इस महत्वपूर्ण अध्ययन में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्राथमिकता सूची में शामिल ज़ूनोटिक बीमारियों (जैसे इबोला, निपाह, आदि) का पहला व्यापक वैश्विक मूल्यांकन किया गया है। इस अध्ययन में कोविड-19 को शामिल नहीं किया गया है।
- परिभाषा: ज़ूनोटिक रोग (जिन्हें जूनोसिस भी कहा जाता है) उन कीटाणुओं (जैसे वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी और फफूंदी) के कारण होते हैं, जो जानवरों एवं मनुष्यों के बीच फैलते हैं।
अध्ययन के मुख्य बिंदुओं पर एक नजर
- दुनिया के 9.3% भूमि क्षेत्र को रोग प्रकोप के उच्च (6.3%) या बहुत उच्च (3%) जोखिम वाले क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है।
- ज़ूनोटिक रोगों के वैश्विक हॉटस्पॉट्स: लैटिन अमेरिका और ओशिनिया (18.6%) सर्वाधिक उच्च जोखिम वाले क्षेत्र हैं। इसके बाद एशिया (6.9%) और अफ्रीका (5.2%) का स्थान आता है।
- दुनिया की करीब 3% आबादी उच्च या बहुत उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में रहती है, जबकि 20% आबादी मध्यम जोखिम वाले क्षेत्रों में रहती है।
प्राथमिकता वाले रोगों के जोखिम को प्रभावित करने वाले मानवीय कारक
- जलवायु कारक:
- गर्म जलवायु में रोगों का जोखिम बढ़ जाता है। एक सीमा तक वर्षा बढ़ने पर रोग जोखिम भी बढ़ता है।
- जल की कमी से जानवर सीमित संसाधनों के पास एकत्र हो जाते हैं। इससे मनुष्यों और जानवरों के बीच संपर्क बढ़ता है तथा बीमारी फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
- पर्यावरणीय और भूमि-उपयोग कारक:
- उच्चतर पशुधन घनत्व से संक्रमण का खतरा बढ़ता है, खासकर जब पशु मानव बस्तियों के पास होते हैं।
- बार-बार भूमि के उपयोग में बदलाव और वनों के नजदीक रहने से मनुष्य एवं जंगली जीवों के बीच संपर्क बढ़ जाता है। इससे बीमारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
- जनसंख्या घनत्व: जनसंख्या घनत्व बीमारी के प्रकोप के जोखिम को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला अकेला कारक है। यह प्रभाव उन क्षेत्रों में और भी अधिक होता है, जिनका तेजी से शहरीकरण हो रहा है, अनियोजित तरीके से विकसित हुए हैं, और जहां खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा है।
नीति संबंधी सुझाव
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