इसमें 2010-2019 तक 185 देशों में दीर्घकालिक या 'गैर-संचारी' रोगों (NCDs) से होने वाली मौतों को कम करने राह में वैश्विक प्रगति पर अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार 2010-2019 में NCDs के कारण वैश्विक स्तर पर मृत्यु दर में गिरावट हुई थी, जबकि भारत में वृद्धि हुई थी।
इस अध्ययन में भारत से संबंधित मुख्य आंकड़ों पर एक नजर:
- मृत्यु दर में वृद्धि: भारत में 2010 और 2019 के बीच कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग जैसे NCDs से होने वाली मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।
- जन्म से लेकर 80 वर्ष की आयु के बीच NCDs से मरने की संभावना भारत में बढ़ी है, जबकि उच्च आय वाले पश्चिमी और पूर्वी एशियाई देशों में इसमें कमी आई है।
- मुख्य रोग और जनसांख्यिकी: भारत में हृदय रोग और मधुमेह सबसे बड़े जोखिम हैं, तथा इन दोनों से होने वाली मौतों में वृद्धि हो रही है।
गैर संचारी रोगों (NCDs) के बारे में
- परिभाषा: ये ऐसी दीर्घकालिक बीमारियां होती हैं, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती हैं।
- NCDs के मुख्य प्रकार: हृदय रोग (जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक), कैंसर, दीर्घकालिक श्वसन रोग (जैसे दीर्घकालिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज एवं अस्थमा) तथा मधुमेह।
- भारत में NCDs की व्यापकता: भारत में NCDs के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा 1990 के 37.9% से बढ़कर 2018 में 63% हो गया है।
- भारत में NCDs के लिए जिम्मेदार कारक:
- जीवनशैली और रोकथाम योग्य जोखिम कारक: उदाहरण के लिए- अंसतुलित आहार, शारीरिक व्यायाम की कमी और मादक द्रव्यों का सेवन करना।
- सामाजिक और पर्यावरणीय कारक: उदाहरण के लिए- शहरीकरण, वैश्वीकरण, वृद्धजनों की बढ़ती जनसंख्या, गरीबी के कारण अस्वास्थ्यकर जीवनशैली आदि।
- अन्य: प्रदूषण (परिवेशीय एवं इंडोर), दीर्घकालिक तनाव आदि।
NCDs से निपटने के लिए विभिन्न क्षेत्रकों का सहयोग जरूरी है। इसके लिए मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवा और बीमारी का शुरुआत में पता लगाने व प्रबंधन के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग करना आवश्यक है। नीतिगत सुधार, वित्तीय उपाय और लगातार निवेश से इसके जोखिमों को कम किया जा सकता है तथा लोगों की जान बचाई जा सकती है।
भारत में गैर-संचारी रोगों से निपटने के लिए शुरू की गई पहलें
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