भारत और चीन के नेताओं की यह महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक संयुक्त राज्य अमेरिका की टैरिफ नीतियों को लेकर बढ़ते वैश्विक तनाव के बीच आयोजित हुई है। इस तरह यह बैठक, भारत-चीन संबंधों को सुधारने और स्थिर करने की दिशा में नई प्रतिबद्धता का संकेत देती है।
- हालांकि, अभी भी भारत और चीन के बीच कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करते हैं; जैसे:
- अनसुलझे सीमा विवाद,
- भारत का चीन के साथ अधिक व्यापार घाटा,
- चीन-पाकिस्तान गठजोड़,
- हिंद महासागर क्षेत्र में ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ के तहत चीन की घेराबंदी की नीति आदि।
भारत-चीन द्विपक्षीय बैठक के प्रमुख परिणाम
- साझेदारी और स्थिरता: दोनों नेताओं ने फिर से इस बात की पुष्टि की है कि ‘भारत और चीन विकास के साझेदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं।’ उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि ‘मतभेद विवाद में नहीं बदलने चाहिए।’
- एक-दूसरे के सम्मान, हित और संवेदनशीलता का ध्यान रखने पर आधारित स्थिर संबंध दोनों देशों की प्रगति तथा ‘बहुध्रुवीय विश्व एवं एशिया’ के लिए महत्वपूर्ण माने गए।
- सीमा पर शांति और विवाद समाधान: दोनों नेताओं ने सीमा विवाद के निष्पक्ष, उचित और एक-दूसरे को स्वीकार्य समाधान के प्रति प्रतिबद्धता जताई। यह प्रतिबद्धता दोनों देशों के समग्र द्विपक्षीय संबंधों और उनकी जनता के दीर्घकालिक हितों से निर्देशित होगी।
- दोनों देशों की जनता के बीच संबंधों (P2P) को मजबूती: सीधी उड़ानों एवं वीज़ा सुविधा के माध्यम से P2P संबंधों को और बढ़ाने की आवश्यकता को स्वीकार किया गया। ये घोषणाएं कैलाश मानसरोवर यात्रा और पर्यटक वीज़ा की बहाली की अगली कड़ियां हैं।
- आर्थिक और व्यापारिक संबंध: द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों के विस्तार तथा व्यापार घाटे को कम करने के लिए राजनीतिक एवं रणनीतिक एप्रोच अपनाने पर बल दिया गया।
निष्कर्ष
प्रतिद्वंद्विता के ऊपर साझेदारी को प्राथमिकता देना, सीमा तनाव कम होने पर संतोष जताना, सीमा विवाद समाधान के प्रति प्रतिबद्धता प्रकट करना तथा SCO और ब्रिक्स जैसे बहुपक्षीय मंचों के प्रति दोनों देशों का समर्थन जैसे उपाय वास्तव में भारत-चीन संबंधों को पुनः संतुलित एवं मजबूत करने की साझा रणनीति के परिचायक हैं।