सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में, राष्ट्रपति ने केरल में श्री नारायण गुरु के महासमाधि शताब्दी समारोह का उद्घाटन किया।
श्री नारायण गुरु के बारे में (1856–1928)

- जन्म स्थान: उनका जन्म चेम्पाझंति नामक स्थान पर हुआ था, जो वर्तमान तिरुवनंतपुरम (केरल) के पास है।
- वे एझवा समुदाय से थे, जो उस समय केरल के जाति-आधारित समाज में पिछड़ा और अस्पृश्य माना जाता था तथा सामाजिक अन्याय का शिकार था।
- मुख्य विवरण:
- वह एक संत, दार्शनिक, कवि, आध्यात्मिक नेता और समाज सुधारक थे। उन्होंने तत्कालीन जाति व्यवस्था का विरोध किया।
- वह अपने अनुयायियों के बीच आमतौर पर गुरुदेवन के नाम से जाने जाते थे।
प्रमुख योगदान
- शिक्षाएँ और सिद्धांत:
- उन्होंने आत्म-शुद्धि, सादगी और सार्वभौमिक प्रेम पर बल दिया।
- उन्होंने सभी मनुष्यों के लिए "एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर" के सिद्धांत का समर्थन किया।
- उनका मानना था कि वास्तविक मुक्ति अंधविश्वास से नहीं बल्कि ज्ञान और करुणा से आती है।
- उन्होंने शिक्षा को मानव प्रगति और समृद्धि का एकमात्र साधन माना और कहा कि शिक्षा ही अंधविश्वास, भेदभाव और सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन का सर्वोत्तम साधन है।
- उन्होंने महिलाओं के लिए समान अवसर का समर्थन किया और केरल में जगह-जगह स्कूलों की स्थापना की।
- उन्होंने 1913 में आलूवा में अद्वैत आश्रम की स्थापना की।
- यह आश्रम "ओम सहोदरयं सर्वत्र" (ईश्वर की दृष्टि में सभी मनुष्य समान हैं) के सिद्धांत पर आधारित था।
- अन्य प्रमुख योगदान
- मंदिर में प्रवेश: उन्होंने मंदिर में प्रवेश के समान अधिकारों के लिए अरुविप्पुरम आंदोलन की शुरुआत की।
- 1888 में, श्री नारायण गुरु ने नेय्यार नदी में स्नान के लिए डुबकी लगाई और एक शिवलिंग साथ लेकर बाहर निकले।
- उन्होंने उस शिवलिंग प्रतिमा को एक अस्थायी मंदिर में स्थापित किया। ऐसा करके उन्होंने पूजा में जाति-आधारित भेदभाव की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ दिया।
- यह घटना वंचित समुदायों के सशक्तिकरण का प्रतीक बनी, जिसने उन्हें पूजा करने का समान अधिकार दिलाने में मदद की।
- मंदिर में प्रवेश: उन्होंने मंदिर में प्रवेश के समान अधिकारों के लिए अरुविप्पुरम आंदोलन की शुरुआत की।
- एझवा समुदाय: उन्होंने 1903 में एझवा समुदाय के उत्थान के लिए 'श्री नारायण धर्म परिपालन योगम' नामक संगठन की स्थापना की।
- यह आंदोलन आत्मनिर्णय की खोज में हिंदू धर्म की पुनर्व्याख्या के दृष्टिकोण पर आधारित था।
- यह नई विचारधारा आत्म-सम्मान, गरिमा और व्यक्ति के मूल्य के सिद्धांत पर आधारित थी।
- यह पदानुक्रम और दुर्व्यवहार की ब्राह्मणवादी मूल्य व्यवस्था के खिलाफ विरोध की विचारधारा थी।
- श्री नारायण गुरु ने नए संस्थानों जैसे मंदिरों के पुजारी, भिक्षु और मठों की स्थापना करके एक समानांतर धार्मिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास किया।
- वायकोम सत्याग्रह: उन्होंने त्रावणकोर में मंदिर प्रवेश के लिए चलाए जा रहे वायकोम सत्याग्रह (1924-25) का समर्थन किया।
- वायकोम सत्याग्रह मंदिर में प्रवेश हेतु एक ऐतिहासिक अहिंसक आंदोलन था। यह अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ त्रावणकोर (केरल क्षेत्र) की रियासत के एक शहर वायकोम में शुरू हुआ था।
- यह आंदोलन इसलिए हुआ क्योंकि निम्न जाति के हिंदुओं को वायकोम महादेव मंदिर में प्रवेश करने से वंचित रखा गया था।
- इस आंदोलन के प्रमुख नेता टी.के. माधवन, के.पी. केशव मेनन और के. केलप्पन ('केरल के गांधी') थे।
- रचनाएं: अनुकम्बा दसकम, ब्रह्मविद्या पंचकम, आश्रमम, भद्रकालियाष्टकम, आत्मोपदेश शतकम, अद्वैत दीपिका, दैव दसकम, आदि।
निष्कर्ष
श्री नारायण गुरु का जीवन और उनके उपदेश सामाजिक समानता, आध्यात्मिक ज्ञान और मानव गरिमा के प्रतीक हैं। अपने सुधारवादी आंदोलनों और मंदिर-प्रवेश की पहलों के माध्यम से, उन्होंने भयावह जातिगत भेदभावों को चुनौती दी और कई पीढ़ियों को न्याय तथा सद्भाव की ओर प्रेरित किया।