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सहकारिता (COOPERATIVES)

Posted 05 Mar 2025

Updated 18 Mar 2025

52 min read

भारत के गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री तथा प्रधान मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष 2025 (IYC 2025) का उद्घाटन किया।

अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष (International Year of Cooperatives: IYC) 2025 के बारे में

  • घोषणा: जून, 2024; संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा।
  • थीम: "सहकारी समितियां एक बेहतर विश्व का निर्माण करती हैं (Cooperatives Build a Better World)"।
  • उद्देश्य:
    • जागरूकता बढ़ाना: सतत विकास में सहकारी समितियों की भूमिका को प्रदर्शित करना।
    • विकास को बढ़ावा देना: सहकारिता पर आधारित इकोसिस्टम को मजबूत करना।
  • नीतियों का समर्थन करना: सहकारी संस्थाओं के लिए कानूनी और नीतिगत सुधारों का समर्थन करना।
  • नेतृत्व को प्रेरित करना: युवाओं को शामिल करना और सहकारी नेतृत्व को बढ़ावा देना।
  • आयोजक: सहकारी संस्थाओं के प्रचार और बढ़ावा देने हेतु समिति (Committee for the Promotion and Advancement of Cooperatives: COPAC)।

सहकारी समितियां क्या हैं?

  • परिभाषा: एक सहकारी समिति समान आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक समूह है, जो साझा आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होते हैं।
  • उद्देश्य: स्वयं सहायता और पारस्परिक सहायता के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों के हितों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सदस्यों का समर्थन करना।
  • संसाधन साझा करना: सदस्य संसाधनों को एकत्रित करते हैं और पारस्परिक लाभ के लिए उनका प्रभावी ढंग से उपयोग करते हैं।
  • सहकारी आंदोलन: सहकारी समितियों का वैश्विक उदय आंशिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (ICA) के कार्यों के कारण हुआ है।
    • ICA की स्थापना 1895 में ई.वी. नील और एडवर्ड ओवेन ग्रीनिंग ने की थी। यह एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन (NGO) है, जो श्रमिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • नवंबर 2024 में, भारत ने पहली बार ICA के वैश्विक सहकारिता सम्मेलन की मेजबानी की थी। 
      • इस सम्मेलन की थीम थी- "सहकारिता सभी के लिए समृद्धि का निर्माण करती है (Cooperatives Build Prosperity For All)"। यह थीम भारत के "सहकार से समृद्धि" दृष्टिकोण के अनुरूप थी।

भारत में सहकारी समितियां

  • उत्पत्ति: भारत में सहकारिता कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटीज एक्ट, 1904 के साथ शुरू हुई थी। 
  • वर्तमान स्थिति: भारत में विश्व की 27% सहकारी समितियां हैं। 20% भारतीय नागरिक सहकारी समितियों का हिस्सा हैं। हालांकि, वैश्विक औसत केवल 12% है।
  • शीर्ष 3 सहकारी क्षेत्रक: आवास; डेयरी; और प्राथमिक कृषि ऋण समिति (PACS)।
  • अग्रणी राज्य (कुल सहकारी समितियों का 57%): महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक आदि। महाराष्ट्र में देश की 25% सहकारी समितियां मौजूद हैं। 
  • संवैधानिक स्थिति: 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 ने निम्नलिखित प्रावधानों के साथ सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा दिया है-
    • मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 19(1)(c) में "सहकारी समितियों" को जोड़ा गया।
    • राज्य की नीति के निदेशक तत्व: सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए अनुच्छेद 43B जोड़ा गया।
    • नया भाग IXB: सहकारी गवर्नेंस के लिए अनुच्छेद 243ZH से 243ZT जोड़े गए।
  • गवर्नेंस संरचना:
    • बहु-राज्य सहकारी समितियां: ये संविधान की संघ सूची की प्रविष्टि 44 के अंतर्गत आती हैं। इन्हें बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002 के तहत शासित किया जाता है।
    • राज्य सहकारी समितियां: ये संविधान की राज्य सूची की प्रविष्टि 32 के अंतर्गत आती हैं। इन्हें संबंधित राज्य के सहकारी समिति अधिनियमों के तहत शासित किया जाता है।

सहकारी बैंक क्या हैं?

  • सहकारी बैंक वे वित्तीय संस्थाएं होती हैं, जिन्हें सहकारिता के आधार पर स्थापित किया जाता है। ये बैंक अपने सदस्यों के स्वामित्व में होते हैं।
  • ये राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत होते हैं।
  • ये निम्नलिखित दो कानूनों के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के विनियमन के अंतर्गत आते हैं:
    • बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949; तथा 
    • बैंकिंग कानून (सहकारी समितियां) अधिनियम, 1955 
  • सहकारी बैंक RBI की पूर्व स्वीकृति से इक्विटी, प्रिफरेंस या विशेष शेयर जारी कर सकते हैं।
  • भारत में वर्तमान में कुल लगभग 1,400 शहरी सहकारी बैंक हैं। इनमें से लगभग आधे गुजरात और महाराष्ट्र में स्थित हैं।

सामाजिक-आर्थिक विकास में सहकारी समितियों का महत्त्व

  • सामाजिक सामंजस्य को मजबूत करना: सहकारी समितियां तीसरे पक्ष की भागीदारी के बिना सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती हैं।
    • उदाहरण: आवास संबंधी सहकारी समितियां निवासियों और शहरी नीतियों के बीच के अंतराल को खत्म करती हैं, जमीनी स्तर की भागीदारी को प्रोत्साहित करती हैं आदि।
  • समाज को सशक्त बनाना:
    • समान अधिकार: "एक व्यक्ति-एक वोट" प्रणाली समानता सुनिश्चित करती है।
    • सौदेबाजी की शक्ति: बेहतर अवसरों के लिए सामूहिक कार्रवाई को सक्षम बनाती है।
    • नेतृत्व विकास: सहकारी समितियां लोकतांत्रिक रूप से अपने नेताओं का चुनाव करती हैं। इससे कुछ राज्यों में नेतृत्व कौशल विकसित करने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में कई विधायक सहकारी आंदोलन से जुड़े हुए हैं।
  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना: किसानों के लिए किफायती ऋण, साहूकारों पर निर्भरता को कम करना आदि। व्यापक ग्रामीण नेटवर्क वित्तीय पहुंच को बढ़ाता है।
  • धन संबंधी असमानता को कम करना: कम ब्याज दरों पर ऋण से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को आर्थिक मदद मिलती है। साथ ही, ये स्वरोजगार और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहित करती हैं।
  • नैतिक मूल्यों को स्थापित करना: ये समितियां सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए एकता, विश्वास, ईमानदारी और सहयोग को बढ़ावा देती हैं। 

भारत में सहकारी समितियों के सामने आने वाली चुनौतियां

  • शासन संबंधी मुद्दे:
    • सरकारी हस्तक्षेप: उधार, लेन-देन और निवेश पर विनियमन सहकारी समितियों की दक्षता को सीमित करते हैं।
    • राजनीतिकरण: शक्तिशाली स्थानीय व्यक्ति सहकारी समितियों के प्रबंधन कार्य को प्रभावित करते हैं।
    • जागरूकता की कमी: कई सदस्य एवं निदेशक सहकारी उद्देश्यों और नियमों से अनजान रहते हैं।
    • आंतरिक प्रतिद्वंद्विता: सदस्यों के बीच झगड़े और तनाव सक्रिय भागीदारी को कम करते हैं।
  • सीमित पहुंच और अक्षमता:
    • क्षेत्रीय असंतुलन: पूर्वोत्तर और पूर्वी राज्यों में सहकारी समितियां अविकसित हैं।
    • छोटी समितियां: सीमित सदस्यता और संसाधनों का अभाव समितियों के विकास में बाधा डालते हैं।
    • एकल-उद्देश्यीय फोकस: सहकारी समितियों में सामुदायिक समस्याओं को हल करने के लिए समग्र दृष्टिकोण का अभाव है। 
  • परिचालन संबंधी चुनौतियां:
    • कमजोर लेखा परीक्षा प्रणाली: लेखा परीक्षा अनियमित, विलंबित और अप्रभावी है।
    • समन्वय की कमी: अलग-अलग स्तरों पर सहकारी समितियां एक साथ काम करने में विफल रहती हैं।
  • कार्यात्मक कमजोरियां:
    • काम-काज के विस्तार की कमी: सहकारी समितियां वित्तीय, प्रबंधकीय और तकनीकी सीमाओं से जूझती हैं।
    • कुशल कार्यबल की कमी: प्रशिक्षण संस्थानों और पेशेवर अवसरों की कमी है।
    • खराब प्रबंधन: सीमित करियर विकास संबंधी नेतृत्व और दक्षता को प्रभावित करता है।
    • डिजिटल उपकरणों से परिचित न होना: आंकड़ों के अनुसार केवल 45% सहकारी सदस्य डिजिटल उपकरणों से परिचित हैं, जो तकनीकी साक्षरता में महत्वपूर्ण अंतराल को दर्शाता है।

भारत में सहकारी समितियों को मजबूत करने के लिए प्रमुख पहलें

संस्थागत समर्थन
  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) (1963): सहकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
  • सहकारिता मंत्रालय (2021): इसे सहकारी क्षेत्र एवं ग्रामीण समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया है।
  • राष्ट्रीय सहकारिता नीति: सहकारिता विकास को बढ़ावा देने के लिए 'सहकार-से-समृद्धि' विज़न के तहत एक नीति का मसौदा तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की समिति का गठन किया गया है।

कानूनी और गवर्नेंस संबंधी सुधार

 

  • बहु-राज्य सहकारी समितियां (संशोधन) अधिनियम, 2023: यह सहकारी समितियों में गवर्नेंस, पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रियाओं को मजबूत करता है।
  • PACS के लिए मॉडल उप-नियम: प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) में बेहतर प्रबंधन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
आर्थिक और अवसंरचनात्मक विकास
  • 'विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना' (पायलट परियोजना): यह खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए PACS गोदामों को खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में एकीकृत करती है।
  • मार्गदर्शिका योजना: 2 लाख नवीन PACS, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना आदि।
  • 'श्वेत क्रांति 2.0' के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs): डेयरी क्षेत्र में महिला सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करना। साथ ही, 2029 तक दूध की खरीद को बढ़ाकर 1,000 लाख किलोग्राम प्रतिदिन करना।

प्रौद्योगिकी और वित्तीय समावेशन

 

  • राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस (NCD): राज्यों और क्षेत्रों में सहकारी समितियों पर डेटा प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त और विकास निगम (NUCFDC): यह शहरी सहकारी बैंकों के लिए एक अम्ब्रेला संगठन है। यह एक स्व-विनियामक संगठन के रूप में कार्य करता है। 
  • 'सहकारी समितियों के बीच सहयोग' के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं: सहकारी समिति के सदस्यों के लिए बैंक खाते खोलने की सुविधा देकर वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना।

भारत में सहकारी आंदोलन को सशक्त बनाना

  • संरचनात्मक सुधार:
    • कमजोर समितियों का विलय: संसाधनों को एकत्रित करने और दक्षता में सुधार करने के लिए अक्षम सहकारी समितियों को मजबूत समितियों में विलय किया जाना चाहिए।  
    • बहुउद्देशीय समितियों को बढ़ावा देना: ये समितियां सदस्यों की कई आवश्यकताओं को पूरा कर सकती हैं। इससे संतुलित और समग्र विकास सुनिश्चित होगा।
  • परिचालन दक्षता में सुधार:
    • सहकारी समितियों को अपने मूल व्यवसाय और वित्तीय प्रबंधन में पेशेवर प्रबंधकों की आवश्यकता है।
    • ऋणों को सरल बनाना: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋणों का उपयोग उत्पादक रूप से किया जाए और उन्हें समय पर चुकाया जाए।
    • समन्वय को बढ़ाना: विविध सहकारी निकायों के बीच बेहतर लिंक स्थापित करना चाहिए, ताकि परस्पर समर्थन सुनिश्चित हो सके।
    • दक्ष प्रशासन: प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए और सहकारी प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिए।
  • क्षमता निर्माण:
    • कौशल विकास: सहकारी प्रबंधन में कर्मचारियों, छात्रों और इच्छुक सहकारी सदस्यों को प्रशिक्षित करना चाहिए।
    • डिजिटलीकरण: पारदर्शिता एवं दक्षता बढ़ाने के लिए गवर्नेंस, बैंकिंग और व्यावसायिक संचालन के लिए डिजिटल उपकरणों को लागू करना चाहिए।
  • जन जागरूकता और शिक्षा:
    • जन जागरूकता अभियान: जन आंदोलन जैसी पहलों और लोक पहुंच के माध्यम से सहकारी समितियों को बढ़ावा देना चाहिए।
    • मूल्य आधारित शिक्षा: कम उम्र से ही नैतिक व्यवहार और सहयोग सिखाना चाहिए।
  • विधायी और गवर्नेंस संबंधी सुधार:
    • कानूनी ढांचे को मजबूत करना: सहकारी बैंकिंग के लिए नरसिम्हम समिति की सिफारिशों को लागू करना चाहिए।
  • पारदर्शिता सुनिश्चित करना:
    • सहकारी समितियों को RTI अधिनियम के तहत लाना चाहिए।
    • सहकारी संस्थाओं और बैंकों के खिलाफ कदाचार की जांच के लिए CBI एवं CVC की जांच प्रक्रिया को लागू करना चाहिए।
    • सहकारी समितियों में आंतरिक ऑडिट प्रणाली को मजबूत करना चाहिए तथा समकालिक ऑडिट का आयोजन करना चाहिए, ताकि जोखिम कम हो सके और एक पेशेवर दृष्टिकोण अपनाया जा सके।
    • नाबार्ड ग्रामीण सहकारी बैंकों के लिए सहकारी गवर्नेंस सूचकांक (CGI) विकसित करने की दिशा में काम कर रहा है, ताकि गवर्नेंस संबंधी मानकों का आकलन और सुधार किया जा सके।
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  • संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारी वर्ष 2025
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