रुपये का मूल्यह्रास (RUPEE DEPRECIATION) | Current Affairs | Vision IAS
मेनू
होम

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के लिए प्रासंगिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास पर समय-समय पर तैयार किए गए लेख और अपडेट।

त्वरित लिंक

High-quality MCQs and Mains Answer Writing to sharpen skills and reinforce learning every day.

महत्वपूर्ण यूपीएससी विषयों पर डीप डाइव, मास्टर क्लासेस आदि जैसी पहलों के तहत व्याख्यात्मक और विषयगत अवधारणा-निर्माण वीडियो देखें।

करंट अफेयर्स कार्यक्रम

यूपीएससी की तैयारी के लिए हमारे सभी प्रमुख, आधार और उन्नत पाठ्यक्रमों का एक व्यापक अवलोकन।

ESC

रुपये का मूल्यह्रास (RUPEE DEPRECIATION)

05 Mar 2025
24 min

सुर्ख़ियों में क्यों? 

हाल ही में, भारतीय रुपये की विनिमय दर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 85 के स्तर को पार कर गई। इसका मतलब है कि एक डॉलर के लिए 85 रुपये का भुगतान करना पड़ रहा है। पिछले दो वर्षों में रुपये का सबसे तेजी से मूल्यह्रास हुआ है।

रुपये का मूल्यह्रास क्या है?

  • यह अमेरिकी डॉलर (USD) या अन्य प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के सापेक्ष भारतीय रुपये (INR) के मूल्य में होने वाली गिरावट है।
  • विनिमय दर: यह किसी एक मुद्रा की कीमत को दूसरी मुद्रा के संदर्भ में व्यक्त करती है।

नोट: वर्तमान में, भारत फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट का पालन करता है। इसके तहत आवश्यक होने पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) कभी-कभी हस्तक्षेप करता है।

रुपये के मूल्यह्रास के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक

  • केंद्रीय बैंक में विश्वास: वर्तमान मुद्रा संकट आमतौर पर बाजार की ओर से उत्पन्न हुआ है। बाजार केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट में जोखिम का आकलन करते हुए मुद्रा का मूल्य निर्धारित करते हैं, जिससे निवेशकों का विश्वास प्रभावित हो सकता है।
  • तरलता की कमी: यह तब उत्पन्न होती है जब अल्पावधिक विदेशी-मुद्रा ऋण, तरल विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों से अधिक हो जाता है।
  • मुद्रास्फीति: अपने व्यापारिक साझेदारों की तुलना में भारत में उच्च मुद्रास्फीति दर भारतीय रुपये की क्रय शक्ति को कमजोर कर देती है और विनिमय दर को प्रभावित करती है।
  • मौद्रिक नीति: RBI की ब्याज दर से जुड़ी नीतियां और विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप रुपये के मूल्य को प्रभावित करते हैं।
  • RBI द्वारा अमेरिकी डॉलर की खरीदारी (विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखने आदि के लिए) भी रुपये के विनिमय दर को प्रभावित करती है।
  • पूंजी का बहिर्गमन: विदेशी निवेशकों के भारतीय बाजार से पूंजी निकालने से विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है, जिससे रुपये का मूल्यह्रास होता है।
    • हाल ही में रुपये के मूल्य में गिरावट का एक बड़ा कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का बहिर्गमन है।
  • व्यापार घाटा: जब आयात मूल्य, निर्यात से अधिक हो जाता है, तो विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है, जिससे रुपया कमजोर होता है।
    • भारत की पेट्रोलियम उत्पादों और सोने के आयात पर अत्यधिक निर्भता डॉलर की मांग को बढ़ाता है और रुपये के मूल्यह्रास में योगदान देता है।
  • वैश्विक आर्थिक कारक: कच्चे तेल की ऊंची कीमतें, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में वृद्धि, या वैश्विक आर्थिक मंदी जैसे कारक भी रुपये के मूल्यह्रास में  योगदान देते हैं।

रुपये के मूल्यह्रास का प्रभाव

            सकारात्मक नकारात्मक 
  • निर्यात को बढ़ावा: डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कम होने से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारतीय वस्तुएं और सेवाएं सस्ती हो जाती हैं।
    • IT और फार्मास्यूटिकल्स जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्रकों को लाभ हो सकता है।
  • उच्च विप्रेषण (रेमिटेंस) धनराशि मिलना: अनिवासी भारतीयों (NRIs) द्वारा भेजे गए डॉलर के बदले देश में अधिक भारतीय रुपया प्राप्त होता है, जिससे उनके परिवारों को अधिक फायदा होता है।
  • पूंजी और निवेश पर प्रभाव: रुपये के मूल्यह्रास के कारण निर्यात में वृद्धि होती है जिससे देश में घरेलू निवेश को बढ़ावा मिल सकता है।
  • उच्च आयात लागत: रुपये का मूल्यह्रास  आयात को और अधिक महंगा बना देता है, खासकर कच्चे तेल के मामले में। इससे व्यापार घाटा और भी बढ़ जाता है। 
  • उच्च मुद्रास्फीति: जो उद्योग आयात पर निर्भर होते हैं, उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
  • पूंजी और निवेश पर प्रभाव: रुपये का मूल्यह्रास भारत से पूंजी की निकासी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में गिरावट का कारण बन सकता है।
  • अन्य: विदेशी कर्ज का भुगतान महंगा हो जाता है, उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति घट जाती है, जिससे उपभोक्ता व्यय  प्रभावित होती है।

 

आगे की राह

  • अल्पकालिक उपाय:
    • RBI बाजार में डॉलर बेच सकता है। 
    • भारत अन्य देशों के साथ करेंसी स्वैप समझौते कर सकता है। 
    • विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए मौद्रिक नीति में बदलाव किए जा सकते हैं।
    • गैर-जरूरी आयात को प्रतिबंधित करने के लिए आयात नीति में बदलाव किए जा सकते हैं, आदि।
  • दीर्घकालिक उपाय:
    • व्यापार के भुगतान में विविधता लाना: आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, रुपये के अधिमूल्यन या मूल्य-वृद्धि के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि करनी होगी और व्यापार भुगतान के अन्य विकल्पों को अपनाना चाहिए (उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारतीय रुपये का उपयोग करना)।
    • निर्यात को प्रोत्साहन: भुगतान संतुलन पर रंगराजन समिति (1993) की रिपोर्ट के अनुसार, निर्यात को प्रोत्साहन देने से चालू खाता घाटा कम हो सकता है और रुपये के मूल्य में स्थिरता सुनिश्चित होगी।  
      • मुक्त व्यापार समझौतों के सफल क्रियान्वयन, वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिए इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार, जैसे उपायों से भारत से निर्यात को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
    • अन्य उपाय: इनमें शामिल हैं:  
      • राजकोषीय विवेकशीलता (Fiscal Prudence) अपनाना, 
      • मुद्रास्फीति को कम करना,
      • पेट्रोलियम-प्राकृतिक गैस के आयात पर निर्भरता को कम करना, आदि।
Title is required. Maximum 500 characters.

Search Notes

Filter Notes

Loading your notes...
Searching your notes...
Loading more notes...
You've reached the end of your notes

No notes yet

Create your first note to get started.

No notes found

Try adjusting your search criteria or clear the search.

Saving...
Saved

Please select a subject.

Referenced Articles

linked

No references added yet

Subscribe for Premium Features