भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत का बाह्य (विदेशी) ऋण मार्च 2025 में 736.3 बिलियन डॉलर हो गया। यह पिछले वर्ष की तुलना में 67.5 अरब डॉलर अधिक है। इसमें मूल्यन प्रभाव (Valuation effect) यानी विनिमय दर में परिवर्तन को शामिल नहीं किया गया है।
- यहां मूल्यन प्रभाव से आशय भारतीय रुपये की तुलना में अमेरिकी डॉलर की मूल्यवृद्धि (अधिमूल्यन) है।
RBI रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP)-बाह्य (विदेशी) ऋण अनुपात: यह अनुपात मार्च 2024 के 18.5% से बढ़कर मार्च 2025 में 19.1% हो गया।
- दीर्घकालिक और अल्पकालिक ऋण: दीर्घकालिक ऋण आंशिक रूप से बढ़कर 601.9 बिलियन डॉलर हो गया। वहीं कुल बाह्य ऋण में अल्पकालिक ऋण की हिस्सेदारी आंशिक रूप कम होकर 18.3% हो गई।
- बाह्य ऋण के घटक: भारत के कुल बाह्य ऋण में 54.2% की हिस्सेदारी के साथ अमेरिकी डॉलर सबसे बड़ा घटक बना रहा। इसके बाद भारतीय रुपये (31.1%), जापानी येन और विशेष आहरण अधिकार (SDRs) में लिए गए ऋण का स्थान रहा।
- विदेशी ऋण लेने वाली संस्थाएं: कुल बाह्य ऋण प्राप्त करने वालों में गैर-वित्तीय कंपनियों (केंद्रीय बैंक को छोड़कर) की हिस्सेदारी सबसे अधिक यानी 35.5% रही। इसके बाद जमा स्वीकार करने वाली कंपनियों (27.5%) और सरकार (22.9%) का स्थान है।
- ऋण साधन (Debt Instrument): भारत के कुल बाह्य ऋण में उधारी (34%) सबसे बड़ा घटक बना रहा। इसके बाद मुद्रा और जमा (अनिवासियों द्वारा) की हिस्सेदारी है।
- ऋण भुगतान: मूलधन और ब्याज भुगतान में 0.1% की आंशिक गिरावट दर्ज की गई।
बाह्य (विदेशी) ऋण क्या है?
- बाह्य ऋण वास्तव में किसी अन्य देश से अलग-अलग स्रोतों से लिया गया ऋण है।
- विदेशी ऋण के स्रोत: विदेशी वाणिज्यिक बैंक, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान (जैसे-IMF, विश्व बैंक) और अन्य देशों की सरकारें।
