प्रतिबंध की अवधि गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत बढ़ाई गई है। ऐसा इसलिए किया गया है, क्योंकि NSCN(K) को भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ जारी गतिविधियों में शामिल पाया गया है।
- यह समूह नागालैंड और कुछ अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विद्रोही गतिविधियों, जबरन वसूली तथा अन्य विद्रोही संगठनों के साथ जुड़ने में सक्रिय रूप से शामिल है।
पूर्वोत्तर में विद्रोही गतिविधियों के लिए जिम्मेदार कारक
- राजनीतिक अलगाव: औपनिवेशिक काल के बाद से उपेक्षा और सीमित राजनीतिक प्रतिनिधित्व की भावना ने लोगों में हाशिए पर होने की भावना पैदा की है।
- नृजातीय और सांस्कृतिक आकांक्षाएँ: अलग-अलग जनजातीय पहचान और उनकी स्वायत्तता की आकांक्षाएँ अक्सर सशस्त्र आंदोलनों के रूप में सामने आई हैं।
- विकास की कमी: पूर्वोत्तर क्षेत्र आर्थिक अवसरों की कमी, अपर्याप्त अवसंरचना, और उच्च बेरोजगारी दर का सामना कर रहा है।
- भू-राजनीतिक कारक: उदाहरण के लिए- म्यांमार और बांग्लादेश के साथ लगा दुर्गम भूभाग, छिद्रिल अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं आदि विद्रोहियों, हथियारों एवं प्रतिबंधित वस्तुओं की आवाजाही को आसान बनाते हैं।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- शांति और संवाद: उदाहरण के लिए- मिज़ो शांति समझौते (1986) और बोडो शांति समझौते (2020) जैसे शांति समझौतों के माध्यम से सरकार इन समूहों से वार्ता कर रही है।
- अंतर्राज्यीय सीमा समझौते: लंबे समय से चले आ रहे विवादों को सुलझाया गया है। उदाहरण के लिए- असम और अरुणाचल प्रदेश (2023) तथा असम एवं मेघालय (2022) के बीच हुए समझौते।
- संवैधानिक प्रावधान: उदाहरण के लिए- संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूची के प्रावधान, अनुच्छेद 371(A) के तहत नागालैंड को विशेष दर्जा, आदि।
- विकास पहलें: उदाहरण के लिए- प्रधान मंत्री-पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास पहल (PM-DevINE) जैसी योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसके अलावा, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (MDoNER) के लिए फंडिंग में वृद्धि की गई है।
पूर्वोत्तर में स्थायी शांति एवं अखंडता के लिए निरंतर संवाद, त्वरित विकास, मजबूत सीमा प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी को मिलाकर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।