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भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था (INDIA'S DIGITAL ECONOMY)

05 Mar 2025
33 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने "भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था का आकलन और माप (Estimation and Measurement of India's Digital Economy)" शीर्षक से एक व्यापक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है।

'अध्ययन रिपोर्ट' के बारे में

  • यह अध्ययन  'भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (Indian Council for Research on International Economic Relations: ICRIER)' द्वारा किया गया है।
  • यह अध्ययन आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) एवं एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा विकसित एक फ्रेमवर्क पर आधारित है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया जाता है।
    • भारत विकासशील देशों में पहला देश होगा जिसने अपनी डिजिटल अर्थव्यवस्था के आकार का अनुमान लगाने के लिए OECD फ्रेमवर्क का उपयोग किया है।
    • यह अध्ययन OECD की एप्रोच से एक कदम आगे बढ़कर पारंपरिक उद्योगों जैसे- व्यापार; बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा (BFSI); और शिक्षा में डिजिटल योगदान को भी शामिल करता है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था क्या है?

  • इसमें आमतौर पर सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and communication technology: ICT) क्षेत्रक को शामिल किया जाता है। इसमें दूरसंचार, इंटरनेट, ICT सेवाएं, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर शामिल होते हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, इसका क्षेत्र काफी व्यापक है और इसमें न केवल ICT क्षेत्रक बल्कि पारंपरिक क्षेत्रकों के वे घटक भी शामिल हैं, जो डिजिटल तकनीक के साथ एकीकृत हो चुके हैं।

डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़े लाभ/ महत्त्व

  • निर्यात में वृद्धि: भारत विश्व में ICT सेवाओं का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। पहला स्थान आयरलैंड (2023) का है।
  • सेवा प्रदायगी में सुधार: उदाहरण के लिए, e-Hospital और e-Sanjeevani (राष्ट्रीय टेलीमेडिसिन सेवा) जैसी पहलों ने स्वास्थ्य-देखभाल सुविधाओं को अधिक सुलभ बनाया है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि और सुगम तरीके से व्यवसाय करने को प्रोत्साहन: उदाहरण के लिए, GST फाइलिंग की ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध है। इससे टैक्स फाइलिंग में लगने वाला समय कम हुआ है और व्यापारिक माहौल में स्थिरता सुनिश्चित हुई है।
  • स्टार्ट-अप और इनोवेशन को बढ़ावा:
    • भारत यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप्स की संख्या के मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर (2024) है।
    • भारत में दुनिया के 55% से अधिक ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) स्थित हैं।
  • असमानता को कम करना/ ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना: उदाहरण के लिए, नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट (e-NAM) एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है। यह प्रतिस्पर्धी ऑनलाइन बोली प्रणाली के माध्यम से किसानों को उनकी उपज का पारदर्शी तरीके से मूल्य दिलाने में मदद करता है।
  • अन्य लाभ:
    • यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देकर लोगों को सशक्त बनाती है।
    • पर्यावरणीय संधारणीयता को बढ़ावा देती है (जैसे e-Tickets के जरिए कागज के उपयोग को कम करना)।

डिजिटल अर्थव्यवस्था से जुड़ी प्रमुख पहलें/ प्रेरक तत्व

  • डिजिटल अवसंरचना विकास: उदाहरण के लिए, डिजिटल इंडिया मिशन (2015) और भारतनेट (राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क - NOFN) जैसी पहलें।
  • डिजिटल पहचान और समावेशन: उदाहरण के लिए, आधार (विशिष्ट पहचान संख्या) जैसी योजनाएं।
  • डिजिटल साक्षरता: उदाहरण के लिए, प्रधान मंत्री ग्रामीण डिजिटल साक्षरता अभियान (PMGDISHA), जिसे केवल ग्रामीण क्षेत्रों में चलाया जा रहा है।
  • डिजिटल भुगतान प्रणाली और वित्तीय सेवाएं: उदाहरण के लिए, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), भीम ऐप, भारत QR, रुपे, e-RUPI और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) जैसी डिजिटल भुगतान प्रणालियां शुरू की गई हैं।
  • ई-गवर्नेंस और डिजिटल सेवाएं: उदाहरण के लिए, UMANG (यूनीफाइड मोबाइल एप्लिकेशन फॉर न्यू-एज गवर्नेंस) ऐप के माध्यम से नागरिक सेवाओं को डिजिटल फॉर्मेट में  उपलब्ध कराया जा रहा है।
  • साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण: उदाहरण के लिए, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (Indian Cyber-crime Coordination Centre: I4C) और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDP अधिनियम 2023)
  • अन्य प्रमुख पहलें:
    • इंडिया स्टैक: यह डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPIs) का एक सेट है। यह सार्वजनिक (सरकारी) सेवाओं की प्राप्ति को आसान बनाता है।
    • भाषिणी/ BHASHINI (भाषा इंटरफेस फॉर इंडिया): यह प्लेटफॉर्म भारत की अलग-अलग भाषाओं में सभी को डिजिटल कंटेंट और सेवाएं स्वतंत्र रूप से उपलब्ध करा रहा है।
    • ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC): यह प्लेटफॉर्म बिना किसी भेदभाव के सभी हितधारकों को डिजिटल कॉमर्स से जोड़ रहा है।
    • स्टार्ट-अप इंडिया, आदि।

डिजिटल अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूद प्रमुख चुनौतियां

  • सभी के लिए स्वीकृत परिभाषा का अभाव: डिजिटल तकनीक के एक-दूसरे से जुड़े और एकीकृत होने के कारण, डिजिटल अर्थव्यवस्था की सटीक परिभाषा निर्धारित करना कठिन हो जाता है।
  • विश्वसनीय डेटा की कमी: उपयुक्त और विस्तृत डेटा नहीं होने से डिजिटल अर्थव्यवस्था के सही आकार का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • साइबर हमले और साइबर अपराध: उदाहरण: डिजिटल अरेस्ट और साइबर स्लेवरी जैसी नई चुनौतियां उभरकर आई हैं।
  • निजता का हनन और इससे जुड़ी चिंताएं: उदाहरण के लिए, व्यक्तिगत डेटा का दुरुपयोग, दुष्प्रचार, डिजिटल मोनोपोली जैसी कई अन्य चिंताएं मौजूद हैं।
  • डिजिटल साक्षरता की कमी: NSSO के मल्टीपल इंडिकेटर सर्वे 2023 के अनुसार, 15-29 वर्ष के 70% भारतीय युवा ई-मेल के साथ फाइल अटैच नहीं कर पाते हैं, और लगभग 60% लोग फाइल या फोल्डर को कॉपी-पेस्ट नहीं कर पाते हैं।
  • अन्य चुनौतियां:
    • भारत में सेमीकंडक्टर्स  के विनिर्माण की वृद्धि दर धीमी है और मोबाइल फोन विनिर्माण में देश में कम घटक जोड़े जाते हैं (कम मूल्य संवर्धन)
    • टेलीकॉम सेक्टर में प्रतिस्पर्धात्मक विकास की कमी है, आदि।

आगे की राह

  • विश्वसनीय डेटा संग्रह:
    • यह डिजिटल अर्थव्यवस्था के नियमित अपडेट और विस्तृत अनुमान तैयार करने के लिए जरूरी है।
    • डिजिटल अर्थव्यवस्था के आकार के बजाय इसके प्रभाव का आकलन करना चाहिए; इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को डिजिटलीकरण से होने वाले उत्पादकता संबंधी लाभों के आकलन के लिए अलग से अध्ययन कराना चाहिए।
  • डिजिटल साक्षरता और कौशल को बढ़ावा देना: स्कूली पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता को शामिल करने की आवश्यकता है।
  • नियमों में अनिश्चितता को कम करना: क्रिप्टोकरेंसी, जनरेटिव AI जैसी नई तकनीकों पर स्पष्ट नियम बनाए जाने चाहिए तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के संचालन में मौजूद बाधाओं को दूर करना चाहिए।
  • सभी को सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध कराना: मजबूत फिक्स्ड-लाइन ब्रॉडबैंड नेटवर्क विकसित करना चाहिए, जो मोबाइल नेटवर्क में सुधार करे।
  • साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना और डिजिटल माध्यमों पर भरोसा बढ़ाना: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के माध्यम से साइबर अपराधों की पहचान और इसके रोकथाम के लिए उपाय करना चाहिए।
  • व्यवसाय करना आसान बनाना: व्यवसाय करने से जुड़े कानूनों की समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है, इनमे श्रम कानूनों की समीक्षा भी शामिल है। इससे श्रम अधिकारों और नियमों के पालन की लागत के बीच संतुलन स्थापित हो सकेगा। 
    • उदाहरण के लिए, ICT क्षेत्रक में कार्य-घंटों को बढ़ाने पर विचार करना।
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