दादाभाई नौरोजी एक भारतीय पारसी विद्वान, व्यापारी और राजनीतिज्ञ थे। उन्हें "ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” और "ऑफिसियल एम्बेसडर ऑफ इंडिया" के नाम से भी जाना जाता है।
- वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और तीन बार अध्यक्ष (1886, 1893 और 1906) रहे थे।
दादाभाई नौरोजी के प्रमुख योगदान (1825–1917)
सामाजिक सुधार
- महिला शिक्षा को बढ़ावा: उन्होंने 1848 में लिटरेरी एंड साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की थी। इस संस्था ने 1849 तक बालिकाओं के लिए 6 स्कूल स्थापित किए थे।
- सुधारवादी विचारों का प्रसार: उन्होंने रास्त गोफ्तार समाचार-पत्र की शुरुआत की थी। पारसी समाज में सुधार के लिए रहनुमाई मज़दायासन सभा (1851) की सह-स्थापना की थी।
आर्थिक योगदान
- धन के बहिर्गमन का सिद्धांत: उन्होंने ही सबसे पहले यह बताया था कि कैसे ब्रिटिश नीतियों ने कराधान, वेतन, पेंशन और विप्रेषण (remittances) के नाम पर भारत की संपत्ति को ब्रिटेन भेजा है।
- प्रमुख साहित्यिक कृतियां: पॉवर्टी ऑफ इंडिया (1876), पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया (1901) आदि।
- औपनिवेशिक शोषण को उजागर किया: ईस्ट इंडिया एसोसिएशन जैसे मंचों के माध्यम से अंग्रेजों की औपनिवेशिक शोषणकारी नीतियों को उजागर किया।
राजनीतिक योगदान
- उदारवादी नेता: उन्होंने याचिका, प्रार्थना और विरोध जैसे संवैधानिक एवं शांतिपूर्ण साधनों का समर्थन किया था।
- उन्होंने 1865 में लंदन इंडियन सोसाइटी और 1866 में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की थी।
- ब्रिटिश संसद में पहले भारतीय सांसद: 1892 के आम चुनाव में फिन्सबरी सेंट्रल से लिबरल पार्टी के लिए चुने गए थे।
- स्वराज: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के 1906 के अधिवेशन में स्वराज को एक ठोस राजनीतिक लक्ष्य घोषित किया था।
- मार्गदर्शन: नौरोजी ने बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी जैसे भविष्य के कांग्रेसी नेताओं को सलाह देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।