लघुपक्षवाद और बहुपक्षवाद (MINILATERALISM AND MULTILATERALISM) | Current Affairs | Vision IAS
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लघुपक्षवाद और बहुपक्षवाद (MINILATERALISM AND MULTILATERALISM)

05 Mar 2025
38 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा साइबर अपराध संधि को अपनाया गया। साइबर अपराध संधि को अपनाना न केवल कमजोर साइबर गवर्नेंस प्रणाली से निपटने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह बहुपक्षवाद के लिए भी एक बड़ी जीत है।

संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध संधि और बहुपक्षवाद का पुनरुत्थान

  • पिछले कुछ वर्षों में, राष्ट्रवाद का उदय, लोकलुभावनवाद, आर्थिक असमानताएं और वैश्विक  महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा जैसे कारक वैश्विक उदारवादी व्यवस्था और बहुपक्षवाद के पतन का कारण बन रहे हैं। 
    • साथ ही, इंटरनेट की बढ़ती पहुंच, साइबर अपराध में वृद्धि, उदार संस्थानों की अक्षमता तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संवाद की कमी के कारण बहुपक्षवाद और अधिक कमजोर हुआ है।
  • उपर्युक्त कारकों के कारण अल्पकालिक रणनीतिक गठबंधनों और मिनीलेटरल्स का उदय हुआ। इनमें आपसी हितों के अनुरूप लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग करने वाले राष्ट्रों के छोटे समूह शामिल हैं। 
  • अलग-अलग राष्ट्रों के अपने हितों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध संधि को अपनाने की प्रक्रिया, बहुपक्षवाद की एक बड़ी जीत है। 
    • संयुक्त राष्ट्र साइबर अपराध संधि वैश्विक और साइबर अपराध की परस्पर जुड़ी हुई प्रकृति से निपटने के सामूहिक प्रयासों पर बहुत अधिक निर्भर करती है।

बहुपक्षवाद और लघुपक्षवाद के बारे में

  • बहुपक्षवाद: इसे द्विपक्षवाद (Bilateralism) एवं एकपक्षीयवाद (Unilateralism) के विपरीत परिभाषित किया जाता है। बहुपक्षवाद के अंतर्गत 3 या अधिक राष्ट्र किसी साझा प्रणाली के नियमों और मूल्यों के आधार पर समान मुद्दे पर आपस में सहयोग करते हैं।
    • उद्भव: अधिकांश बहुपक्षीय संस्थाएं द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आईं। उदाहरण के लिए- संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक, GATT (जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड), NATO, आदि।
  • लघुपक्षवाद: यह एक अनौपचारिक, लचीला और स्वैच्छिक फ्रेमवर्क है। इसमें विभिन्न परिस्थितियों के अनुरूप हितों, साझा मूल्यों या प्रासंगिक क्षमताओं को शामिल किया जाता है। यह देशों को महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर पूर्ण सहमति के बिना भी आपसी सहयोग का अवसर प्रदान करता है।
    • उद्भव: यह कोई नया विचार नहीं है। यह 1945 से वैश्विक शासन में सह-अस्तित्व में रहा है।
      • यह प्रमुख वैश्विक शक्तियों के बीच छद्म रूप से अपनाया गया और बाद में बहुपक्षीय संस्थानों के गठन का कारण बना।
      • उदाहरण के लिए, GATT की शुरुआत प्रमुख शक्तियों के बीच मिनीलेटरल वार्ता के रूप में हुई थी, जिसे बाद में अन्य देशों को जोड़कर बहुपक्षीय बनाया गया।

लघुपक्षवाद और बहुपक्षवाद के बीच तुलना

पैरामीटर

लघुपक्षवाद

बहुपक्षवाद

शामिल पक्षकार 

  • कम पक्षकार या देश, आमतौर पर 3 या 4
  • अनेक देशों के बीच सहयोग

औपचारिकता

  • तदर्थ या अस्थायी व्यवस्था, स्वैच्छिक परिणाम और प्रतिबद्धताएं
  • औपचारिक, संस्थागत तथा नियमों और मानदंडों का पालन

लक्ष्य

  • किसी विशिष्ट खतरे, आपात स्थिति या सुरक्षा संबंधी मुद्दे से निपटने के लिए पहल
  • व्यापक वैश्विक मुद्दों से निपटना

सहभागिता का स्तर

  • केवल महत्वपूर्ण सदस्यों को शामिल करना
  • व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण

उदाहरण

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) जो कि एशिया-प्रशांत देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। यह एक लघुपक्षीय फ्रेमवर्क का सटीक उदाहरण है।
  • अन्य: संयुक्त अरब अमीरात, भारत और फ्रांस के बीच त्रिपक्षीय फ्रेमवर्क, क्वाड आदि।

 

  • WTO अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विनियमन के लिए एक बहुपक्षीय फ्रेमवर्क है।
  • अन्य: संयुक्त राष्ट्र और इसकी एजेंसियां, विश्व बैंक, IMF, आदि।

 

लघुपक्षवाद की ओर झुकाव के लिए उत्तरदायी कारक

  • बढ़ती बहुध्रुवीयता: शक्ति के कई केंद्रों के उद्भव (जैसे- चीन और रूस का उभार) ने संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में स्थापित बहुपक्षीय संस्थानों को चुनौती दी है।
  • रणनीतिक गठबंधन बनाम वैश्विक सहयोग: रणनीतिक गठबंधन समान विचारधारा वाले देशों के बीच विशेष मुद्दों पर साझेदारी स्थापित करने में सहायता प्रदान करते हैं।
    • उदाहरण के लिए, क्वाड, भारत-जापान-अमेरिका त्रिपक्षीय समझौता, आदि इंडो-पैसिफिक जैसे क्षेत्रों में डिफेंस एवं सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
  • आसान विनियमन: बेसल समिति और वित्तीय स्थिरता बोर्ड जैसे लघुपक्षीय (Minilateral) संस्थानों में उपयोग किए जाने वाले अनौपचारिक तंत्र बॉटम अप अप्रोच, लचीलेपन और सरल नियमों जैसे लाभ प्रदान करते हैं।
  • निर्णय निर्माण: औपचारिक संस्थागत संरचना, अंतर्राष्ट्रीय नौकरशाही और विषम विचारधारा वाले सदस्यों ये युक्त बड़े संगठन अक्सर निर्णय लेने में देरी करते हैं। 
    • लघुपक्षीय प्रणाली के त्वरित और अनुकूलनीय दृष्टिकोण ने "भविष्य के लिए साझेदारी" को तेजी से विकसित किया है, जिसने I2U2 (भारत, इजराइल, UAE, अमेरिका) बनाने में मदद की।
  • सुधारों में ठहराव: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता वर्तमान वैश्विक वास्तविकताओं को प्रदर्शित नहीं करती है, WTO के दोहा दौर में उत्पन्न गतिरोध पर भी सहमति नहीं बन पाई है आदि। 
  • बहुपक्षवाद की कथित विफलता: हाल में यह देखा गया है कि कई बहुपक्षीय संस्थाएं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने में विफल रही हैं।
    • हाल ही में संपन्न UNFCCC के CoP-29 में जलवायु वित्त और जलवायु न्याय के मुद्दा चर्चा का विषय रहा।

लघुपक्षवाद और बहुपक्षवाद के सह-अस्तित्व की आवश्यकता क्यों है?

  • लघुपक्षवाद से ही आगे बहुपक्षवाद का उदय होना: यह मौजूदा बहुपक्षवाद को अवैध ठहराए बिना उसकी कमियों को दूर कर सकता है। 
    • उदाहरण के लिए, लघुपक्षवाद की शक्ति समय पर ठोस परिणाम प्राप्त करने की क्षमता में निहित है। इस कारण से यह बहुपक्षीय स्तर पर संवाद को क्रियान्वित करने में उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर सकती है।
  • वार्ताओं को सुगम बनाना: लघुपक्षवाद प्रमुख भागीदारों के बीच राजनीतिक संवाद का आधार तैयार करती है और प्रमुख भागीदारों के बीच विश्वास निर्माण को बढ़ावा देती है। इसलिए प्रमुख मुद्दों को बहुपक्षीय मंचों पर उठाए जाने से पहले, यहाँ पर उठाया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ (EU) और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN) जैसे क्षेत्रीय समूह पहले अनौपचारिक सहमति बना सकते हैं, जिससे औपचारिक सहमति की संभावना काफी बढ़ जाती है।
  • बहुपक्षीय वार्ताओं की गति तेज करना:
    • उदाहरण के लिए, 2015 की पेरिस वार्ताओं को तब महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला जब विश्व के अग्रणी दो उत्सर्जक देशों अमेरिका और चीन ने उत्सर्जन में कमी के समझौते को अंतिम रूप दिया। 
  • कमियों या अंतराल को कम करना: बहुपक्षीय संस्थाओं में लंबे समय से सुधार की मांग उठ रही है, जबकि लघुपक्षीय संस्थाएं शक्ति असंतुलन से प्रभावित हो सकती हैं और कई परस्पर विरोधी समझौतों को जन्म दे सकती हैं।
    • समाधान: लघुपक्षीय और बहुपक्षीय संस्थाओं के बीच समन्वय स्थापित कर इन चुनौतियों को दूर किया जा सकता है।
  • वैश्विक चुनौतियों से निपटना: जलवायु परिवर्तन एवं आतंकवाद जैसी समस्याओं का समाधान करने के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर बेहतर सहयोग स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • नियम-आधारित फ्रेमवर्क: बहुपक्षीय संगठन कानूनी रूप से बाध्यकारी संधियों पर आम सहमति प्रदान करने में मदद करते हैं, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea: UNCLOS)। साथ ही, बहुपक्षीय संगठन लघुपक्षीय समूहों के बीच सहयोग के लिए एक नियम-आधारित फ्रेमवर्क प्रदान करती है।

निष्कर्ष 

हालांकि, लघुपक्षवाद (मिनिलेटरिज्म) पूरी तरह से बहुपक्षवाद का विकल्प नहीं बन सकता, लेकिन यह कूटनीति, विश्वास निर्माण और सहयोग के लिए एक प्रभावी मंच प्रदान कर सकता है। साथ ही, यह बहुपक्षीय संगठनों के कार्यान्वयन में सहायक भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के लिए, जलवायु कार्रवाई के संदर्भ में, लघुपक्षीय मंच ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए नवोन्मेषी समाधान विकसित करने के साथ-साथ उप-राष्ट्रीय और गैर-सरकारी अभिकर्ताओं के साथ संवाद के लिए एक समावेशी मंच उपलब्ध करा सकते हैं।

 

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