टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ने एक नई नीति लागू की है, जिसके तहत बेंच अवधि को केवल 36 कार्यदिवस प्रति वर्ष तक सीमित कर दिया गया है। इससे कर्मचारियों की नियुक्ति और नौकरी की निरंतरता को लेकर चिंता उत्पन्न हुई है।
- पिछले एक वर्ष के दौरान विप्रो, इंफोसिस, एक्सेंचर जैसी अन्य IT कंपनियों ने भी कर्मचारियों की संख्या में कटौती की है, ताकि लाभ मार्जिन बढ़ाया जा सके और उपयोगिता दर को बेहतर बनाया जा सके।
IT कंपनियां बेंचिंग नीति का पुनर्मूल्यांकन क्यों कर रही हैं?
- लागत प्रबंधन: नॉन-बिलिंग कर्मचारी (non-billable) कम मांग के समय कंपनी की वित्तीय स्थिति पर बोझ डालते हैं।
- नॉन-बिलिंग कर्मचारी (Non-billable employees): ये वे कर्मचारी होते हैं, जो किसी कंपनी के संचालन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन उनका काम सीधे तौर पर ग्राहक को दिए जाने वाले प्रोडक्ट या सेवा से जुड़ा नहीं होता, जिसके लिए ग्राहक से पैसे लिए जाते हों।
- मांग-आपूर्ति का अंतर: टेक्नोलॉजी ऑटोमेशन और प्रोजेक्ट्स के रद्द होने से बफर स्टाफ की जरूरत में कमी आई है।
- उपयोगिता दरें: कंपनियां प्रोजेक्ट-कर्मचारी अनुपात को बेहतर कर लाभप्रदता बढ़ाना चाहती हैं।
नैतिक और सामाजिक चिंताएं
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR): कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे न्यायसंगत और मानवीय वर्कफोर्स प्रबंधन को सुनिश्चित करें, विशेष रूप से जब उन्होंने कर्मचारी प्रशिक्षण पर बड़ा निवेश किया हो।
- कर्मचारी अधिकार: व्यावसायिक दक्षता और कर्मचारी कल्याण के बीच संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। नीतियों के ज़रिए ऐसा माहौल नहीं बनाया जाना चाहिए, जो "हायर एंड फायर" (भर्ती और छंटनी) संस्कृति को बढ़ावा दें।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: इस प्रकार की नीतियों से कर्मचारियों में चिंता, तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
निष्कर्ष
IT क्षेत्र में नीतियों में बदलाव एक गतिशील उद्योग को दर्शाता है, जो नई आर्थिक वास्तविकताओं और तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल स्थापित कर रहा है। भारत के IT क्षेत्र के संधारणीय विकास के लिए, एक सहयोगात्मक और सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण आवश्यक है, जो यह सुनिश्चित करे कि नीतियां व्यावसायिक लक्ष्यों को कुशल, संलग्न और सुरक्षित कार्यबल की महत्वपूर्ण आवश्यकता के साथ संतुलित कर रही हैं।