यह बुलेटिन विश्व ओज़ोन दिवस (16 सितम्बर) और वियना कन्वेंशन की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर जारी किया गया है। विश्व ओज़ोन दिवस 16 सितम्बर को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।
- अनुमान है कि ओज़ोन परत 1980 के स्तर (जब ओज़ोन छिद्र पहली बार दिखाई दिया था) तक निम्नलिखित भागों में रिकवरी कर लेगी:
- अंटार्कटिक के ऊपर 2066 तक,
- आर्कटिक के ऊपर 2045 तक और
- दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए 2040 तक।
ओज़ोन परत के बारे में
- ओज़ोन परत पृथ्वी के धरातल से 15 से 30 किमी ऊपर समताप मंडल में स्थित है। यह हमारी सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से रक्षा करती है।
- ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थ (ODS): ODS ऐसे पदार्थ हैं, जो क्लोरीन या ब्रोमीन निर्मुक्त करते हैं, और ओज़ोन अणुओं को नष्ट करते हैं।
- क्लोरीन निर्मुक्त करने वाले ODS में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs), कार्बन टेट्राक्लोराइड (CTC) और मिथाइल क्लोरोफॉर्म शामिल हैं। वहीं ब्रोमीन निर्मुक्त करने वाले ODS में हैलोन और मिथाइल ब्रोमाइड शामिल हैं।
- समताप मंडल में ओज़ोन का क्षरण उत्तरी गोलार्ध (आर्कटिक) की तुलना में दक्षिणी गोलार्ध (अंटार्कटिका) में अधिक होता है।
वियना कन्वेंशन 1985 के बारे में
- यह पहला वैश्विक समझौता था, जिसने समताप मंडल में ओज़ोन के क्षरण को एक समस्या के रूप में मान्यता दी थी और ओज़ोन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया था।
- इसने ओज़ोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रोटोकॉल को 1987 में अपनाया गया था।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत नियंत्रित ODS के उत्पादन और खपत के 99% से अधिक को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त कर दिया गया है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन को 2016 में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करने के लिए अपनाया गया था। HFCs एक ग्रीनहाउस गैस है, जिसका उपयोग ODS के विकल्प के रूप में किया जाता है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत भारत की उपलब्धियां:
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