परिचय
हाल के दिनों में, विदेशी सहायता (Foreign Aid) की अवधारणा गहन समीक्षा के अधीन रही है। विशेष रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) द्वारा अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के संचालन को 90 दिनों के लिए निलंबित करने की कार्रवाई के बाद चर्चा और बढ़ गई है। इस कदम ने विदेशी सहायता के नैतिक प्रभावों, इसके पीछे की प्रेरणाओं और वास्तविक दुनिया पर इसके प्रभाव को लेकर एक व्यापक चर्चा को जन्म दिया है।
संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (United States Agency for International Development: USAID) के बारे में
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विदेशी सहायता (Foreign Aid) के बारे में

- यह एक देश से दूसरे देश को स्वेच्छा से संसाधनों (जैसे- धन, वस्तुएं या सेवाएं) के रूप में दी जाने वाली मदद है। इसका मुख्य उद्देश्य मदद प्राप्त करने वाले देश या उसके नागरिकों को लाभ पहुंचाना होता है।
- यह विभिन्न रूपों में हो सकती है, जैसे- आर्थिक सहायता, सैन्य सहायता और मानवीय सहायता। हालांकि, यह आमतौर पर विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को प्रदान की जाती है।

विदेशी सहायता के औचित्य
- दार्शनिक और नैतिक तर्क:
- उपयोगितावाद (अधिकतम भलाई का सिद्धांत): सहायता वहां दी जाए, जहां यह अधिकतम लोगों के लिए सबसे अधिक लाभकारी हो।
- अधिकार-आधारित दृष्टिकोण (सार्वभौमिक मानवाधिकार): दुनिया भर में सभी के अधिकार सुनिश्चित करना।
- सामुदायिकतावाद (समुदाय और साझा मूल्यों का महत्व): स्थानीय संस्कृति और समुदाय का सम्मान तथा समर्थन करना चाहिए।
- स्वतंत्रतावाद (व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मुक्त बाजार): सहायता को लेकर संदेह; केवल स्वैच्छिक या आपातकालीन सहायता को प्राथमिकता देना।
- ग्लोबल सिटीजन (कॉस्मोपॉलिटनिज़्म): वैश्विक स्तर पर समानता के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता के रूप में सहायता देना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा: ऐतिहासिक रूप से विदेशी सहायता का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा रहा है। यह अस्थिर क्षेत्रों को स्थिर करने और शत्रुतापूर्ण प्रभावों को रोकने में मदद करता है। इसमें सहयोगी देशों को सैन्य सहायता और मित्रवत सरकारों को बनाए रखने के लिए आर्थिक समर्थन शामिल है।
- आर्थिक विकास: विदेशी सहायता का उद्देश्य विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना होता है। इसमें बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा में निवेश किया जाता है। यह न केवल सहायता प्राप्तकर्ता देशों की मदद करता है, बल्कि दाता देशों के लिए नए बाजार भी उपलब्ध कराता है।
- मानवीय सरोकार: मानवीय सहायता प्राकृतिक आपदाओं या संघर्षों जैसी संकटकालीन स्थितियों का तत्काल समाधान करती है। इसका उद्देश्य पीड़ितों की मदद करना और पुनर्वास कार्यों को समर्थन देना होता है।
मौजूदा दौर की विदेशी सहायता से संबंधित नैतिक सरोकार | |
सकारात्मक आयाम | नकारात्मक आयाम |
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आगे की राह
- सार्वजनिक डैशबोर्ड और स्वतंत्र ऑडिट का उपयोग करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सहायता सही तरीके से आवंटित और प्रबंधित की जा रही है और इसके प्रभाव का सही मूल्यांकन हो रहा है।
- सहायता परियोजनाओं में जलवायु लचीलापन, नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय कृषि को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- दी जाने वाली सहायता स्थानीय संस्कृति तथा संदर्भ के अनुसार व्यवस्थित और अनुरूप होनी चाहिए। साथ ही, परियोजना की प्लानिंग में स्थानीय NGOs और नेताओं को शामिल करना चाहिए।
- प्राप्तकर्ता देशों के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुसार सहायता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, बजाय इसके कि दाता देश अपने एजेंडों के अनुसार लक्ष्यों को तय करें।
- सहायता के वितरण, निगरानी और मूल्यांकन में प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि प्रक्रिया अधिक प्रभावी और पारदर्शी हो सके।
- स्थानीय क्षमता निर्माण पर जोर देना चाहिए, ताकि दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित हो सके, न कि केवल अल्पकालिक राहत पर निर्भरता बनी रहे।
अपनी नैतिक अभिवृत्ति का परीक्षण कीजिए आप भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और ITEC एवं विकास साझेदारी प्रशासन (DPA) के तहत भारत की विदेशी सहायता पहलों की देखरेख कर रहे हैं। एक विकासशील देश जो बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा और खाद्य सुरक्षा के लिए भारतीय सहायता प्राप्त कर रहा है, अब राजनीतिक उथल-पुथल, भ्रष्टाचार के आरोपों और स्थानीय सरकार द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना कर रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि पिछले फंड का दुरुपयोग किया गया था, जिससे पारदर्शिता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। साथ ही, यह भी स्पष्ट है कि सहायता को रोकने से कमजोर आबादी के लिए स्थिति और खराब हो सकती है। अंत में, सहायता वापस लेने से BRI ऋणों के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए रास्ता खुल सकता है। उपर्युक्त केस स्टडी के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
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