स्थलीय जलभृतों की तरह ही अपतटीय जलभृत भी वास्तव में चट्टानों या अवसादों के आवरण वाले ऐसे जल भंडार होते हैं, जिनमें ताजा जल पाया जाता है। हालांकि, अपतटीय जलभृत समुद्री नितल के नीचे स्थित होते हैं।
अपतटीय जलभृतों की मुख्य विशेषताएं
- प्राप्ति क्षेत्र: अपतटीय जलभृत पूरे विश्व में, तथा विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया, चीन, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के तटों के पास पाए जाते हैं।
- अपतटीय जलभृत समुद्री तट से समुद्र की ओर 90 किलोमीटर तक विस्तृत हो सकते हैं। इनमें अनुमानतः 10 लाख घन किलोमीटर ताजा जल मौजूद है, जो पृथ्वी के कुल स्थलीय ताजा भूजल का लगभग 10% है।
- संरक्षित ताजा जल: जलभृतों के ऊपर सघन मृदा से भरपूर तलछट से निर्मित शैल-आवरण (Cap rock) की परत मौजूद होती है। यह आवरण संभवतः ताजे जल को समुद्री खारे जल के साथ मिलने से रोकता है।
- निर्माण के सिद्धांत: अपतटीय जलभृत के निर्माण के पीछे सामान्यतः दो प्रमुख सिद्धांत उत्तरदायी माने जाते हैं-
- हिमयुग संकल्पना: अतीत के हिमयुगों के दौरान वर्षा जल उन स्थलीय क्षेत्रों में रिसकर नीचे चला गया था, जिनके ऊपर अब महासागर का जल है।
- संपर्क संकल्पना: अपतटीय जलभृत तटीय स्थलीय जलभृतों से जुड़े हो सकते हैं, जिन्हें वर्षा के बाद नियमित रूप से जलापूर्ति मिलती रहती है।
- अपतटीय जलभृतों का महत्त्व:
- जल-संकट वाले क्षेत्रों के लिए ताजे जल का संभावित नया स्रोत हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन जनित सूखा और अनियमित वर्षा की स्थितियों में बफर जल स्रोत साबित हो सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक विश्व में ताजे जल की मांग, आपूर्ति से 40% अधिक हो जाएगी। ऐसे में अपतटीय जलभृत उपयोगी साबित हो सकते हैं।
- मुख्य चुनौतियां:
- ऐसे जल की प्राप्ति की लागत अधिक होगी;
- ऐसे जल को निकालने के लिए तकनीकों की कमी है;
- ऐसे जल के दोहन से समुद्री पारिस्थितिकी-तंत्र और समुद्री जीव-जंतुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है;
- इनके प्रशासन में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं आदि।