सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, IMD की स्थापना के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधान मंत्री ने मिशन मौसम लॉन्च किया।
मिशन मौसम के बारे में
क्रियान्वयन एजेंसियां:
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भारत में मौसम विज्ञान का इतिहास और पृष्ठभूमि
- पृष्ठभूमि: 1636 में, एक ब्रिटिश वैज्ञानिक हैली ने भारतीय मानसून पर एक पुस्तक प्रकाशित किया। इसमें उन्होंने कहा कि एशियाई भू-भाग और हिंद महासागर के मध्य गर्म एवं ठंडे होने की दर के मामले में अंतर के चलते पवनों की दिशा में मौसमी बदलाव होता है।

- IMD का इतिहास
- स्थापना: 1875
- मुख्यालय: वर्तमान में नई दिल्ली, लेकिन शुरुआत में यह कोलकाता था।
- पहले महानिदेशक सर जॉन इलियट थे, जिन्हें मई 1889 में कोलकाता मुख्यालय में नियुक्त किया गया था।
- 1947 के बाद का दौर
- मंत्रालय: पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES)।
- यह वैश्विक डेटा विनिमय के लिए पहली मेसेज-स्विचिंग कंप्यूटर प्रणाली लागू करने वाला भारत का पहला संगठन है।
- मौसम विज्ञान में वैज्ञानिक उपयोग के लिए देश के शुरुआती इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटरों में से एक कंप्यूटर IMD को दिया गया था।
- भारत दुनिया का पहला विकासशील देश था, जिसने अपना स्वयं का भू-स्थिर उपग्रह INSAT लॉन्च किया। यह भारत और इस क्षेत्र के मौसम की लगातार निगरानी और विशेष रूप से चक्रवात की चेतावनी प्रदान करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहायता: यह सार्क देशों सहित उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र के 13 देशों को चक्रवात संबंधी पूर्वानुमान और चेतावनी सेवाएं प्रदान करता है।
IMD की प्रमुख उपलब्धियां
- मौसम के सटीक अवलोकन हेतु एक अग्रणी संस्थान: IMD ने मैन्युअल अवलोकन से अब अत्याधुनिक स्वचालित मौसम स्टेशंस (AWS) का उपयोग कर रहा है। इनकी मदद से IMD विश्वसनीय मौसम डेटा एकत्र करता है जो मौसम संबंधी पूर्वानुमानों और सेवाओं का प्रमुख आधार है।
- स्वचालित मौसम स्टेशंस की संख्या 2014 में 675 थी, जो 2024 में बढ़कर 1,208 हो गई है। वर्षा निगरानी स्टेशंस की संख्या 2014 में 3,995 थी, जो 2024 में बढ़कर 6,095 हो गई है।
- संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान में प्रगति: IMD अब 7 दिन तक का सटीक मौसम पूर्वानुमान प्रदान कर रहा है और 15 दिन, 1 माह और पूरे मौसम के लिए पूर्वानुमान जारी करने में सक्षम है।
- मानसून का पूर्वानुमान: 1886 से IMD मानसून पूर्वानुमान जारी कर रहा है और अब इसने मौसमी वर्षा के पैटर्न का पूर्वानुमान करने में महारत हासिल कर ली है।
- आपदा से निपटने की तैयारी और शमन: IMD द्वारा जारी की गई चक्रवात की सटीक चेतावनियों ने चक्रवात के चलते होने वाली मौतों की संख्या को 1999 के 10,000 से घटाकर 2020-2024 में शून्य के करीब कर दिया है।
- आपदाओं से जुड़ी अधिक उन्नत जानकारी प्रदान करने के लिए 2014 में केवल एक भूस्थिर उपग्रह (INSAT-3D) था, जबकि 2023 में दो भूस्थिर उपग्रह (INSAT-3D और INSAT-3DR) अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे थे।
- दूरसंचार को बढ़ावा: 1970 में दूरसंचार निदेशालय का गठन किया गया, साथ ही इसी वर्ष हाई स्पीड स्विचिंग कम्प्यूटरों की भी स्थापना की गई और दिल्ली एक क्षेत्रीय दूरसंचार केंद्र बन गया।
- विमानन, कृषि और अन्य क्षेत्रकों को सहायता: IMD विमान सुरक्षा से लेकर फसल से जुड़ी एडवाइजरी सहित विमानन, कृषि, ऊर्जा और जल संसाधन के लिए विशेष सेवाएं प्रदान कर रहा है।
- IMD दिल्ली ने 2003 से अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन के लिए ट्रॉपिकल साइक्लोन एडवाइजरी जारी करना शुरू की थी। यह अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन (ICAO) के तहत अनिवार्यता के अनुसार सात ट्रॉपिकल साइक्लोन एडवाइजरी सेंटर (TCAC) में से एक के रूप में काम कर रहा है।
- अंतर्देशीय जल और सतह परिवहन के लिए मौसम विज्ञान संबंधी सहायता: IMD ने पंद्रह स्थानों पर बाढ़ मौसम विज्ञान कार्यालय (Flood Meteorological Offices: FMOs) स्थापित किए गए हैं। ये कार्यालय मुख्य रूप से नदी उपबेसिन-वार मात्रात्मक वर्षण पूर्वानुमान (Quantitative Precipitation Forecast: QPF) के रूप में मूल्यवान मौसम विज्ञान संबंधी सहायता प्रदान करते हैं।
- FMOs ने 2017 में मानसून के दौरान मुंबई और उत्तरी कोंकण क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा का पूर्वानुमान लगाकर और अधिक लोगों की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
IMD के समक्ष चुनौतियां
- जलवायु परिवर्तन: अत्यधिक वर्षा जैसी अप्रत्याशित मौसमी घटनाओं जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए अवलोकन और संचार प्रणालियों में त्वरित सुधार करने की आवश्यकता है।
- IMD के 12 किमी x 12 किमी ग्रिड का मतलब है कि प्रत्येक सेल 144 वर्ग किलोमीटर को कवर करता है। हालांकि, यह व्यापक कवरेज फायदेमंद है, लेकिन यह ओलावृष्टि या भारी वर्षा के मामले में स्थानीय मौसम पूर्वानुमानों की सटीकता में काफी बाधा डालता है। गौरतलब है कि ओलावृष्टि या भारी वर्षा 2-3 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्रों में भी काफी भिन्न हो सकते हैं।
- आपदाओं के मामले में अग्रिम चेतावनी: IMD को चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है, विशेषकर लघु स्थानिक और क्षेत्रीय पैमाने पर घटित होने वाले तड़ितझंझा के मामले में।
- IMD 24 घंटे पहले 97-99% सटीकता के साथ हीटवेव्स या लू का पूर्वानुमान लगा सकता है। हालांकि, भारी वर्षा की घटनाओं के लिए इसकी सटीकता 80% से कम है, जो मौसम पूर्वानुमान में कमियों को उजागर करता है। ये कमियां आपदाओं का कारण बन सकती है।
- सीमित क्षेत्र का मौसम डेटा: भारत में 56 RS/ RW (रेडियोसोंडे/ रेडियोविंड) अवलोकन स्टेशन हैं। इनकी संख्या उष्णकटिबंधीय भारत में ऊपरी वायु के अवलोकन की सटीक निगरानी करने के लिए अपर्याप्त है। चीन में इनकी संख्या 120 तक है।
- मानसून की अप्रत्याशितता: मध्य अक्षांशों और ध्रुवीय क्षेत्रों में मौसम प्रणाली अधिक स्थिर और अनुमान लगाने योग्य होती है। वहीं, मानसून अधिक अस्थायी और अप्रत्याशित होता है, जिससे इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है।
- 2012 में IMD ने वर्षा की मात्रा सामान्य रहने का पूर्वानुमान किया था, लेकिन वर्षा की कमी के कारण सूखा प्रबंधन योजना की जरूरत पड़ी। बाद में पूर्वानुमान में सुधार कर कम वर्षा का पूर्वानुमान जारी किया, तो भारी बारिश हुई; उत्तर भारत में 12% बारिश की कमी दर्ज की गई।
- उपकरण की गुणवत्ता: भारत में कोई भी रेडियोसॉन्ड उपकरण WMO (विश्व मौसम संगठन) द्वारा प्रमाणित नहीं है। विश्व मौसम संगठन RS/RW उपकरणों के लिए कम-से-कम 3.0 स्कोर की सिफारिश करता है, ताकि वे नियमित तौर पर उपयोग के लिए उपयुक्त हों।
- AI/ ML मॉडल के लिए समग्र डेटा का अभाव: स्थानीय स्तर पर डेटा की कमी एक मूलभूत समस्या उत्पन्न करती है।
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India: GSI) ने हिमालय में 9,575 से अधिक ग्लेशियर होने की बात कही हैं, लेकिन सिर्फ 30 का ही विस्तृत ग्लेशियोलॉजिकल अध्ययन किया गया है। डेटा की यह कमी AI-आधारित अग्रिम चेतावनी प्रणाली के विकास में बाधा डालती है।
आगे की राह
- भौतिक प्रक्रियाओं की बेहतर समझ और अध्ययन: इससे विभिन्न स्थानिक और क्षेत्रीय स्तरों पर अधिक सटीक पूर्वानुमान में मदद मिलेगी।
- इसके दो अच्छे उदाहरण हैं:
- भूमि-वायुमंडल की परस्पर क्रिया (भूमि सतह प्रक्रियाएं) और
- कन्वेक्टिव पैरामीटराइजेशन (मौसम पूर्वानुमान मॉडल में विभिन्न प्रकार के बादलों का विश्लेषण करना)।
- इसके दो अच्छे उदाहरण हैं:
- पृथ्वी प्रणाली के त्रि-आयामी अवलोकन: यह मानसून जैसी जटिल प्रणालियों के लिए सटीक डेटा प्राप्त करने हेतु आवश्यक घटक है।
- अग्रिम चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करना: हमारा लक्ष्य चरम मौसमी घटनाओं के लिए पूर्वानुमान क्षमताओं को बढ़ाना, अति शीघ्र चेतावनी देने और सटीकता में सुधार करना होना चाहिए।
- वर्तमान में IMD 3 किमी × 3 किमी ग्रिड पर प्रयोगात्मक पूर्वानुमान की कोशिश कर रहा है, लेकिन अंततः इसका उद्देश्य 1 किमी × 1 किमी के हाइपर-लोकल पूर्वानुमान तक पहुंचना है।
- अंतिम उपयोगकर्ताओं तक बेहतर पहुंच: अभी भी मौसम का पूर्वानुमान करने वाले और संबंधित उपयोगकर्ताओं के बीच एक अंतर बना हुआ है। कई बार, उपयोगकर्ता मौसम पूर्वानुमान की भाषा पूरी तरह समझ नहीं पाते हैं और कई बार मौसम पूर्वानुमान करने वाले उपयोगकर्ताओं की वास्तविक जरूरतों से अनजान रहते हैं।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग (AI और ML) का लाभ उठाना: AI और ML को मौसम मॉडल में एकीकृत करने से उपलब्ध डेटा को अधिक सटीक पूर्वानुमान के लिए प्रोसेस करने में मदद मिलेगी।