सुर्ख़ियों में क्यों?
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI), 2025 में भारत को 'गंभीर' श्रेणी में रखा गया है।
GHI के बारे में
- यह सूचकांक आयरिश मानवीय संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन सहायता एजेंसी वेल्टहंगरहिल्फ (FAO, यूनिसेफ, WHO, IFPRI के साथ) द्वारा जारी किया गया है।
- इस सूचकांक का उद्देश्य पोषण और मृत्यु दर संकेतकों का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर भुखमरी की निगरानी करना है।
- प्रत्येक देश का GHI स्कोर एक फॉर्मूले के आधार पर चार संकेतकों को मिलाकर निकाला जाता है (चित्र देखें):
- अल्पपोषण: अपर्याप्त कैलोरी का सेवन;
- बाल ठिगनापन: 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे जिनकी लंबाई उनकी आयु के अनुपात में कम है;
- बाल दुबलापन: 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे जिनका वजन उनकी आयु के अनुपात में कम है;
- बाल मृत्यु दर: ऐसे बच्चे जिनकी मृत्यु उनके पांचवें जन्मदिन से पहले हो जाती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- भारत से संबंधित निष्कर्ष:
- भारत की स्थिति: GHI स्कोर 25.8 के साथ 123 देशों में भारत को 102वाँ स्थान मिला है, जिसे 'गंभीर' (serious) श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है।
- बाल पोषण संकट: 3 में से 1 भारतीय बच्चा बाल ठिगनेपन का शिकार है। 172 मिलियन लोग अल्पपोषण से प्रभावित है, जो 2016 की तुलना में 13.5 मिलियन अधिक है।
- वैश्विक निष्कर्ष:
- शून्य भुखमरी प्राप्त करना: वर्तमान प्रगति के आधार पर, SDG-2 यानी 2030 तक शून्य भुखमरी प्राप्त करना संभव नहीं लग रहा है। लगभग 56 देश 2030 तक कम भुखमरी का स्तर भी प्राप्त करने की राह पर नहीं हैं।
- वैश्विक स्थिति: 2025 का वैश्विक GHI स्कोर 18.3 (मध्यम श्रेणी) है, जो 2016 के 19.0 की तुलना में केवल मामूली सुधार प्रदर्शित करता है।
- क्षेत्रीय असमानताएं: अफ्रीका, दक्षिण एशिया में गंभीर भुखमरी है। दक्षिण सूडान, DRC तथा सोमालिया (सबसे खराब) जैसे 7 देशों में चिंताजनक भुखमरी है।
- बढ़ती भुखमरी के कारक:
- वैश्विक स्तर पर: सशस्त्र संघर्ष, जलवायु संबंधी आघात, आर्थिक भेद्यता और घटती राजनीतिक तथा वित्तीय प्रतिबद्धता।
- भारत में: कई पीढ़ियों से चलता आ रहा भुखमरी का चक्र, खराब मातृ पोषण, और बाल स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुंच, लंबे समय से चली आ रही कुपोषण की स्थिति, गरीबी और असमानता।
भुखमरी के परिणाम
- उच्च बाल मृत्यु दर: अल्पपोषण पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में होने वाली 45% मौतों के लिए जिम्मेदार है।
- कम उत्पादकता: भुखमरी शारीरिक क्षमता और संज्ञानात्मक दक्षता को कम करती है। इससे कार्यबल की उत्पादकता और राष्ट्रीय आर्थिक संवृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ता है।
- बढ़ता स्वास्थ्य सेवा बोझ: कुपोषण से बीमारियों की संभावना बढ़ती है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर दबाव पड़ता है। साथ ही, रोकथाम योग्य बीमारियों पर स्वास्थ्य व्यय बढ़ता है।
- अन्य परिणाम: शिक्षा में कमजोर प्रदर्शन, पर्याप्त भोजन के मानवाधिकार का उल्लंघन, अकाल और आपदा तथा गहरी होती असमानताएँ आदि।
भारत में भुखमरी से निपटने के लिए की गई पहलें
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आगे की राह
- राजनीतिक प्रतिबद्धता और सुशासन सुनिश्चित करना: खाद्य सुरक्षा को दान के रूप में नहीं, बल्कि एक अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। योजनाओं के सही कार्यान्वयन हेतु जवाबदेही, समन्वय और पारदर्शी निगरानी को मजबूत करना चाहिए।
- वित्त-पोषण में वृद्धि करना और उसमें विविधता लाना: हाल में हुए फंडिंग कटौती के फैसले को वापस लिया जाना चाहिए। आवश्यकता के अनुसार वित्त-पोषण सुनिश्चित किया जाना चाहिए और परिणाम-आधारित तंत्रों के माध्यम से इसे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।
- जरूरत के अनुरूप और समावेशी खाद्य प्रणालियाँ तैयार करना:
- जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देना चाहिए,
- पारिस्थितिकी तंत्रों की पुनर्बहाली पर ध्यान देना चाहिए,
- भूमि और जल अधिकार सुरक्षित किए जाए,
- लघु किसानों और महिलाओं को सशक्त बनाया जाना चाहिए, और
- पोषण को कृषि के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
- बहुक्षेत्रीय, स्थानीय लोगों के नेतृत्व वाली रणनीतियाँ अपनाना: भुखमरी में कमी को स्वास्थ्य, शिक्षा, WASH (जल, स्वच्छता और हाइजीन) और सामाजिक सुरक्षा से जोड़ना चाहिए। समाधान तैयार करने के लिए स्थानीय सरकारों और समुदायों को सशक्त बनाया जाना चाहिए।
- शून्य भुखमरी के लिए अन्य तरीके:
- सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत करना,
- किसानों को बाज़ारों से जोड़ना,
- भोजन की हानि को कम करना, और
- मातृ-शिशु कुपोषण को रोकना।
निष्कर्ष
भुखमरी केवल भोजन की कमी नहीं है, बल्कि यह गरीबी, संघर्ष, जलवायु आघात और नीतिगत कमियों का परिणाम है। इसका समाधान करने हेतु जरूरत के अनुरूप खाद्य प्रणालियाँ, लक्षित पोषण समर्थन, सशक्त समुदाय, और सभी के लिए भोजन का अधिकार सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक सहयोग की आवश्यकता है।