सुर्ख़ियों में क्यों?
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने अपनी स्थापना के 75वें वर्ष का जश्न मनाया। इसके अलावा 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस भी मनाया गया।
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) के बारे में
- उत्पत्ति: ECI एक स्थायी संवैधानिक निकाय है। इसकी स्थापना 25 जनवरी, 1950 को हुई थी।

- वर्ष 2011 से, ECI के स्थापना दिवस को चिन्हित करने के लिए हर साल 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है।
- संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के भाग XV में अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनावों के संबंध में प्रावधान किए गए हैं।
- वैधानिक प्रावधान: निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति, सेवा शर्तों और कार्यकाल से संबंधित नियम "मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023" द्वारा तय किए जाते हैं।
- मुख्य भूमिका: ECI निम्नलिखित चुनावों का संचालन करता है:
- लोक सभा
- राज्य सभा
- राज्य विधान सभाएं
- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव
- ECI की संरचना: इसमें वर्तमान में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) एवं दो निर्वाचन आयुक्त (EC) होते हैं।
- शुरू में, आयोग में केवल एक सदस्य (CEC) था। 1989 में, दो निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किए गए, जो 1 जनवरी 1990 तक कार्यरत रहे।
- 1993 से, आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) के साथ-साथ दो अतिरिक्त निर्वाचन आयुक्त भी स्थायी रूप से कार्यरत हैं।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त अधिनियम, 2023 के प्रमुख प्रावधान
2023 के अधिनियम ने 1991 के अधिनियम को प्रतिस्थापित किया है। इसमें ECI को अधिक स्वायत्तता प्रदान की गई है, जैसे- योग्यता का निर्धारण, नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार, कार्यकाल की सुरक्षा, आदि।
विशिष्टता | विवरण |
योग्यता
| CEC या EC के लिए योग्य व्यक्ति:
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खोज समिति (Search Committee) |
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चयन समिति (Select Committee) |
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CEC और EC का कार्यकाल
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CEC और EC का वेतन, आदि |
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त्याग-पत्र और निष्कासन |
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ECE और EC को कानूनी संरक्षण | CEC और EC को आधिकारिक क्षमता में किए गए कृत्यों या बोले गए शब्दों के लिए नागरिक या आपराधिक कार्यवाही से सुरक्षा प्राप्त है। |
ECI के समक्ष चुनौतियां

- पूर्ण स्वायत्तता की कमी:
- चयन प्रक्रिया: खोज और चयन समिति में सरकार के प्रतिनिधियों का बहुमत होने के कारण इसकी स्वतंत्रता पर सवाल उठते हैं।
- ECs का निष्कासन: CEC के विपरीत, ECs को CEC की सिफारिश के आधार पर हटाया जा सकता है।
- सेवानिवृत्ति के बाद का रोजगार: हालांकि 2023 का अधिनियम पुनर्नियुक्ति को प्रतिबंधित करता है, लेकिन यह सेवानिवृत्ति के बाद सरकार के तहत किसी भी पद या कार्यालय में CEC और ECs की आगे की नियुक्ति के संबंध में मौन है।
- स्वतंत्र कर्मचारियों की कमी: ECI अपने स्वयं के कार्यबल की बजाय सरकारी कर्मचारियों पर निर्भर है। इससे ECI की स्वायत्तता प्रभावित होती है।
- परिचालन संबंधी मुद्दे:
- सीमित शक्तियां: राजनीतिक दलों द्वारा नियमों के गंभीर उल्लंघन के बावजूद, ECI के पास उनका पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।
- मतदाता सूची प्रबंधन: डुप्लिकेट एंट्री, गलत विवरण और पात्र मतदाताओं का सूची से बाहर होना जैसी समस्याएं।
- चुनावी कदाचार: वोट लेने के लिए कैश देना और बूथ कैप्चरिंग जैसे मुद्दे निष्पक्ष चुनावों को बाधित करते हैं।
- समावेशिता और वोटर टर्नआउट: 30 करोड़ से अधिक मतदाता अक्सर आंतरिक प्रवास या अन्य बाधाओं के कारण मतदान नहीं कर पाते हैं।
- सुरक्षा संबंधी चिंताएं: राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में मतदाताओं, उम्मीदवारों और अधिकारियों की सुरक्षा एक गंभीर चुनौती है।
- उभरती हुई चुनौतियां:
- सोशल मीडिया और गलत सूचना: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए फेक न्यूज़ कैंपेन और AI-जनित डीपफेक से निपटना एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बन गया है।
ECI की प्रमुख पहलें:
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ECI के कामकाज को बेहतर बनाने के लिए आगे की राह
- स्वायत्तता सुनिश्चित करना:
- पारदर्शी तरीके से नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले (अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ वाद) का पालन करना चाहिए। इस निर्णय के तहत CEC और ECs की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली विकसित करने की वकालत की गई थी, जब तक कि संसद ऐसी नियुक्तियों के लिए एक नया कानून नहीं बना देती।
- यह फैसला 2023 के अधिनियम के लागू होने के बाद सुनाया गया था। प्रस्तावित कॉलेजियम में प्रधान मंत्री, लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल थे।
- ECs के लिए सुरक्षा: ECs को हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों जैसी होनी चाहिए (255वीं विधि आयोग की रिपोर्ट)।
- सेवानिवृत्ति के बाद कोई लाभ नहीं: सेवानिवृत्ति के बाद CEC और ECs को किसी भी सरकारी पद से वंचित किया जाना चाहिए। हालांकि ECs के लिए CEC बनने की पात्रता बनी रह सकती है (दिनेश गोस्वामी समिति, 1990)।
- स्वतंत्र सचिवालय: स्वायत्तता में वृद्धि के लिए ECI के लिए एक स्थायी सचिवालय की स्थापना की जानी चाहिए (255वें विधि आयोग की रिपोर्ट)।
- पारदर्शी तरीके से नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट के 2023 के फैसले (अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ वाद) का पालन करना चाहिए। इस निर्णय के तहत CEC और ECs की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली विकसित करने की वकालत की गई थी, जब तक कि संसद ऐसी नियुक्तियों के लिए एक नया कानून नहीं बना देती।
- चुनावी संचालन में सुधार:
- आदर्श आचार संहिता (MCC) को कानूनी रूप देना: आदर्श आचार संहिता को वैधानिक समर्थन देने से इसको लागू करना एवं इसका अनुपालन बेहतर होगा।
- भागीदारीपूर्ण चुनाव सुनिश्चित करना: घरेलू प्रवासियों को दूर से मतदान करने में सक्षम बनाने के लिए मल्टी-कांस्टीट्यूएंसी रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) का संचालन किया जाना चाहिए।
- RVMs एक दूरस्थ मतदान केंद्र से 72 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदान का प्रबंधन कर सकती हैं।
- एक उम्मीदवार को एक निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित करना: चुनाव आयोग ने एक उम्मीदवार को दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी है, लेकिन EC के खर्च को कम करने के लिए इसे एक निर्वाचन क्षेत्र तक सीमित किया जाना चाहिए।
- उभरती चुनौतियों से निपटना:
- तकनीक से संचालित चुनाव: सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा और डीपफेक का पता लगाने के लिए AI का उपयोग करने की आवश्यकता है।
- फर्जी मतदान को रोकना: आधार से जुड़े मतदाता पहचान पत्रों के साथ चेहरे की पहचान को एकीकृत करना।
- चुनावी शोध केंद्र: चुनाव संबंधी शोध, नवाचार और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक मतदाता सूची शोध और अध्ययन केंद्र की स्थापना करना चाहिए।