भारत ने वैश्विक विप्रेषण का सबसे अधिक हिस्सा प्राप्त किया: विश्व बैंक (INDIA SECURES 14.3% OF GLOBAL REMITTANCES: WORLD BANK) | Current Affairs | Vision IAS
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संक्षिप्त समाचार

05 Mar 2025
100 min

भारत ने 2024 में कुल वैश्विक विप्रेषण (Remittance) का 14.3% हिस्सा प्राप्त किया। गौरतलब है कि विदेश में काम करने वाले व्यक्तियों द्वारा अपने देश में अपने परिवारों को भेजी जाने वाली धनराशि को ‘विप्रेषण’ कहा जाता है।

वैश्विक स्तर पर विप्रेषण संबंधी ट्रेंड्स 

  • 2024 में शीर्ष पांच प्राप्तकर्ता: भारत 129 बिलियन डॉलर के साथ पहले स्थान पर है। इसके बाद मेक्सिको, चीन, फिलीपींस, और पाकिस्तान का स्थान है। विप्रेषण में यह वृद्धि OECD देशों में रोजगार संबंधी बाजारों की पुनर्बहाली के कारण हुई है। ज्ञातव्य है कि 2023 में भारत को 125 बिलियन डॉलर का विप्रेषण प्राप्त हुआ था। 
  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विप्रेषण: 2024 में इन देशों में विप्रेषण का स्तर 5.8% की वृद्धि दर के साथ 685 बिलियन डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है।
  • चीन के विप्रेषण में कमी: 2024 में चीन ने वैश्विक विप्रेषण का केवल 5.3% हिस्सा ही प्राप्त किया है। यह पिछले दो दशकों में सबसे कम है। यह चीन की आर्थिक समृद्धि और वृद्ध होती जनसंख्या के कारण कम-कौशल वाले उत्प्रवास (Emigration) में गिरावट के चलते हुआ है।

भारत में उच्च विप्रेषण में योगदान देने वाले कारक

  • प्रवास का स्तर: भारत दुनिया में सबसे बड़ी प्रवासी आबादी (Diaspora) वाले देशों में से एक है। संयुक्त राष्ट्र विश्व प्रवास रिपोर्ट 2024 के आंकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2023 तक 18 मिलियन से अधिक भारतीय नागरिक विदेशों में निवास कर रहे थे।
  • नये गंतव्य देशों में प्रवास: ज्यादातर भारतीय प्रवासी अब तेजी से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया जैसे उच्च आय वाले देशों में प्रवास कर रहे हैं।
  • कुशल और अकुशल श्रमिक: भारतीय प्रवासियों में अत्यधिक कुशल पेशेवरों (IT, स्वास्थ्य देखभाल, आदि) से लेकर अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिक शामिल हैं।

उच्च विप्रेषण का महत्त्व

  • प्राप्तकर्ता परिवारों के लिए महत्त्व: इसका उपयोग भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसे आवश्यक खर्चों के लिए किया जाता है। इससे जीवन स्तर में प्रत्यक्ष रूप से सुधार होता है।
  • व्यापक आर्थिक महत्त्व: 
    • यह विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत है। 
    • इससे विदेशी सहायता पर निर्भरता में कमी आती है। 
    • इससे चालू खाता और राजकोषीय घाटे के वित्त-पोषण में मदद मिलती है, आदि।

विश्व बैंक की हालिया ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोस्पेक्टस रिपोर्ट में 21वीं सदी के पहले 25 वर्षों के दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था में हुए उतार-चढ़ाव का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है।

ग्लोबल इकोनॉमिक प्रोस्पेक्टस रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर एक नज़र

  • EMDEs के प्रभाव में वृद्धि: वर्ष 2000 से 2025 के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था में उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDEs) की हिस्सेदारी में काफी वृद्धि हुई है। इसमें EM3 देश (चीन, भारत और ब्राजील) अग्रणी एवं नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा रहे हैं।
  • आर्थिक संवृद्धि के मामले में भारत अग्रणी: भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। वित्त वर्ष 2026-27 तक भारत की अर्थव्यवस्था में 6.7% की वार्षिक वृद्धि होने का अनुमान है, जो 2022 में हासिल 7% की वृद्धि दर से थोड़ा कम है।

भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाने वाले संकेतक 

  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रकों का मजबूत प्रदर्शन:
    • सेवा क्षेत्रक: इस क्षेत्रक में निरंतर विस्तार हो रहा है। वर्ष 2000 के बाद से सेवा निर्यात में लगातार वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार एकीकरण में भी वृद्धि हुई है।
    • विनिर्माण: लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाने और कर संबंधी सुधारों हेतु सरकार की विभिन्न पहलों से विनिर्माण को बढ़ावा मिला है।
  • मजबूत आर्थिक आधार:
    • राजकोषीय स्थिति: भारत के राजकोषीय घाटे में कमी और कर राजस्व में वृद्धि हुई है। 
    • निवेश परिदृश्य: कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत होने और वित्तीय बाजारों में सुधार के कारण निजी निवेश में वृद्धि हुई है, जिससे कुल मिलाकर निवेश में स्थिरता आई है।
    • खपत की स्थिति: श्रम बाजार में मजबूती, ऋण में विस्तार और मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण निजी उपभोग में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।
      • हालाँकि, सरकारी खर्च में वृद्धि सीमित रह सकती है।
  • इस रिपोर्ट में निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियों की पहचान की गई है:
    • बढ़ता संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक तनाव;
    • कर्ज का बढ़ता बोझ और जलवायु परिवर्तन से संबंधित हानि। 
  • आर्थिक सफलता के लिए ऐसी नीतियों की आवश्यकता है, जो निवेश, उत्पादकता और मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरता को बढ़ावा दें। साथ ही, बाहरी दबावों को भी प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने की आवश्यकता है।

हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने T-बिल जारी करने के लिए कैलेंडर अधिसूचित किया। ट्रेजरी बिल यानी T-बिल एक प्रकार की सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) है। 

भारत में सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) बाजार 

  • सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) के बारे में: ये केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाती हैं। ये प्रतिभूतियां वास्तव में सरकार पर उधार होती हैं, क्योंकि सरकार को इन प्रतिभूतियों की मैच्योरिटी पर इनके धारकों को मूलधन वापस करना पड़ता है। इन प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री की जा सकती है। 
  • जारीकर्ता: RBI इन्हें अपने इलेक्ट्रॉनिक ई-कुबेर प्लेटफ़ॉर्म पर जारी करके इनकी नीलामी करता है। 
    • RBI की पब्लिक डेब्ट रजिस्ट्री (PDO) इन प्रतिभूतियों की रजिस्ट्री या डिपॉजिटरी के रूप में कार्य करती है। 
  • नीलामी में भाग लेने वाले प्रमुख प्रतिभागी: वाणिज्यिक बैंक, प्राथमिक डीलर, बीमा कंपनियां, सहकारी बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, म्यूचुअल फंड, रिटेल निवेशक, आदि। 
    • रिटेल निवेशकों को गैर-प्रतिस्पर्धी बोली सेक्शन के तहत आवेदन की अनुमति दी गई है।  

सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) के प्रकार

  • अल्पावधिक प्रतिभूतियां: ये एक वर्ष से कम समय में मैच्योर हो जाती हैं। T-बिल इसका उदाहरण है।
    • ट्रेजरी बिल (T-बिल) के बारे में
      • यह भारत सरकार द्वारा जारी की जाने वाली मनी मार्केट और अल्पावधिक डेब्ट इंस्ट्रूमेंट या ऋण प्रतिभूति है। 
      • ये जीरो कूपन बॉण्ड या प्रतिभूतियां होती हैं। इन पर कोई ब्याज देय नहीं होता है।
      • जीरो कूपन बॉण्ड को अंकित मूल्य पर डिस्काउंट देते हुए जारी किया जाता है। मैच्योरिटी पर धारक को अंकित मूल्य का भुगतान किया जाता है। इस तरह डिस्काउंट ही वास्तव में लाभ के रूप में प्राप्त होता है।
      • ये प्रतिभूतियां तीन अवधियों में मैच्योर होने वाली होती हैं; 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन।
    • नकद प्रबंधन बिल (CMBs)
      • ये अल्पावधि वाली प्रतिभूतियां होती हैं। ये 91 दिनों से कम अवधि में मैच्योर हो जाती हैं। इसे भारत सरकार ने 2010 में शुरू किया था। ये सरकार की नकदी संबंधी जरूरतों में तात्कालिक कमी को पूरा करने के लिए जारी की जाती हैं। 
  • दीर्घावधिक प्रतिभूतियां: ये एक वर्ष या इससे अधिक वर्षों में मैच्योर होती हैं। इनके उदाहरण हैं- सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां।
    • दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियां: इन पर ब्याज दर या तो निश्चित होती है या बदलती रहती (फ्लोटिंग) हैं। ब्याज का भुगतान प्रत्येक छह माह पर किया जाता है। ये प्रतिभूतियां 5 से 40 वर्ष में मैच्योर होती हैं।
    • राज्य विकास ऋण (SDL): ये राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली दिनांकित प्रतिभूतियां होती हैं। ब्याज का भुगतान प्रत्येक छह माह पर किया जाता है।
  • नोट: भारत में केंद्र सरकार T-बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां, दोनों जारी करती है। वहीं राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियां जारी करती हैं, जिन्हें SDL कहा जाता है।
  • इस सूची में LIC हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, PNB हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड, श्रीराम फाइनेंस लिमिटेड आदि शामिल हैं। यह सूचीकरण NBFCs के लिए एक विनियामक फ्रेमवर्क यानी स्केल बेस्ड रेगुलेशन (SBR) पर आधारित है।
    • एक बार जब किसी NBFC को NBFC-UL के रूप में वर्गीकृत कर लिया जाता है, तो उसे कम-से-कम 5 साल की अवधि के लिए कठोर विनियामक आवश्यकता का पालन करना होता है। 
  • इस फ्रेमवर्क को संक्रामक या प्रणालीगत जोखिमों को कम करने, विनियमन में आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू करने एवं गुणवत्ता को मजबूत करने तथा NBFC के जोखिम प्रबंधन में सुधार करने के लिए पेश किया गया है।
  • संक्रामक जोखिम का अर्थ है वित्तीय प्रणाली में एक संस्थान, उद्योग, या क्षेत्र में उत्पन्न हुए संकट या अस्थिरता का अन्य संस्थानों, उद्योगों, या क्षेत्रों में फैल जाना। 

वित्त मंत्रालय ने एक नया ई-नीलामी पोर्टल ‘बैंकनेट’ लांच किया।

बैंकनेट के बारे में

  • यह सभी सार्वजनिक क्षेत्रक के बैंकों से ई-नीलामी परिसंपत्तियों के बारे में जानकारी को एकत्रित करता है। साथ ही, यह खरीदारों और निवेशकों को परिसंपत्तियों की विस्तृत श्रृंखला को सर्च करने के लिए एक वन-स्टॉप गंतव्य भी प्रदान करता है।
  • सूचीबद्ध परिसंपत्तियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • आवासीय परिसंपत्तियां: जैसे फ्लैट, मकान और भूखंड;
    • वाणिज्यिक परिसंपत्तियां;
    • औद्योगिक भूमि व भवन, दुकानें आदि।
  • इस प्लेटफॉर्म से संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के मूल्य को पुनः स्थापित करने और निवेशकों का विश्वास बढ़ाने की उम्मीद है।

RBI ने प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (PPI) धारकों को थर्ड-पार्टी मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के जरिये भुगतान करने और प्राप्त करने की अनुमति दी है।

प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (PPIs) के बारे में

  • PPIs वास्तव में अग्रिम रूप से जमा पैसे या वैल्यू के बदले में वस्तुओं और सेवाओं की खरीद, वित्तीय सेवाओं के संचालन, पैसा भेजने जैसी सुविधाएं प्रदान करते हैं। 
    • इनके उदाहरण हैं- मोबाइल वॉलेट, डिजिटल वॉलेट, गिफ्ट कार्ड, आदि। 
  • PPIs बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जारी किए जा सकते हैं।
  • इनके दो प्रकार हैं: 
    • लघु PPIs: ये PPI धारक से बहुत कम विवरण प्राप्त करने के बाद जारी किए जाते हैं; तथा
    • अपने ग्राहक को जानो (KYC) संबंधी सभी आवश्यकताएं पूरी होने पर जारी किए जाने वाले PPIs.

यूएन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (पूर्ववर्ती UNCTAD) की एक रिपोर्ट द्वारा खाद्य असुरक्षा को कम करने और अकाल को रोकने में व्यापार की भूमिका की जांच की गई

  • रिपोर्ट में खाद्य असुरक्षा के विभिन्न कारणों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, इसमें बताया गया है कि किस प्रकार व्यापार इन चुनौतियों से निपटने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

व्यापार की भूमिका

  • संधारणीय आपूर्ति से खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है: उदाहरण के लिए अफ्रीका की 30% अनाज की जरूरतें आयात के जरिए पूरी होती हैं।
  • कीमतों और बाजारों को स्थिर करना: उदाहरण के लिए- रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान ब्लैक सी पहल ने खाद्य एवं उर्वरक निर्यात को सुविधाजनक बनाया था। यह पहल संयुक्त राष्ट्र व तुर्किये की मध्यस्थता में संपन्न हुई थी। 

चुनौतियां

  • उच्च लागत: उदाहरण के लिए, गैर-टैरिफ उपाय (जैसे- सैनिटरी मानक) खाद्य आयात लागत को 20% तक बढ़ा देते हैं।
  • आयात पर अत्यधिक निर्भरता: इससे देशों को वैश्विक मूल्य वृद्धि और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधानों के दौरान मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
  • परिवहन की बढ़ती लागत: इसका विकासशील एवं अल्पविकसित देशों पर प्रतिकूल रूप से प्रभाव पड़ता है।

सिफारिशें

  • WTO जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर "गंभीर खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए अल्पकालिक निर्यात सुविधा तंत्र" पर वार्ता करनी चाहिए।  
  • व्यापार बाधाओं को कम करना चाहिए और खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे देशों की निर्यात क्षमता को बढ़ावा देना चाहिए। 
  • विशेष रूप से कम आय वाले देशों के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं को छोटा करने और वैश्विक व्यवधानों के प्रति उनकी सुभेद्यताओं को कम करने के लिए बंदरगाहों, परिवहन नेटवर्क तथा भंडारण सुविधाओं जैसी व्यापार संबंधी अवसंरचना में निवेश करना चाहिए। 
  • विकासशील देशों में जलवायु-स्मार्ट और संधारणीय खेती का समर्थन करना चाहिए।

फैक्टशीट

  • 2023 में 280 मिलियन से अधिक लोगों को अत्यधिक भुखमरी का सामना करना पड़ा था। वहीं लगभग 733 मिलियन लोगों को चिरकालिक भुखमरी (Chronic hunger) का सामना करना पड़ा था।
  • तत्काल कार्रवाई के बिना, 2030 तक 582 मिलियन लोग चिरकालिक भुखमरी से पीड़ित होंगे।

वैश्विक भुखमरी के लिए उत्तरदायी कारक

  • सशस्त्र संघर्ष: वर्ष 2022 में 20 देशों में लगभग 5 मिलियन लोग सशस्त्र संघर्ष के कारण प्रभावित हुए थे। 
  • जलवायु परिवर्तन: इसके कारण 1961 से अब तक कृषि उत्पादकता में 21% की कमी आई है।
  • शहरीकरण: यह ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच विभाजन को खत्म कर रहा है। इससे कृषि खाद्य प्रणालियां प्रभावित हो रही हैं।

यह संशोधित नीति उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने घोषित की है। इस नीति का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा का विस्तार करना और इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना है।

  • राज्य सरकारों, कॉर्पोरेशंस और सामुदायिक रसोई को चावल की बिक्री के लिए आरक्षित मूल्य 2,250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। इसके लिए ई-नीलामी की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इस नीति में इथेनॉल डिस्टिलरी को चावल की बिक्री के लिए आरक्षित मूल्य 2,250 प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह पहले की बिक्री मूल्य की तुलना में 550 रुपये कम है। इस कदम का उद्देश्य इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देना है। 

खुला बाजार बिक्री योजना (घरेलू) क्या है?

  • इस योजना के तहत, भारतीय खाद्य निगम (FCI) केंद्रीय पूल से अतिरिक्त अनाज (गेहूं और चावल) को पहले से तय कीमतों पर ई-नीलामी के माध्यम से खुले बाजार में बेचता है।
  • योजना का उद्देश्य: इस योजना का उद्देश्य अनाज की बाजार कीमतों को नियंत्रित करके मुद्रास्फीति में वृद्धि को रोकना है।
  • पात्रता: 
    • इस योजना में गेहूं उत्पादों के प्रोसेसर/ आटा चक्की/ फ्लोर मिलर भाग ले सकते हैं। 
    • योजना के तहत आमतौर पर, राज्य सरकारों को भी नीलामी में भाग लिए बिना खाद्यान्न की खरीद की अनुमति दी जाती है। 
    • हालांकि, व्यापारियों/ थोक खरीदारों को ई-नीलामी के माध्यम से अनाज की खरीद की अनुमति नहीं है। 

IIT- मद्रास ने प्रोजेक्ट विस्तार (VISTAAR) के लिए केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के साथ भागीदारी की है। 

  • यहां VISTAAR से आशय है: वर्चुअली इंटीग्रेटेड सिस्टम टू एक्सेस एग्रीकल्चरल रिसोर्सेज। 

प्रोजेक्ट विस्तार के बारे में 

  • यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सभी नेटवर्कों का एक नेटवर्क है। इस पर प्रत्येक राज्य अपना स्वयं का कृषि-सलाहकार नेटवर्क बना सकता है।
  • यह महत्वपूर्ण कृषि संसाधनों को बिना बाधा के प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करने वाला एक व्यापक नेटवर्क है। यह अलग-अलग डेटाबेस को जोड़ता है। 
  • उद्देश्य: यह कृषि संबंधी बेहतर निर्णय लेने और संसाधन के बेहतर उपयोग को बढ़ावा देगा। 
  • महत्त्व:
    • यह नेटवर्क कृषि क्षेत्रक के अधिक हितधारकों तक फसल उत्पादन, बिक्री, मूल्य संवर्धन और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन पर उत्कृष्ट सलाहकार सेवाएं पहुंचाएगा।
    • यह नेटवर्क किसानों को उनके लिए आवश्यक सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करेगा।

लीड्स रिपोर्ट 2024, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी की गई है और यह रिपोर्ट लीड्स सर्वेक्षण श्रृंखला का छठा संस्करण है।

लॉजिस्टिक्स ईज़ एक्रॉस डिफरेंट स्टेट्स (लीड्स/ LEADS) के बारे में

  • उद्देश्य: राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों के स्तर पर लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन में सुधार के बारे में जानकारी प्रदान करना।
    • लीड्स को विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI) की तर्ज पर 2018 में विकसित किया गया था।
      • विश्व बैंक का LPI पूरी तरह से धारणा-आधारित सर्वेक्षणों पर निर्भर है। इसके विपरीत, लीड्स में धारणा के साथ-साथ वस्तुनिष्ठ माप (Objectivity) भी शामिल है।
  • मापदंड: इसके तहत चार मुख्य आधारों पर लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है (इन्फोग्राफिक देखें)।
  • राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों की श्रेणियां: इन्हें निम्नलिखित चार समूहों में वर्गीकृत किया गया है-
    • तटीय, स्थल-रुद्ध, पूर्वोत्तर और केंद्र शासित प्रदेश।
      • इसके अलावा प्रदर्शन के आधार पर इन्हें अचीवर्स, फास्ट मूवर्स और एस्पायरर्स का टैग प्रदान किया जाता है।
  • 2024 में राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों का प्रदर्शन-
    • अचीवर्स: गुजरात, हरियाणा, असम, चंडीगढ़, आदि। 
    • फास्ट मूवर्स: आंध्र प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश आदि।
    • एस्पायरर्स: केरल, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, छत्तीसगढ़, आदि।

लीड्स फ्रेमवर्क

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने लॉजिस्टिक्स क्षेत्रक को लीड्स फ्रेमवर्क यानी लोंगेविटी, दक्षता एवं प्रभावशीलता, एक्सेसिबिलिटी व जवाबदेही तथा प्रक्रियाओं के डिजिटलीकरण को अपनाने का आग्रह किया है, ताकि लॉजिस्टिक्स क्षेत्रक को नया रूप दिया जा सके।

  • साथ ही, मंत्रालय ने निम्नलिखित उपायों का भी सुझाव दिया है:
  • हरित लॉजिस्टिक्स और संधारणीय परिवहन पहल को बढ़ावा देना।
  • मल्टी-मॉडल लॉजिस्टिक्स हब को बढ़वा देने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना।
  • लास्ट माइल कनेक्टिविटी के लिए क्षेत्रीय और शहर स्तर पर लॉजिस्टिक्स योजनाएं विकसित करना।
  • लैंगिक समावेशिता को बढ़ावा देना।

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्रभाग ने एंटिटी लॉकर विकसित किया है।

एंटिटी लॉकर के बारे में

  • यह सुरक्षित और क्लाउड-आधारित समाधान है। यह बड़े संगठनों, निगमों, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों आदि के लिए डाक्यूमेंट्स को स्टोर, साझा एवं सत्यापन करना आसान बनाता है।
    • यह भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का एक महत्वपूर्ण घटक है।
  • एंटिटी लॉकर ऑफर:
    • सरकारी डेटाबेस के साथ एकीकरण के माध्यम से डाक्यूमेंट्स को रियल टाइम आधार पर प्राप्त और सत्यापित किया जा सकता है।
    • गोपनीय जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए डॉक्यूमेंट के धारक की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य  किया गया है।
    • डॉक्यूमेंट प्राप्त करने के लिए आधार नंबर से सत्यापन किया जाएगा, ताकि भविष्य में गड़बड़ी होने पर जवाबदेही तय की जा सके।
    • इसमें 10GB की एन्क्रिप्टेड क्लाउड स्टोरेज सुविधा उपलब्ध होगी। साथ ही डाक्यूमेंट्स को सत्यापित करने के लिए कानूनी रूप से वैध डिजिटल सिग्नेचर की आवश्यकता होगी।  

प्रधान मंत्री ने जम्मू-कश्मीर में गांदरबल के सोनमर्ग क्षेत्र में Z-मोड़ सुरंग का उद्घाटन किया।

Z-मोड़ सुरंग के बारे में

  • इस सुरंग के निर्माण की शुरुआत 2015 में BRO (सीमा सड़क संगठन) द्वारा की गई थी। बाद में, इसके निर्माण की जिम्मेदारी राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड ने ले ली।
    • APCO इंफ्राटेक फर्म ने इस परियोजना को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई।
  • यह सुरंग 8,650 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह दो-लेन वाली सड़क सुरंग है। इसमें आपात स्थिति के लिए 7.5 मीटर चौड़ा समानांतर बचाव मार्ग (Escape passage) भी बनाया गया है।
  • सोनमर्ग सुरंग परियोजना कुल 12 किलोमीटर की है। इसमें 6.4 किमी लंबी मुख्य सुरंग (Z-मोड़), एक निकास सुरंग और एप्रोच मार्ग शामिल हैं।

महत्व

  • यह श्रीनगर और सोनमर्ग के बीच सभी मौसमों के लिए कनेक्टिविटी प्रदान करती है। इससे श्रीनगर से आगे लेह तक सभी मौसमों में यात्रा की जा सकेगी।  
  • यह लद्दाख क्षेत्र तक सुरक्षित और सुगम यात्रा सुनिश्चित करेगी।
  • इससे शीतकालीन पर्यटन और एडवेंचर स्पोर्ट्स के जरिए सोनमर्ग में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, इससे स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के साधन भी बढ़ेंगे

बनिहाल बाईपास का निर्माण पूरा हो चुका है। 

बनिहाल दर्रे के बारे में

  • यह दर्रा जम्मू और कश्मीर में NH-44 के 2.35 किमी लम्बे सड़क खंड का हिस्सा है।
    • NH-44 भारत का सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग है। इसे पहले NH-7 के नाम से भी जाना जाता था।
    • यह राजमार्ग 3,745 किलोमीटर लंबा है और जम्मू-कश्मीर के उत्तरी छोर पर स्थित श्रीनगर को भारत के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी से जोड़ता है।
  • यह बाईपास सुरक्षा बलों के लिए तेज और सुगम आवागमन को सुनिश्चित करेगा। यह खरपोरा, बनिहाल और नवयुग सुरंग के बीच यात्रा का समय घटाकर मात्र 7 मिनट कर देगा। 

 

भारतीय रेलवे ने भारत के पहले केबल-स्टेड रेल पुल अंजी खड्ड पुल के पूरा होने के साथ ही एक महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग उपलब्धि हासिल की है।

अंजी खड्ड पुल: मुख्य विवरण

  • स्थान: जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले में स्थित उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक (USBRL) परियोजना का हिस्सा है।
  • आयाम:
    • लंबाई: 725.5 मीटर। 
    • ऊंचाई: यह अंजी नदी (चेनाब की एक सहायक नदी) से 331 मीटर ऊपर है।
  • महत्त्व:
    • कटरा और कश्मीर घाटी के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा।
    • इससे जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को बढ़ावा मिलने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।

 

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