सूक्ष्म वित्त क्षेत्रक का सकल ऋण पोर्टफोलियो (GLP) साल-दर-साल 13.9% गिर गया है, जो उधारकर्ताओं के बढ़ते तनाव और कम ऋण देने को दर्शाता है।
- ऋण के लिए सूक्ष्म वित्त (या माइक्रोक्रेडिट) क्या है: विश्व बैंक के अनुसार, यह उन लोगों को छोटे पैमाने की वित्तीय सेवाएं प्रदान करना है, जिनकी पारंपरिक बैंकिंग सेवाओं तक पहुंच नहीं है।
सूक्ष्म वित्त संस्थाओं (MFIs) के समक्ष चुनौतियां
- पहुंच की उच्च लागत: MFIs छोटे-छोटे ऋणों के माध्यम से दूरदराज और कम बैंकिंग वाले क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करते हैं।
- भारत में लोगों तक MFIs की पहुँच अभी भी 8% बनी हुई है, जो बांग्लादेश के 65% से काफी कम है।
- उच्च ब्याज दरें: MFIs 12%-30% तक ब्याज दर वसूलते हैं, जो बैंकों के 8%-12% से अधिक है।
- निश्चित लेन-देन लागत और सीमित मात्रा के कारण ब्याज दरें उच्च बनी रहती हैं।
- शहरी गरीबों को अक्सर अनदेखा किया जाता है: MFIs ग्रामीण गरीबों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं; केवल 800 MFIs शहरी गरीबों को लक्षित करते हैं।
- ऋण चूक: कोई जमानत न होने और खराब जोखिम प्रबंधन के कारण अधिक ऋण चूक होती है।
- 70% से अधिक भुगतान देर से होते हैं, जिससे नकदी प्रवाह और सततता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- बैंकों पर अत्यधिक निर्भरता: MFIs का 80% वित्त-पोषण वाणिज्यिक बैंकों द्वारा किया जाता है।
- उत्पाद विविधीकरण का अभाव: MFIs द्वारा अपने समग्र ऋण का बड़ा भाग सूक्ष्म ऋण के रूप में दिया जाता है, जो इनके लाभांश को सीमित करता है।
- बीमा, बचत, विप्रेषण जैसी अन्य सेवाएं MFIs द्वारा बहुत कम या नही के बराबर प्रदान की जाती हैं।
सरकार द्वारा की गई पहलें
- सिडबी (SIDBI) की माइक्रो फाइनेंस योजना: इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले NGOs/ MFIs को सिडबी से वित्त प्राप्त करने के लिए इक्विटी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
- स्वयं सहायता समूह-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP): यह कार्यक्रम नाबार्ड (NABARD) ने तैयार किया था। इसकी शुरुआत 1992 में की गई थी।