजकोषीय शक्तियां:
    • अनुच्छेद 243X: इसके तहत राज्य सरकार के पास यह अधिकार है कि वह शहरी स्थानीय निकायों को कर, शुल्क व फीस लगाने की शक्ति प्रदान कर सकती है। साथ ही, राज्य सरकार कुछ राजस्व स्रोतों को ULBs को सौंप सकती है। 
    • अनुच्छेद 243Y: यह राज्य वित्त आयोगों (SFCs) को कर और अनुदानों के वितरण की समीक्षा करने व सिफारिश करने की जिम्मेदारी सौंपता है।

शहरी स्थानीय निकायों के राजस्व स्रोत

स्वयं के स्रोत
  • कर राजस्व: संपत्ति कर, जल उपयोग कर, आदि।
  • गैर-कर राजस्व: उपयोगकर्ता शुल्क, विकास शुल्क आदि।
  • अन्य प्राप्तियां: पट्टा (Lease) देने से प्राप्त किराया, अपशिष्ट की बिक्री, आदि।
सौंपे गए (साझा) राजस्व 
  • मनोरंजन कर, व्यावसायिक कर आदि। वैसे मनोरंजन कर GST में शामिल कर लिया गया है, लेकिन स्थानीय निकायों द्वारा आरोपित मनोरंजन कर को GST से बाहर रखा गया है। 
अनुदान सहायता
  • केंद्रीय और राज्य वित्त आयोगों की सिफारिशों के आधार पर हस्तांतरण; स्वच्छ भारत मिशन व अमृत जैसे कार्यक्रमों के तहत अनुदान; आदि।
उधारी
  • संबंधित राज्य केंद्र सरकार, बैंक आदि से ऋण ले सकते हैं।

 

RBI की रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • कम राजस्व संग्रह: 2023-24 में देश के नगरपालिकाओं का कुल राजस्व संग्रह देश के सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.6% था। इसकी तुलना में केंद्र सरकार का राजस्व संग्रह 9.2% और राज्य सरकारों का 14.6% था। इससे शहरी विकास के लिए फंड की कमी हो रही है।
    • नगर निगमों की आय में कर राजस्व का हिस्सा 30% है। इसके बाद अनुदान, अंशदान और सब्सिडी (24.9%), तथा शुल्क एवं उपयोगकर्ता शुल्क (20.2%) का स्थान आता है।
    • इसके अलावा, CAG की एक रिपोर्ट के अनुसार, 18 राज्यों में नगर निगम अपनी संपत्ति कर मांग का केवल 56% ही वसूल पाते हैं।
  • केंद्र और संबंधित राज्य से वित्त-पोषण पर अधिक निर्भरता: नगरपालिकाएं केंद्र व संबंधित राज्य से देरी प्राप्त होने वाले एवं अपर्याप्त फंड पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। 2022-23 में केंद्र एवं राज्य सरकारों से उन्हें मिलने वाले अनुदान में क्रमशः 24.9% तथा 20.4% की वृद्धि दर्ज की गई थी। 
  • नगरपालिका के उधार में वृद्धि: यह 2019-20 के 2,886 करोड़ रुपये से बढ़कर 2023-24 में 13,364 करोड़ हो गई है। यह कुल प्राप्तियों की 1.9% से बढ़कर 5.2% हो गई है।
  • नगरपालिका बॉण्ड: यह बॉन्ड बाजार अभी अविकसित है। इनका कुल मूल्य 4,204 करोड़ रुपये है। यह मूल्य कॉर्पोरेट बॉण्ड का 0.09% है। अधिकांश नगरपालिका बॉण्ड धारक निजी निवेशक और संस्थाएं हैं। इससे निवेशकों की भागीदारी सीमित हो जाती है।
    • इसके अतिरिक्त, ग्रीन बॉण्ड बाजार अभी भी प्रारंभिक चरण में है। साथ ही, ग्रीन बॉण्ड जारी करने की प्रक्रिया में ग्रीन ऑडिट और प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों की निगरानी के लिए अतिरिक्त लागत शामिल है।

भारत में नगर निगमों के समक्ष अन्य मुद्दे

  • वित्तीय चुनौतियां:
    • SFCs की सिफारिशों का तदर्थ कार्यान्वयन: राज्य अक्सर राज्य वित्त आयोगों (SFCs) की सिफारिशों को देरी से या अपर्याप्त रूप से कार्यान्वित करते हैं।
      • उदाहरण के लिए: तेलंगाना में SFC 2015 में गठित हुआ था, लेकिन इसके अध्यक्ष व सदस्यों का चयन 2018 में किया गया था।
    • भारतीय शहरों में कम अवशोषण क्षमता: CAG की रिपोर्ट के अनुसार, 18 राज्यों में से 11 राज्यों के शहरी स्थानीय स्वशासन (ULSG) ने उन्हें आवंटित किए गए फंड का केवल 61% ही उपयोग किया है।
  • गवर्नेंस संबंधी चुनौतियां:
    • शक्तियों का सीमित हस्तांतरण: 74वें संविधान संशोधन के बावजूद, कई राज्यों ने शहरी स्थानीय निकायों को (विशेष रूप से शहरी योजना निर्माण और भूमि उपयोग विनियमन में) पूर्ण रूप से शक्तियां हस्तांतरित नहीं की हैं।
    • राज्य चुनाव आयोग: राज्य चुनाव आयोगों को पर्याप्त रूप से सशक्त नहीं किया गया है, जिससे नगरपालिका चुनाव प्रत्येक पांच वर्षों पर समय पर आयोजित नहीं हो पाते हैं।
      • उदाहरण के लिए- बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) हेतु 2020 से अब तक कोई चुनाव नहीं हुआ है। इस तरह की घटनाओं से स्थानीय शासन बाधित होता है।
    • मानव संसाधन: नगरीय प्रशासन विभाग में बड़ी संख्या में रिक्त पद मौजूद हैं (30-40%) और कर्मचारियों में समुचित प्रशिक्षण का अभाव है। ये चीजें नगर निगमों की सेवाएं प्रदान करने की क्षमता को सीमित करती है।
      • उदाहरण के लिए- CAG रिपोर्ट के अनुसार, 18 राज्यों में 37% पद रिक्त हैं।
    • शहरी योजना निर्माण और सेवा वितरण: CAG रिपोर्ट के अनुसार, नगरपालिकाओं के व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (29%) शहरी विकास पर खर्च नहीं किया जाता है। इससे अवसंरचनाओं  में निवेश सीमित हो जाता है।

आगे की राह 

  • स्वयं के स्रोतों से राजस्व बढ़ाना:
    • संपत्ति कर: कर संग्रह के अनुपालन में सुधार और लीकेज को कम करने के लिए मूल्यांकन-आधारित संपत्ति कर फ़ार्मुलों, जैसे GIS मैपिंग और डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म को अपनाना चाहिए।
    • गैर-कर राजस्व: जल, स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए उपयोगकर्ता शुल्क समायोजित करना चाहिए, ताकि लागत की वसूली सुनिश्चित हो सके। शुल्क संग्रहण में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक अभियानों का उपयोग करना चाहिए।
  • समय पर हस्तांतरण:
    • मुद्रास्फीति और शहर के विकास को ध्यान में रखते हुए एक स्पष्ट फार्मूले के आधार पर राज्य सरकारों से प्रत्यक्ष व पूर्वानुमानित वित्त का हस्तांतरण सुनिश्चित करना चाहिए।
    • राज्य वित्त आयोग (SFC) को नियमित रूप से गठित करना चाहिए, ताकि समय पर वित्त हस्तांतरण की सिफारिश और उसका कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
  • वित्त-पोषण का विविधीकरण:
    • पूंजीगत निवेश के लिए नगरपालिका बॉण्ड और वित्त-पोषण के नवीन स्रोतों की संभावना तलाशनी चाहिए। वित्तीय बाधाओं को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर अवसंरचनात्मक परियोजनाओं हेतु संसाधनों का संयुक्त रूप से उपयोग करना चाहिए।
      • हरित अवसंरचना और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए सतत शहरी योजना निर्माण के लिए जलवायु वित्त तक पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • पारदर्शी वित्तीय प्रबंधन:
    • मानकीकृत लेखांकन प्रथाओं के लिए राष्ट्रीय नगर पालिका लेखांकन मैनुअल (NMAM, 2004) लागू करना चाहिए। 
    • राज्य सरकारों को अनुपालन को अनिवार्य बनाना चाहिए, प्रशिक्षण को समर्थन देना चाहिए, तथा अंतर-सरकारी हस्तांतरण को लेखांकन मानकों से जोड़ना चाहिए।
  • मानव संसाधन: राज्यों को नगरीय प्रशासन विभाग की रिक्तियों और प्रशिक्षण संस्थानों की कमी जैसे मुद्दों का समाधान करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए- मध्य प्रदेश ने स्टाफिंग और कौशल विकास में सुधार के लिए एक नगरपालिका कैडर बनाया है।
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