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भौगोलिक संकेत टैग {Geographical Indication (GI) tag}

05 Mar 2025
23 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने नई दिल्ली में आयोजित जी.आई. समागम में 2030 तक 10,000 भौगोलिक संकेतक (GI) टैग प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

भौगोलिक संकेतक (GI) टैग के बारे में

  • परिभाषा: भौगोलिक संकेतक (GI) एक ऐसा चिन्ह है, जिसका उपयोग उन उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है और इस भौगोलिक उत्पत्ति के कारण उनमें कुछ खास गुण होते हैं।
  • अनुप्रयोग: GI टैग आमतौर पर कृषि, प्राकृतिक या विनिर्मित वस्तुओं के लिए दिया जाता है। इसमें हस्तशिल्प, औद्योगिक वस्तुएं और खाद्य पदार्थ भी शामिल हैं।
  • संरक्षण: GI टैग उत्पादकों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। एक बार यह टैग मिल जाने के बाद कोई दूसरा व्यक्ति उस उत्पाद के नाम का उपयोग नहीं कर सकता।

भारत में GI टैग की वर्तमान स्थिति: 

  • भारत में पहला GI टैग 2004-05 में दार्जिलिंग चाय को दिया गया था।
  • जुलाई 2024 तक कुल 605 GI टैग जारी किए गए हैं। 
  • उत्तर प्रदेश GI-टैग प्राप्त उत्पादों की संख्या में अग्रणी राज्य है, इसके बाद तमिलनाडु का स्थान है।

2024 में सूचीबद्ध महत्वपूर्ण GI टैग प्राप्त उत्पाद हैं

भारत के मानचित्र पर अंकित किए जाने वाले उत्पाद

राज्य/ केंद्रशासित प्रदेशउत्पाद
उत्तर प्रदेश
  • पिलखुवा हैंड ब्लॉक प्रिंट टेक्सटाइल
  • बनारस धातु ढलाई शिल्प
  • बरेली बेंत और बांस शिल्प
  • थारू कढ़ाई
  • बरेली ज़री ज़रदोज़ी
  • बनारस की तिरंगी बर्फी

 

असम
  • बोडो अरोनाई
  • बोडो नाफाम- किण्वित मछली
  • बोडो ओंडला
  • बोडो ग्वाखा - ग्वाखवी, 
  • बोडो जौ ग्वरन, 
  • बोडो जौ गिशी, 
  • बोड़ो मैबरा जौ बिड़वी
  • बोडो नारज़ी
अंडमान व नोकोबार द्वीप समूह
  • निकोबारी डोंगी - होदी शिल्प
  • निकोबारी मत (चतराई/ हिलेउओई)
  • अंडमान करेन मूसली चावल
  • निकोबारी तवी-ए-नगाइच (वर्जिन नारियल तेल)
  • नगुआट-कुक'-'खावथा' 
  • पडौक लकड़ी शिल्प

 

गुजरातकच्छ अजरख

 

भारत में भौगोलिक संकेत (GI) टैग की चुनौतियां

  • कम पंजीकरण दर: वर्ल्ड IP इंडिकेटर्स 2024 के मुताबिक भारत GI पंजीकरण के मामले में चीन (9,785 GI), जर्मनी (7,586) और हंगरी (7,290) जैसे देशों से पीछे है।
  • क्षेत्रीय असमानता: कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में GI पंजीकरण की दर अधिक है। झारखंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों में यह संख्या काफी कम है।
  • GI का उल्लंघन: उदाहरण के लिए- बनारसी सिल्क की नकल सूरत में पावरलूम द्वारा सस्ते विकल्प के रूप में बनाई जाती है।
  • जागरूकता की कमी: अधिकतर ग्रामीण उत्पादकों को GI के लाभों की जानकारी नहीं है। उदाहरण के लिए- कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला कग्गा चावल, जो लवण सहिष्णु किस्म है, अब तक पर्याप्त पहचान नहीं पा सका।
  • भौगोलिक विवाद: एक ही उत्पाद के लिए कई राज्य GI का दावा करते हैं। उदाहरण के लिए- बासमती चावल को लेकर विभिन्न क्षेत्रों में स्वामित्व का विवाद है।
  • पंजीकरण के बाद की समस्याएं: अक्सर उत्पादक की परिभाषा और अधिकृत उपयोगकर्ता का दर्जा पाने की प्रक्रिया को लेकर चिंताएं बनी रहती हैं। उदाहरण के लिए-  GI टैग प्राप्त उत्पादों वाले किसान अक्सर GI प्रक्रियाओं की जानकारी से वंचित रहते हैं।

भारत में GI टैग को मजबूत करने के लिए की गई पहलें

  • GI लोगो और टैगलाइन: "अतुल्य भारत के अमूल्य खजाने" टैगलाइन भारत के भौगोलिक संकेतक (GI) की भावना को दर्शाती है।
  • GI उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा: APEDA द्वारा GI उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित किया जाता है। उदाहरण के लिए- नागा मिर्च (नागालैंड) और काला चावल (मणिपुर) का निर्यात यूनाइटेड किंगडम तथा असम नींबू का निर्यात इटली को किया जाता है।
  • एक जिला एक उत्पाद (ODOP): इसके तहत प्रत्येक जिले के एक प्रमुख उत्पाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन उत्पादों को "जिला निर्यात हब" (DEH) और GI-टैग प्राप्त उत्पादों के रूप में पहचाना जाता है।
  • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC): GI-टैग प्राप्त उत्पादों को भारत और वैश्विक खरीदारों से जोड़ता है।

भारत में GI टैग प्रणाली को मजबूत करने के लिए आगे की राह

  • जागरूकता बढ़ाना: सरकारी नीतियों में 'GI प्रमाणित वस्तुओं' पर विशेष रूप से बल देना चाहिए ताकि निर्माता GI के लाभों को पहचान सकें।
  • पंजीकरण के बाद की रूपरेखा को सशक्त बनाना: उत्पादकों की स्पष्ट परिभाषा और अधिकृत उपयोगकर्ता की स्थिति बनाए रखने के लिए स्पष्ट मानदंड स्थापित किए जाने चाहिए।
  • गरीब उत्पादकों के लिए सहायता: छोटे उत्पादकों और कारीगरों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाने के लिए निर्यात सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिए।
  • राज्यों के बीच विवादों का समाधान: राज्यों को GI दावों पर आपस में सहयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए- कोल्हापुरी चप्पल को कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों के लिए GI टैग मिला, जिससे इसकी मांग में बढ़ोतरी हुई।
  • संरक्षण-केंद्रित दृष्टिकोण: कन्याकुमारी मट्टी केला और कश्मीर केसर जैसे GI उत्पादों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अनुकूलन रणनीतियां आवश्यक हैं।

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