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जलवायु वार्ताओं में संस्थाओं की भूमिका (ROLE OF INSTITUTIONS IN CLIMATE NEGOTIATIONS)

05 Mar 2025
20 min

सुर्ख़ियों में क्यों?

हाल ही में, अजरबैजान के बाकू में आयोजित UNFCCC के CoP29 में जलवायु वित्त को लेकर विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद उभरकर सामने आए। इस दौरान, वैश्विक साझा चुनौतियों के समाधान में बहुपक्षीय संस्थाओं की प्रभावशीलता पर भी सवाल उठाए गए।

जलवायु वार्ता को आगे बढ़ाने में संस्थाओं की भूमिका

  • वैधता और विश्वसनीयता: बहुपक्षीय संस्थाएं सुनियोजित फ्रेमवर्क, लगभग सभी देशों की सदस्यता, विश्वास-निर्माण उपायों और बाध्यकारी दायित्वों के जरिए जलवायु वार्ता को वैधता प्रदान करती हैं।
  • विश्वास का निर्माण: बेहतर तरीके से डिजाइन किए गए संस्थागत ढांचे पारदर्शिता, सुनियोजित वार्ता और वैचारिक संतुलन के माध्यम से राष्ट्रों के बीच विश्वास को बढ़ावा देती हैं।
  • पर्यावरणीय अपराधों का समाधान करना: संस्थाएं ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान देने वाले पर्यावरणीय अपराधों, जैसे- वनों की अवैध कटाई, अनियमित तरीके से कोयला जलाना, जैव संसाधनों का अनियंत्रित दोहन, आदि पर अंकुश लगाने में मदद कर सकती हैं।
  • ग्लोबल साउथ में जलवायु परिवर्तन शमन कार्यवाइयों का समर्थन करना: संस्थाएं अपने नियमों, औपचारिक या अनौपचारिक प्रक्रियाओं के माध्यम से ग्लोबल साउथ में जलवायु परिवर्तन शमन संबंधी कार्यवाइयों को लागू करने, बनाए रखने और इसे बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए लचीलापन: इसे अत्यधिक कठोर मानकों से बचते हुए, कार्यान्वयन में विवेकाधिकार प्रदान करके और घरेलू हितों को प्रोत्साहित करके हासिल किया जाता है।
  • जलवायु न्याय को बढ़ावा देना: ये संस्थाएं सुभेद्य और छोटे द्वीपीय विकासशील देशों को अपना पक्ष या शिकायतें सामने रखने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं।

बहुपक्षीय जलवायु वार्ता के संदर्भ में मौजूद चुनौतियां

  • UNFCCC की सीमाएं: पेरिस समझौते और इसकी नियम पुस्तिका के तहत, सभी देश अब जलवायु प्रभावों को कम करने, अनुकूलन करने और उनकी लागत का भुगतान करने के लिए स्वयं ही उत्तरदायी हैं। इससे UNFCCC केवल सूचना एकत्र करने, समन्वय करने और प्रसारित करने का एक मंच मात्र बनकर रह गया है।
  • जलवायु न्याय का अनसुलझा मुद्दा: UNFCCC, जलवायु वित्त पर विकसित देशों से विकासशील देशों को भरोसेमंद वित्तीय आश्वासन प्रदान करने में असमर्थ रहा है।
  • जलवायु परिवर्तन की समस्या को मान्यता न देना: बड़े पैमाने पर उत्सर्जन के लिए ऐतिहासिक रूप से उत्तरदायी अमेरिका जैसे प्रमुख देश जलवायु परिवर्तन की समस्याओं को मान्यता नहीं देते हैं। यह तथ्य हाल ही में पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने से स्पष्ट होता है।
  • बढ़ता उत्सर्जन: क्योटो प्रोटोकॉल, कानकुन और पेरिस जैसे महत्वपूर्ण समझौतों के बावजूद, UNFCCC के परिणाम सीमित रहे हैं, जबकि उत्सर्जन स्तर बढ़ गए हैं।

जलवायु वार्ता के लिए प्रभावी संस्थागत ढांचे को बढ़ावा देने की दिशा में आगे की राह

  • लघुपक्षवाद की भूमिका: एक बहुकेन्द्रित एवं बहुस्तरीय शासन प्रणाली का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें छोटे व हित-आधारित गठबंधन शामिल हों। यह बड़ी बहुपक्षीय वार्ताओं की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकती है।
  • उदाहरण: क्लाइमेट वल्नरेबल फोरम (CVF) और G20 क्लाइमेट एंड एनर्जी फ्रेमवर्क।
  • समावेशी बहुपक्षवाद: जलवायु संस्थाओं में युवाओं, महिलाओं, स्वदेशी समुदायों एवं नागरिक समाज सहित विविध हितधारकों को शामिल करना चाहिए। ऐसा करके जलवायु कार्रवाई के लिए बॉटम-अप दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • ज्ञान से संबंधित संस्थान को बढ़ावा देना: जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जैसे संगठन बेहतर निर्णय लेने के लिए नीतिगत ढांचे में वैज्ञानिक अनुसंधान को एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मूल्य-आधारित सहयोग को बढ़ावा देना: निष्पक्ष और प्रभावी जलवायु नीतियों को सुनिश्चित करने के लिए संस्थाओं को समानता, पारदर्शिता, समावेशिता और गैर-भेदभाव जैसे आधारभूत मूल्यों को बनाए रखना चाहिए।
  • जलवायु वित्त तंत्र को मजबूत करना: जलवायु वित्त हेतु एक स्पष्ट और प्रवर्तनीय ढांचा आवश्यक है, जिसमें विश्वास का निर्माण और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए, हानि और क्षति मुआवजा अवश्य शामिल हो।

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