चीन द्वारा दुर्लभ भू-चुंबकों (REMs) के निर्यात पर प्रतिबंध भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग पर प्रभाव डाल सकता है। ऐसा इस कारण, क्योंकि ये इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के निर्माण में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण तत्व होते हैं।
- इसके अलावा, REM की बजाय पूरे पार्ट्स का आयात करने से घरेलू मूल्य वर्धन में कमी आ सकती है, जो PLI योजना के तहत प्रोत्साहन प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है।
दुर्लभ भू-चुम्बक (REMs) के बारे में
- ये व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सबसे मजबूत प्रकार के स्थायी चुम्बक होते हैं।
- ये आमतौर पर ऐसी मिश्र धातुओं से बनते हैं, जिनमें नीयोडिमियम, प्रेजोडिमियम और डिस्प्रोसियम जैसे दुर्लभ भू-तत्व होते हैं।
- उपयोग: ये इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों और आधुनिक रक्षा उपकरणों के लिए अत्यंत जरुरी होते हैं। अगर ये उपलब्ध नहीं हों, तो पूरी आपूर्ति श्रृंखला रुक सकती है।
REMs से जुड़ी चुनौतियां
- आपूर्ति श्रृंखला का संकेन्द्रण: वैश्विक दुर्लभ भू-तत्व खनन में चीन की लगभग 70% तथा विश्व के REM उत्पादन में लगभग 90% हिस्सेदारी है।
- विश्व में भारत के पास 5वां सबसे बड़ा दुर्लभ भू-तत्व भंडार है। इसके बावजूद भी भारत में कोई घरेलू उत्पादन क्षमता नहीं है। साथ ही, यह लगभग अधिकांश REMs का आयात करता है।
- REE चुंबक आपूर्ति श्रृंखला को तैयार करने में लगभग 3-4 वर्ष लग सकते हैं।
- उच्च जोखिम वाला उद्यम: ऐसा इसलिए है, क्योंकि इसकी आपूर्ति श्रृंखला में अत्यधिक पूंजी और काफी समय लगता है।
भारत द्वारा उठाए गए कदम
- दुर्लभ भू-तत्वों में आत्मनिर्भरता और पुनर्चक्रण के लिए राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन शुरू किया गया है।
- इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) व्यावसायिक रूप से दुर्लभ भू-चुम्बकों के विनिर्माण के लिए जापान और कोरिया की कंपनियों के साथ वार्ता कर रही है।