तापीय विद्युत संयंत्र और सल्फर डाइऑक्साइड (THERMAL POWER PLANTS AND SULPHUR DIOXIDE) | Current Affairs | Vision IAS
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तापीय विद्युत संयंत्र और सल्फर डाइऑक्साइड (THERMAL POWER PLANTS AND SULPHUR DIOXIDE)

05 Mar 2025
18 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने तापीय विद्युत संयंत्रों (TPPs) को सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन मानदंडों का पालन सुनिश्चित करने के लिए चौथी बार समय-सीमा को बढ़ाया है।

अन्य संबंधित तथ्य

  • 2022 में जारी अधिसूचना के तहत तय समय-सीमा का विस्तार: मंत्रालय ने TPPs में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम स्थापित करने की समय-सीमा बढ़ा दी है।
    • 2022 की अधिसूचना के अनुसार, भविष्य में बंद नहीं होने वाले TPPs के लिए SO₂ मानकों के अनुपालन की समय-सीमा अलग अलग श्रेणियों के लिए सितंबर, 2022 में घोषित की गई थी:
      • श्रेणी A: 31 दिसंबर, 2024
      • श्रेणी B: 31 दिसंबर, 2025
      • श्रेणी C: 31 दिसंबर, 2026
  • नई अनुपालन समय सीमा: 
    • TPPs में फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) सिस्टम स्थापित करने की नई समय-सीमा-
      • श्रेणी A: अब 31 दिसंबर, 2027
      • श्रेणी B: अब 31 दिसंबर, 2028
      • श्रेणी C: अब 31 दिसंबर, 2029
        • FGD प्रणाली: यह बॉयलरों, भट्टियों और अन्य स्रोतों द्वारा उत्पन्न फ्लू गैस से सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) को हटाने का कार्य करती है।
        • श्रेणी A: इसमें वे प्लांट शामिल हैं, जो NCR के 10 कि.मी. के दायरे के भीतर स्थित हैं या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में स्थित हैं।
        • श्रेणी B: इसमें वे प्लांट शामिल हैं, जो गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों या ऐसे शहरों में स्थित हैं जो निर्धारित प्रदूषण मानकों का पालन करने में विफल रहे हैं।
        • श्रेणी C: इसमें अन्य सभी प्लांट्स शामिल हैं।
  • पृष्ठभूमि
  • 2015: MoEF&CC ने पहली बार भारत में SO₂, NOₓ और पारे (Mercury) को नियंत्रित करने के लिए उत्सर्जन मानदंड लागू किए। यह स्वीकार करते हुए कि कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्र (TPP) प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। 
  • 2017: विद्युत मंत्रालय ने इसके लिए सात साल की समय सीमा वृद्धि की मांग की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 5 साल की अतिरिक्त मोहलत दी, जिससे नई समय सीमा 2022 तक बढ़ा दी गई।

सल्फर डाइऑक्साइड के स्रोत

  • प्राकृतिक स्रोत: ज्वालामुखी (67%)।
  • मानवजनित स्रोत:
    • जीवाश्म ईंधन (कोयला, भारी ईंधन तेल) का दहन (थर्मल पावर प्लांट, कार्यालय, फैक्ट्रियां);
    • कागज उद्योग;
    • जीवाश्म ईंधनों का निष्कर्षण और वितरण;
    • धातु को गलाना (सल्फाइड अयस्क से कॉपर, लेड, जिंक उत्पादन);
    • पेट्रोलियम रिफाइनरी;
    • डीजल, पेट्रोल और प्राकृतिक गैस चालित वाहनों में दहन प्रक्रिया

सल्फर डाइऑक्साइड के नियंत्रण के लिए सरकारी नियम

  • वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981: यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCBs) को SO₂ उत्सर्जन की निगरानी और नियंत्रण का अधिकार देता है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986: सरकार बिजली संयंत्रों, रिफाइनरियों और सीमेंट उद्योगों के लिए विशिष्ट SO₂ उत्सर्जन सीमाएं तय कर सकती है।
  • राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS): MoEF&CC ने SO₂ सहित विभिन्न प्रदूषकों की सांद्रता को नियंत्रित करने के लिए मानक स्थापित किए हैं।
  • BS-VI ईंधन मानक: वाहनों के लिए सख्त BS-VI उत्सर्जन मानक लागू किए गए हैं, जो ईंधनों में सल्फर की मात्रा को भी नियंत्रित करते हैं।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), 2019: यह MoEF&CC द्वारा वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए शुरू किया गया है।
  • समीर (SAMEER) ऐप और सोशल मीडिया अकाउन्ट्स (Facebook, Twitter): ये CPCB द्वारा शुरू किए गए हैं। ये वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कार्यान्वयन एजेंसियों के प्रदर्शन की निगरानी में बहुत प्रभावी रहे हैं।

आगे की राह

  • नियमों का कड़ाई से पालन करना: TPPs में (FGD) सिस्टम स्थापित करने की समय-सीमा को और नहीं बढ़ाना चाहिए।
  • फ्यूल क्लीनिंग: कोल बेनीफिकेशन जैसी तकनीकों को अपनाना चाहिए, जिससे कोयले को जलाने से पहले पाइराइटिक सल्फर को हटाया जा सके। कोल वाशिंग से लगभग 50% पाइराइटिक सल्फर और 20-30% कुल सल्फर को हटाया जा सकता है।
  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना: राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन जैसी योजनाओं के माध्यम से हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाना चाहिए।

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