इस आंदोलन की शुरुआत 1925 में तमिलनाडु में ई.वी. रामासामी ने की थी। उन्हें आमतौर पर पेरियार के नाम से भी जाना जाता है।
- पेरियार पर ज्योतिराव फुले और बी.आर. अंबेडकर जैसे सुधारकों का गहरा प्रभाव था।
- पेरियार ने एक तमिल साप्ताहिक पत्र 'कुडी अरासु' का प्रकाशन किया था और वायकोम सत्याग्रह में भी भाग लिया था।
आत्म-सम्मान आंदोलन के बारे में
- उद्देश्य: इस आंदोलन का उद्देश्य जाति व्यवस्था को समाप्त करना, तार्किक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना और ब्राह्मणवादी परंपराओं के वर्चस्व का विरोध करना था।
- इस आंदोलन के उद्देश्यों का विवरण दो पुस्तिकाओं में किया गया है: नमतु कुरिक्कोल और तिरावितक कालक लेईयम्।
- इसने अनुष्ठानवाद और सामाजिक पदानुक्रम की बजाय तर्कवाद, समानता एवं व्यक्तिगत गरिमा पर बल दिया।
- महिला नेतृत्व: इस आंदोलन से जुड़ी दो प्रमुख महिलाएं- अन्नाई मीनामबल और वीरामल थीं।
आंदोलन की विशेषताएं:
- आत्म-सम्मान विवाह: आंदोलन ने बिना पुजारियों के हिंदू विवाहों के प्रचलन की शुरुआत की, जिन्हें कानूनी मान्यता भी मिली।
- सामाजिक उत्थान: आंदोलन ने देवदासी प्रथा, जातिगत भेदभाव और विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंधों का विरोध किया, तथा सामाजिक समानता पर बल दिया।
- आत्म-सम्मान सम्मेलन: 1929 में, पेरियार ने चेंगलपट्टु में पहला प्रांतीय सम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन की अध्यक्षता डब्ल्यू.पी.ए. सौंदर पांडियन ने की थी।
- महत्त्व: इसने गैर-ब्राह्मणों के बीच गरिमा और राजनीतिक जागरूकता पैदा की, तथा तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति व कल्याणकारी शासन की नींव रखी।