मौजूदा दौर की विदेशी सहायता से संबंधित नैतिक सरोकार (ETHICAL CONSIDERATIONS IN CONTEMPORARY FOREIGN AID) | Current Affairs | Vision IAS
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मौजूदा दौर की विदेशी सहायता से संबंधित नैतिक सरोकार (ETHICAL CONSIDERATIONS IN CONTEMPORARY FOREIGN AID)

Posted 05 Mar 2025

Updated 17 Mar 2025

44 min read

परिचय

हाल के दिनों में, विदेशी सहायता (Foreign Aid) की अवधारणा गहन समीक्षा के अधीन रही है। विशेष रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) द्वारा अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी (USAID) के संचालन को 90 दिनों के लिए निलंबित करने की कार्रवाई के बाद चर्चा और बढ़ गई है। इस कदम ने विदेशी सहायता के नैतिक प्रभावों, इसके पीछे की प्रेरणाओं और वास्तविक दुनिया पर इसके प्रभाव को लेकर एक व्यापक चर्चा को जन्म दिया है। 

संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी (United States Agency for International Development: USAID) के बारे में

  • स्थापना: इसे 1961 में अमेरिकी कांग्रेस के एक अधिनियम द्वारा एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में विश्वव्यापी नागरिक सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित किया था। 
  • उद्देश्य: यह एजेंसी विदेशों में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देने, एक स्वतंत्र, शांतिपूर्ण और समृद्ध विश्व को बढ़ावा देने और सॉफ्ट पावर के माध्यम से अमेरिकी सुरक्षा एवं समृद्धि को बढ़ाने के लिए 100 से अधिक देशों में काम कर रही है।
  • कार्य क्षेत्र: अनुदान, तकनीकी सहायता और विकास परियोजनाओं के लिए वित्त-पोषण के माध्यम से आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा, मानवीय सहायता आदि। 
  • सहयोग: यह सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, कंपनियों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करती है। 
  • प्रमुख कार्यक्रम: 
    • प्रेसिडेंट्स इमरजेंसी प्लान फॉर एड्स रिलीफ (PEPFAR): यह मुख्य रूप से HIV/एड्स के नियंत्रण पर केंद्रित है।
    • फीड द फ्यूचर: इसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना और भुखमरी का समाधान करना है।
    • पावर अफ्रीका: यह अफ्रीका में बिजली की उपलब्धता बढ़ाने पर केंद्रित पहल है।
    • वाटर फॉर दी वर्ल्ड एक्ट: यह जल, सफाई और स्वच्छता सेवाओं में सुधार पर केंद्रित है।
  • वैश्विक योगदान: इसने 2024 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा ट्रैक की गई सभी मानवीय सहायता का लगभग 42% योगदान दिया। 

 

विदेशी सहायता (Foreign Aid) के बारे में 

  • यह एक देश से दूसरे देश को स्वेच्छा से संसाधनों (जैसे- धन, वस्तुएं या सेवाएं) के रूप में दी जाने वाली मदद है। इसका मुख्य उद्देश्य मदद प्राप्त करने वाले देश या उसके नागरिकों को लाभ पहुंचाना होता है। 
  • यह विभिन्न रूपों में हो सकती है, जैसे- आर्थिक सहायता, सैन्य सहायता और मानवीय सहायता। हालांकि, यह आमतौर पर विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को प्रदान की जाती है

विदेशी सहायता के औचित्य 

  • दार्शनिक और नैतिक तर्क: 
    • उपयोगितावाद (अधिकतम भलाई का सिद्धांत): सहायता वहां दी जाए, जहां यह अधिकतम लोगों के लिए सबसे अधिक लाभकारी हो।
    • अधिकार-आधारित दृष्टिकोण (सार्वभौमिक मानवाधिकार): दुनिया भर में सभी के अधिकार सुनिश्चित करना।
    • सामुदायिकतावाद (समुदाय और साझा मूल्यों का महत्व): स्थानीय संस्कृति और समुदाय का सम्मान तथा समर्थन करना चाहिए। 
    • स्वतंत्रतावाद (व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मुक्त बाजार): सहायता को लेकर संदेह; केवल स्वैच्छिक या आपातकालीन सहायता को प्राथमिकता देना।
    • ग्लोबल सिटीजन (कॉस्मोपॉलिटनिज़्म): वैश्विक स्तर पर समानता के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता के रूप में सहायता देना। 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: ऐतिहासिक रूप से विदेशी सहायता का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा रहा है। यह अस्थिर क्षेत्रों को स्थिर करने और शत्रुतापूर्ण प्रभावों को रोकने में मदद करता है। इसमें सहयोगी देशों को सैन्य सहायता और मित्रवत सरकारों को बनाए रखने के लिए आर्थिक समर्थन शामिल है।
  • आर्थिक विकास: विदेशी सहायता का उद्देश्य विकासशील देशों में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देना होता है। इसमें बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा में निवेश किया जाता है। यह न केवल सहायता प्राप्तकर्ता देशों की मदद करता है, बल्कि दाता देशों के लिए नए बाजार भी उपलब्ध कराता है।
  • मानवीय सरोकार: मानवीय सहायता प्राकृतिक आपदाओं या संघर्षों जैसी संकटकालीन स्थितियों का तत्काल समाधान करती है। इसका उद्देश्य पीड़ितों की मदद करना और पुनर्वास कार्यों को समर्थन देना होता है।

मौजूदा दौर की विदेशी सहायता से संबंधित नैतिक सरोकार

सकारात्मक आयाम

नकारात्मक आयाम

  • संधारणीय विकास: विदेशी सहायता शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्त-पोषित करके संधारणीय विकास को सुगम बना सकती है।
  • उदाहरण के लिए, विश्व बैंक ने भारत द्वारा भूटान में पनबिजली परियोजनाओं द्वारा  संधारणीय विकास में योगदान की सराहना की है।
  • निर्भरता: दीर्घकालिक सहायता स्थायी निर्भरता बना सकती है, जिससे स्थानीय शासन और आर्थिक आत्मनिर्भरता कमजोर होती है।
  • उदाहरण के लिए, कई अफ्रीकी देश विदेशी सहायता पर निर्भर हो गए हैं, जिससे उनकी आर्थिक नीतियां प्रभावित हुई हैं।
  • खाद्य सुरक्षा: कृषि सहायता कार्यक्रमों ने अकालग्रस्त क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन बढ़ाने में मदद की है।
  • उदाहरण के लिए, भारत प्रशिक्षण और रियायती ऋण के माध्यम से अफ्रीका में कृषि को समर्थन प्रदान करता है, जिससे वहां की खेती और खाद्य उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  • भ्रष्टाचार: सहायता राशि की निगरानी में कमी होने से भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा गबन की संभावना रहती है।
  • उदाहरण के लिए, श्रीलंका का आर्थिक संकट विदेशी सहायता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के कारण और गहरा गया।
  • स्वास्थ्य सुधार: प्रभावी सहायता योजनाएं अविकसित देशों में बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद कर सकती हैं।
  • उदाहरण के लिए, कोविड-19 के दौरान भारत द्वारा सस्ती वैक्सीन और दवाओं की आपूर्ति की गयी।
  • सांस्कृतिक असंवेदनशीलता: बाहरी समाधान कई बार स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे उनका विरोध होता है।
  • उदाहरण के लिए, कुछ अफ्रीकी और एशियाई देशों में महिलाओं के जनन स्वास्थ्य संबंधी अधिकार अभियानों को सांस्कृतिक या धार्मिक मान्यताओं के कारण प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। स्थानीय लोग इन अभियानों को अनैतिकता को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।
  • आपदा के दौरान राहत: त्वरित और प्रभावी सहायता आपदाओं के बाद जान बचाने और पुनर्निर्माण में मदद करती है।
  • उदाहरण के लिए, भारत ने नेपाल (2015) और तुर्की (2023) के भूकंपों के दौरान त्वरित राहत प्रदान की।
  • राजनीतिक उद्देश्य: विदेशी सहायता का उपयोग कभी-कभी दाता देशों के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है। इससे प्राप्तकर्ता देश की ज़रूरतें प्रभावित होती हैं।
  • उदाहरण के लिए, चीन अपनी 'ऋण-जाल कूटनीति' के तहत अन्य देशों में निवेश को अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करता है।
  • शिक्षा और कौशल विकास: शिक्षा में निवेश से दीर्घकालिक सामाजिक लाभ होते हैं।
  • उदाहरण के लिए, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के तहत विकासशील देशों के लोगों को प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसर मिलते हैं। 
  • पर्यावरणीय क्षति: कुछ सहायता परियोजनाओं, जैसे बड़े पैमाने पर कृषि संबंधी पहलों के कारण पर्यावरणीय क्षति हुई है।
  • उदाहरण के लिए, कई विकासशील देशों में औद्योगीकरण को विदेशी सहायता द्वारा बढ़ावा दिया गया, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और अन्य प्रदूषकों का उत्सर्जन बढ़ गया।

 

आगे की राह 

  • सार्वजनिक डैशबोर्ड और स्वतंत्र ऑडिट का उपयोग करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सहायता सही तरीके से आवंटित और प्रबंधित की जा रही है और इसके प्रभाव का सही मूल्यांकन हो रहा है।
  • सहायता परियोजनाओं में जलवायु लचीलापन, नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय कृषि को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • दी जाने वाली सहायता स्थानीय संस्कृति तथा संदर्भ के अनुसार व्यवस्थित और अनुरूप होनी चाहिए। साथ ही, परियोजना की प्लानिंग में स्थानीय NGOs और नेताओं को शामिल करना चाहिए।
  • प्राप्तकर्ता देशों के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुसार सहायता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, बजाय इसके कि दाता देश अपने एजेंडों के अनुसार लक्ष्यों को तय करें। 
  • सहायता के वितरण, निगरानी और मूल्यांकन में प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि प्रक्रिया अधिक प्रभावी और पारदर्शी हो सके। 
  • स्थानीय क्षमता निर्माण पर जोर देना चाहिए, ताकि दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित हो सके, न कि केवल अल्पकालिक राहत पर निर्भरता बनी रहे। 

अपनी नैतिक अभिवृत्ति का परीक्षण कीजिए

आप भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) में एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और ITEC एवं विकास साझेदारी प्रशासन (DPA) के तहत भारत की विदेशी सहायता पहलों की देखरेख कर रहे हैं। एक विकासशील देश जो बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य सेवा और खाद्य सुरक्षा के लिए भारतीय सहायता प्राप्त कर रहा है, अब राजनीतिक उथल-पुथल, भ्रष्टाचार के आरोपों और स्थानीय सरकार द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना कर रहा है। 

रिपोर्ट्स बताती हैं कि पिछले फंड का दुरुपयोग किया गया था, जिससे पारदर्शिता को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। साथ ही, यह भी स्पष्ट है कि सहायता को रोकने से कमजोर आबादी के लिए स्थिति और खराब हो सकती है। अंत में, सहायता वापस लेने से BRI ऋणों के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए रास्ता खुल सकता है। 

उपर्युक्त केस स्टडी के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  • इस मामले में नैतिक सिद्धांत क्या हैं?
  • प्रमुख हितधारकों की पहचान कीजिए और उनकी चिंताएं क्या हैं?
  • कौन सी व्यवस्था यह सुनिश्चित कर सकती है कि भ्रष्ट शासन को मजबूत किए बिना सहायता लाभार्थियों तक पहुंचे?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  • Tags :
  • विदेशी सहायता
  • USAID
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